गुमला, जगरनाथ पासवान : गर्मी के मौसम में जंगलों में आग लगने की घटना आम बात हो जाती है. कहीं किसी के द्वारा जानबूझ कर आग लगा दी जाती है, तो कहीं प्राकृतिक कारणों से, तो कहीं दुर्घटनावश आग लग जाती है. इससे न केवल हजारों-लाखों की संख्या में छोटे-छोटे पौधे जल कर मर जाते हैं, बल्कि जंगल की मिट्टी भी जल कर बेकार हो जाती है. साथ ही आग व आग से उठने वाले धुआं से जंगल में रहने वाले अनेकों प्रकार के छोटे-छोटे जीव-जंतुओं व पक्षियों की मौत हो जाती है. वहीं बार-बार आग लगने से प्राकृतिक पुनर्जन्म को भी नुकसान हो रहा है और जंगल में निवास करने वाले विभिन्न प्रकार के जंगली प्रजातियों की विविधता में कमी आ रही है. इसलिए जंगल में आग लगने की घटना की रोकथाम जरूरी है.
जंगल में आग लगने के तीन कारण
वन प्रमंडल, गुमला के अनुसार, जंगल में आग लगने के मुख्यत: तीन कारण है. इसमें महुआ चुनने के लिए आग लगाना, प्राकृतिक कारणों से आग लगना व दुर्घटनावश आग लगना है. इसमें सबसे अधिक आगजनी की घटना महुआ चुनने के लिए होती है. इस समय में महुआ पूरी तरह से तैयार हो गया है. जंगलों में महुआ के पेड़ बहुतायात में पाये जाते हैं. स्थानीय लोग महुआ चुनने के लिए महुआ पेड़ के आसपास आग लगा देते हैं. वहीं, आग महुआ पेड़ के नीचे और आसपास के सूखे पत्तों व झाड़ियों से होते जंगल में कई किमी दूर तक लग जाती है.
आग से जंगल, जंगल की मिट्टी एवं जंगली जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचता
आग लगाने वाले को तो कोई फर्क नहीं पड़ता. उन्हें महज कुछ किग्रा महुआ मिल जाता है और उससे कुछ बहुत पैसे आ जाते हैं. लेकिन, उस आग से जंगल, जंगल की मिट्टी एवं जंगली जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचता है. प्राकृतिक कारणों की बात करें, तो तेज हवा चलने के कारण जंगल में बड़े-बड़े बांसों के आपसी घर्षण व पहाड़ों के चटकने से निकलने वाली चिंगारी के कारण कभी-कभार आग लग जाती है. दुर्घटनावश लगने वाली आग की बात करें, तो कहीं-कहीं लोग जंगल से गुजरने के दौरान बीड़ी अथवा सिगरेट पीते गुजरते हैं. इस दौरान माचिस की जलती तीली अथवा जलती हुई बीड़ी या सिगरेट को फेंक देते हैं. जो सूखे पत्तों अथवा झाड़ियों पर गिरता है. इस कारण आग लग जाती है. कभी-कभी जंगली क्षेत्र से गुजरने वाले वाहनों के चक्के से जो छोटे-छोटे पत्थर छिटकते हैं. कभी-कभी उससे आग लग जाती है, जिसमें प्राकृतिक कारणों व दुर्घटनावश लगने वाले आग को लगने से रोका नहीं जा सकता है. परंतु जबरन आग लगाने पर रोक लगायी जा सकती है, ताकि वन संपदा की क्षति नहीं हो.
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इस साल 35 बार लग चुकी है आग
इस साल जनवरी माह से लेकर 17 मार्च तक गुमला जिले के विभिन्न जंगलों में लगभग 35 बार आग लगने की घटना हो चुकी है. इस पर वन विभाग ने स्थानीय लोगों के सहयोग से काफी मशक्कत के बाद काबू पाया. लेकिन, इससे आग पर काबू पाये जाने से पहले वन संपदा का काफी नुकसान हो गया. वहीं, पूर्व की अपेक्षा वन विभाग अब जंगल में आगजनी जैसी घटना से निबटने के लिए वृहत स्तर पर काम कर रहा है. हाल के दिनों में वन विभाग ने जिले के विभिन्न क्षेत्रों के 15 वन समितियों को एक-एक लाख रुपये मुहैया कराया है, ताकि जंगल में आग लगने जैसी घटना से निबटा जा सके.
बीते चार साल में जंगल की 410.77 हेक्टेयर भूमि जली, लाखों पौधे मरे
पिछले चार सालों का रिकॉर्ड देखा जाये, तो वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 14 मार्च 2023 तक 410.77 हेक्टेयर भूमि समेत उक्त भूमि पर उगे छोटे-छोटे लाखों पौधे जल गये. रिपोर्ट के मुताबिक जंगलों में हर साल आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में जंगल में अगलगी के कारण 4.88 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई. इसके दूसरे वित्तीय वर्ष 2020-21 में 105 हेक्टेयर भूमि, वित्तीय वर्ष 2021-22 में 244.44 हेक्टेयर भूमि और वित्तीय वर्ष 2022-23 से लेकर 14 मार्च तक 56.45 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई.
जंगल की रक्षा के लिए आने आना होगा
जंगल में महुआ चुनने के लिए आग नहीं लगायी जाये, इसे जंगल के आसपास में बसे गांवों के लोगों को सुनिश्चित करना होगा. कहा जाता है कि आदिम जनजातियों व आदिवासी समाज के लोगों जल, जंगल व जमीन से शुरू से जुड़ाव रहा है. ऐसी स्थिति में आदिम जनजातियों व आदिवासी समाज के लोगों को जंगल में आगजनी की घटना पर रोक लगाने के लिए आगे आने की जरूरत है.
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महुआ चुनने के लिए सबसे अधिक आगजनी की घटना : डीएफओ
गुमला डीएफओ अहमद बेलाल अनवर ने कहा कि जंगल में आग लगने की सूचना सेटेलाइट के माध्यम से मिल जाती है. लेकिन, जंगल में सबसे अधिक आगजनी की घटना महुआ चुनने के लिए होती है. प्राय: लोग महुआ चुनने के लिए पेड़ के नीचे आग लगा देते हैं, जिससे नुकसान होता है. इसके अलावा प्राकृतिक कारणों व दुर्घटनावश भी आग लगने की घटना होती है. परंतु महुआ से सबसे अधिक आग लगती है. ग्रामीणों से अपील है कि वे महुआ चुनने के लिए आग नहीं लगाये. जल्द ग्रामीणों को जाल मुहैया कराया जायेगा, ताकि वे जाल को महुआ पेड़ के चारों ओर बांध सके. इससे ग्रामीणों को महुआ एकत्रित करने में सुविधा होगी और आग भी लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.