गोरखपुर : गोरखपुर के वनटांगिया गांव के लोगों को हर वर्ष दीपावली पर्व का इंतजार रहता है.इस दिन की तैयारी में लोग घरों को सजाते है.अपने दरवाजा पर रंगोली बनाई जाती है. महिलाएं स्वागत गीत गुनगुनाती है.क्योंकि उन्हें अपने महाराज जी के आगमन का इंतजार रहता है.उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. वर्ष 2009 से लगातार वनटांगिया गांव के लोगों के साथ दीपावली मनाते चले आ रहे हैं.वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में सीएम योगी के आगमन को लेकर वहां के लोगों में उल्लास छाया हुआ है.दीपावली पर वनटांगिया बस्ती में दीपमालिकाएं सीएम योगी के नाम पर सजती हैं. दीपावली के दिन सीएम योगी आदित्यनाथ के आगमन को लेकर प्रशासन अपनी तैयारी में जुटा हुआ है.तो वही गांव के लोग सीएम के स्वागत में अपने-अपने घर द्वार को साफ सुथरा बनाने रंग रोगन करने और सजाने सवारने में जुटे हुए हैं.इस गांव में मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर तैयारी ऐसी हो रही है मानो उनके घर उनके आराध्य आने वाला हो.कुसमी जंगल के बीच बसे इस गांव में ऐसी तैयारी का होना स्वाभाविक भी है.उन लोगों के लिए योगी आदित्यनाथ तारणहार हैं. इनकी 100 साल से अधिक की गुमनामी और बदहाली को सशक्त पहचान और अधिकार दिलाने के साथ विकास संघ कदमताल करने का श्रेय सीएम योगी आदित्यनाथ के ही नाम है.इस गांव के लोगों को उनका हक दिलाने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद सड़क से संसद तक की लड़ाई लड़ी है.
वर्ष 2017 से पहले इस गांव के लोग सभी मूवी भूत सुविधाओं से वंचित थे इन लोगों के पास ना तो अपना आशियाना था और ना ही सरकारी सुविधाएं. यहां तक की इस गांव में कोई भी विद्यालय ,अस्पताल,ग्राम पंचायत नहीं था. इस गांव के लोग चुनाव में वोट भी नही डाल सकते थे. 2017 के बाद जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की कमान संभाली तो इस गांव की लोगों को सारी मूलभूत सुविधाओं से जोड़ा इस गांव में पक्कीसड़के रोड लाइट सभी का अपना आवास,प्राथमिक विद्यालय बन गए है. वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में हर साल दीपावली मनाने वाले मुख्यमंत्री के प्रयासों से इस गांव समेत गोरखपुर-महराजगंज के 23 गांवों और प्रदेश की सभी वनवासी बस्तियों में विकास और हक-हुकूक का अखंड दीप जल रहा है. वास्तव में कुसम्ही जंगल स्थित वनटांगिया गांव जंगल तिकोनिया नम्बर तीन एक ऐसा गांव है जहां दीपावली पर हर दीप “योगी बाबा” के नाम से ही जलता है. साल दर साल यह परंपरा ऐसी मजबूत हो गई है कि साठ साल के बुर्जुर्ग (महिला-पुरुष दोनों) भी बच्चों सी जिद वाली बोली बोलते हैं, बाबा नहीं आएंगे तो दीया नहीं जलाएंगे.
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ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई. इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया. साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की “टांगिया विधि” का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए.
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कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं.इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे. 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा. जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी. नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं. जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी. पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं था. समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से था.
साखू के पेड़ों से जंगल संतृप्त हो गया तो वन विभाग ने अस्सी के दशक में वनटांगियों को जंगल से बेदखल करने की कार्रवाई शुरू कर दी. तिकोनिया नम्बर तीन के बुजुर्ग चंद्रजीत बताते हैं कि इसी सिलसिले में वन विभाग की टीम 6 जुलाई 1985 को जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन में पहुंची. न कहीं और घर, न जमीन, आखिर वनटांगिया लोग जाते कहां.उन्होंने जंगल से निकलने को मना कर दिया जिस वन विभाग की तरफ से फायरिंग कर दी गई. इस घटना में परदेशी और पांचू नाम के वनटांगियों को जान गंवानी पड़ी जबकि 28 लोग घायल ही गए. इसके बाद भी वन विभाग सख्ती करता रहा. यह सख्ती तब शिथिल हुई जब सांसद बनने के बाद 1998 से योगी आदित्यनाथ ने वनटांगियों की सुध ली.
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने. उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं. नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी. इस काम में लगाया गया उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज व एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को. जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन वनटांगिया गांव में 2003 से शुरू ये प्रयास 2007 तक आते आते मूर्त रूप लेने लगे.वनटांगिया लोगों को शिक्षा के जरिये समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा तक झेला है.
वर्ष 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे. वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी. योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका. हिन्दू विद्यापीठ नाम से यब विद्यालय आज भी योगी के संघर्षों का साक्षी है. योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2009 से वनटांगिया समुदाय के साथ दीप उत्सव मनाने की परंपरा शुरू की तो पहली बार इस समुदाय को जंगल के इतर भी जीवन रंगों का एहसास हुआ.फिर तो यह सिलसिला बन पड़ा। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी इस परंपरा का निर्वाह करना नहीं भूलते हैं.इस दौरान बच्चों को मिठाई, कापी-किताब और आतिशबाजी का उपहार देकर पढ़ने को प्रेरित करते हैं तो सभी बस्ती वालों को तमाम सौगात.
रिपोर्ट : कुमार प्रदीप