गुमला : गुमला जिले से 26 किमी दूर घाघरा प्रखंड में हापामुनी गांव है. यहां प्राचीन महामाया मां मंदिर है, जो हापामुनी गांव के बीच में है. इस मंदिर से हिंदुओं की आस्था जुड़ी हुई है. यह अपने अंदर कई इतिहास समेटे हुए है. मंदिर की स्थापना आज से 11 सौ साल (विक्रम संवत 965 में) पहले हुई थी. मंदिर के अंदर में महामाया की मूर्ति है. लेकिन महामाया मां को मंजुषा (बक्सा) में बंद करके रखा जाता है.
क्योंकि महामाया मां को खुली आंखों से देख नहीं सकते हैं. चैत कृष्णपक्ष परेवा को जब डोल जतरा का महोत्सव होता है. तब मंजुषा को डोल चबूतरा पर निकाल कर मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा खोल कर महामाया की पूजा की जाती है. पूजा के दौरान पुजारी आंख में काले रंग की पट्टी लगा लेता है. ऐसे मंदिर के बाहर में एक दूसरे महामाया मां की प्रतिमा स्थापित की गयी है.
भक्तजन उसी में पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी विशेष अवसरों पर यहां संपूर्ण पूजा पाठ कराते हैं. इस मंदिर से लरका आंदोलन का भी इतिहास जुड़ा हुआ है. बाहरी लोगों ने यहां आक्रमण कर बरजू राम की पत्नी व बच्चे की हत्या कर दी थी. उस समय बरजू राम महामाया मां की पूजा में लीन था. बरजू राम का सहयोगी राधो राम था, जो दुसाध जाति का था. राधो राम ने बरजू को उसकी पत्नी व बच्चे की हत्या की जानकारी दी.
इसके बाद मां की शक्ति से राधो राम आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा. इस दौरान मां ने कहा कि तुम अकेले सबसे लड़ सकते हो. लेकिन जैसे ही पीछे मुड़ कर देखोगे. तुम्हारा सिर धड़ से अलग हो जाएगा. मां की कृपा से राधो तलवार लेकर आक्रमणकारियों से लड़ने लगे. सभी का सिर काटने लगे. परंतु राधो ने जैसे ही पीछे मुड़ कर देखा. उसका सिर धड़ से अलग हो गया. आज भी हापामुनी में बरजू व राधो का समाधि स्थल है. जिस स्थान पर वह बैठ कर पूजा करता था. मुख्य मंदिर खपड़ा का बना हुआ है. मंदिर में विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है.
जिस काल में महामाया मंदिर की स्थापना की गयी. वह काल बड़ा ही उथल-पुथल का था. क्योंकि तंत्र-मंत्र व भूत प्रेतात्माओं की शक्ति आदि के बारे में आज भी छोटानागपुर के लोग विश्वास करते हैं. उस जमाने में यहां भूत प्रेत का वास होने की बात हुई. तभी यहां तांत्रिकों का जमावड़ा हुआ. पूजा पाठ किया जाने लगा. यहां यह भी मान्यता है कि उस जमाने में चोरी व किसी प्रकार के अपराध करने वालों को यहां कसम खाने के लिए लाया जाता था. मंदिर के अंदर अपराधी को ले जाने से पहले ही वह अपना अपराध स्वीकार कर लेता था. उस समय मंदिर के पुजारी की बात को प्राथमिकता दी जाती थी.