Jharkhand news: गुमला जिला अंतर्गत लट्ठा बरटोली निवासी उर्बानुस कुजूर 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के अहम हिस्सा थे. वे सिपाही थे और युद्ध के समय 6-बिहार रेजीमेंट में थे. युद्ध के वक्त उनका काम भारतीय सेना के गोला, बारूद, हथियार व खाना पहुंचाना था. उर्बानुस के साथ उनके ससुर इमानुवेल खेस (अब स्वर्गीय) भी 1971 के युद्ध में थे. दामाद व ससुर दोनों ने मिलकर युद्ध में हिस्सा लिया.
स्वर्गीय इमानुवेल खेस का गांव गुमला शहर से सटे पुग्गू घांसीटोली गांव है. इसी गांव के चामू उरांव भी युद्ध में थे जो युद्ध के दौरान शहीद हुए थे. उर्बानुस अभी 75 साल के हैं. लेकिन, 1971 की युद्ध को याद कर आज भी उन्हें गर्व महसूस होता है. उन्होंने पुरानी यादों को ताजा करते हुए कहा कि जब युद्ध शुरू हुआ, तो उनकी ड्यूटी गोला, बारूद और हथियारों की रखवाली करते हुए उन हथियारों को भारतीय सेना तक पहुंचाना था, ताकि भारतीय सेना युद्ध की भूमि में पाकिस्तान को हरा सके.
श्री कुजूर ने कहा कि हमारे सैनिकों ने पूरी बहादुरी से लड़ा. जिसका परिणाम है 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया और विजय झंडा लहराया. उर्बानुस कुजूर का जन्म 1947 को हुआ था. 27 सितंबर, 1965 को वे सेना में भर्ती हुए. कई युद्धों का हिस्सा रहे. कई मेडल भी मिले. 1988 में सेवानिवृत्त हुए. इसके बाद से गांव में रह रहे हैं और खेतीबारी करते हैं. अभी वो दमा बीमारी से ग्रसित हैं.
वहीं, उर्बानुस के ससुर इमानुवेल खेस युद्ध के बाद रिटायर्ड होकर घर पर थे. 15 साल पहले उनका घर पर ही निधन हो गया था. उर्बानुस के तीन बेटे और तीन बेटी है. बड़ा बेटा हिसरोन सलीम कुजूर खेतीबारी करते हैं, जबकि मंझला बेटा अनिल कुजूर झारखंड पुलिस व छोटा बेटा संजीव कुजूर बीएसएफ के जवान हैं. तीन बेटियों की शादी हो चुकी है.
Posted By: Samir Ranjan.