Gujarat Election 2022 : क्या गुजरात में इस बार सत्ता परिवर्तन देखने को मिलेगा ? इस सवाल का जवाब शायद देना आसान काम नहीं है. इसके लिए आपको पुराने चुनाव पर नजर डालने की जरूरत है. इस बार गुजरात का चुनाव त्रिकोणीय होने जा रहा है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इस बार चुनावी मैदान में कांग्रेस और भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ भी ताल ठोक रही है. ‘आप’ चुनाव की तारीख की घोषणा के पहले ही कह चुकी है कि वो सभी सीट पर उम्मीदवार इस चुनाव में उतारेगी. आइए पुराने चुनाव पर एक नजर डालते हैं.
साल 1985 की बात करें तो, इस साल गुजरात में कांग्रेस सत्ता में लौटी और वो भी चौंकाने वाले आंकड़ों के साथ…इस साल कांग्रेस ने गुजरात की कुल 182 सीटों में से रिकॉर्ड 149 सीटों पर जीत दर्ज की. इस वक्त कांग्रेस का वोट प्रतिशत 55 से अधिक था. यहां चर्चा कर दें कि पिछले 27 साल से भाजपा जरूर सत्ता पर काबिज है लेकिन वह अबतक 1985 के कांग्रेस के रिकॉर्ड को नहीं तोड़ सकी है.
1985 का साल गुजरात के लिए कठिन था. इस वर्ष अहमदाबाद, राजधानी गांधीनगर और राज्य के कुछ अन्य स्थानों पर दंगे हुए थे. इस इलाकों में पिछड़े वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार की आरक्षण नीति पर लंबे समय तक दंगे हुए. यह सांप्रदायिक हिंसा में भी बदल गया था. इस हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गये थे और हजारों लोग विस्थापित हुए. इस बीच गुजरात में भाजपा का दबदबा बढ़ता जा रहा था.
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1990 के गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस की संख्या घटकर केवल 33 रह गयी. उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कुछ अन्य राज्यों की तरह, जनता दल गुजरात में 70 सीटों के साथ एक नयी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी. इस साल उसने भाजपा (67) के साथ सरकार बनायी. इस वर्ष जनता दल के चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री थे और भाजपा के केशुभाई पटेल उनके डिप्टी बने. उसी वर्ष कुछ ऐसा हुआ जिसकी चर्चा गुजरात की राजनीति मे आज भी होती है. चिमनभाई पटेल ने गठबंधन तोड़ दिया, लेकिन कांग्रेस विधायकों की मदद से इस पद पर बने रहे. इतना ही नहीं वह सबसे पुरानी पार्टी में शामिल भी हो गये. साल 1994 में जब चिमनभाई पटेल की मृत्यु हुई, तब कांग्रेस के छबीलदास मेहता ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
इसके बाद बात साल 1995 की करते हैं. इस साल भाजपा ने पुरजोर प्रयास किया और सत्ता में आयी. इसके बाद से लगातार भाजपा सत्ता में नजर आयी. भाजपा ने 1995 के विधानसभा चुनाव में 121 सीट पर जीत दर्ज की. इस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा सुधरा. साल 2001 की बात करें तो इस वर्ष गुजरात की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. केशुभाई पटेल के अस्वस्थ होने के बाद नरेंद्र मोदी को सत्ता संभालने के लिए दिल्ली से गुजरात भेजा गया था. इसके बाद भाजपा जो भुज भूकंप के बाद जनता के बीच जनाधार खो रही थी, उसमें सकारात्मक बदलाव आने लगे.