Jharkhand News, Gumla News, गुमला न्यूज (दुर्जय पासवान) : गुमला और लातेहार जिला के सीमावर्ती में एक गांव है ठगरिया. इस गांव की एक बेटी 9 साल बाद अपने गांव पहुंची. गांव पहुंचते ही पूरा गांव रो पड़ा. बूढ़ी मां ने बेटी के पैर धोये और उसी पानी को पी ली और ईश्वर से प्रार्थना की कि बेटी खुश रहे और परिवार और गांव में खुशहाली बनी रहे. बता दें कि मानव तस्करों ने इस बेटी को दिल्ली में बेच दिया था.
ठगरिया गांव की 11 साल की एक बेटी 9 साल बाद मानव तस्कर के चंगुल से छुटकर अपनी गांव पहुंची. अब इस बेटी की उम्र 20 साल है. बता दें कि पीड़िता दिल्ली के एक घर में फंसी हुई थी. जब इसकी जानकारी धनबाद के समाजसेवी अंकित राजगढ़िया को हुई, तो उन्होंने दिल्ली में मानवाधिकार आयोग से मदद मांगा. इसके बाद घर मालिक ने गुमला की इस बेटी को मुक्त कर दिया और उसे रांची भेज दिया. बुधवार (24 मार्च, 2021) को अंकित राजगढ़िया इस बेटी को लेकर उसके गांव पहुंचा, तो बेटी को देखकर पूरा गांव भावुक हो गया. मां अपनी बेटी से लिपटकर रोने लगी. बेटी के पैर धोने व मां के द्वारा उस पानी को पीने के बाद बेटी को घर के अंदर प्रवेश कराया गया.
ठगरिया गांव की इस बेटी का परिवार गरीब है. मजदूरी से जीविका चलता है. परिजनों के अनुसार, उसकी बड़ी बहन की शादी के लिए वृद्ध माता- पिता ने एक मानव तस्कर महिला से 10 हजार रुपये कर्ज लिया था. लेकिन, परिवार के लोग तय समय पर कर्ज नहीं चुका सके. इसके बाद उस बेटी को मानव तस्कर महिला दिल्ली ले गयी और उसे एक प्लेसमेंट एजेंसी को बेच दिया. प्लेसमेंट एजेंसी ने उसे एक घर में काम करने के लिए बेचा. जब भी वह अपने घर जाना चाहती थी. उसे डराया- धमकाया जाता था. घर से उसे निकलने भी नहीं दिया जाता था. माता- पिता ने बताया कि तस्कर महिला ने कहा था कि 10 हजार रुपये चुकता हो जायेगा, तो बेटी को छोड़ देंगे. लेकिन, नौ साल तक बेटी को हमसे दूर रखा.
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समाजसेवी अंकित राजगढ़िया ने बताया कि रोशनी कई बार भागने का प्रयास की, लेकिन वह सफल नहीं रही. उसे घर से निकलने नहीं दिया जाता था. एक दिन चोरी- छिपे हिम्मत जुटाकर वह पूर्व परिचित रांची के भारती कुमार को फोन की. इसके बाद भारती ने इसकी जानकारी समाजसेवी अंकित राजगढ़िया को दिया. अंकित ने गुमला की इस बेटी को मुक्त कराने के लिए झारखंड के सीएम, डीजीपी को ट्वीट किया. साथ ही इसकी जानकारी मानवाधिकार आयोग, दिल्ली को दिया. बेटी को मुक्त कराने के लिए रांची की भारती कुमार दिल्ली पहुंच गये, जबकि मानवाधिकार आयोग इस बेटी को मुक्त कराने में जुट गयी. लेकिन, उससे पहले घर मालिक ने इस बेटी को भारती कुमार को सौंप दिया और ट्रेन में बैठाकर रांची भेज दिया.
गुमला की बेटी रांची आ गयी. अब उसे उसके गांव पहुंचाना था. लेकिन, गांव तक पहुंचाने के लिए गाड़ी भाड़ा की समस्या थी. तभी गाड़ी भाड़ा के लिए धनबाद से आनंद मंगल संस्था की सदस्यों द्वारा मदद किया गया. संस्था की संगीता अग्रवाल और सुनीता अग्रवाल ने 15 हजार रुपये दिया. जिसके बाद गाड़ी बुक कर इस बेटी को उसके गांव सकुशल पहुंचाया गया. अंकित के साथ बच्ची को घर पहुंचाने में रांची से भारती कुमार और धनबाद से श्याम चौधरी साथ में थे.
दिल्ली से मुक्त होकर घर पहुंचने के बाद बेटी काफी खुश थी. उन्होंने 9 साल तक किस प्रकार परेशानी झेली. उसकी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि बड़ी बहन की शादी के लिए माता- पिता ने कर्ज लिया था. तब कर्जदारों ने बेटी को 11 साल की उम्र में काम करवाने दिल्ली ले गये, ताकि कर्ज की रकम वसूल हो सके. 10 हजार कर्ज के एवज में उसे 9 साल तक दिल्ली में घरेलू काम करना पड़ा.
Posted By : Samir Ranjan.