Jharkhand News: झारखंड का गुमला जिला जंगल व पहाड़ों के बीच बसा है. धीरे-धीरे यहां जंगल भी बढ़ रहे हैं. हर गांव जंगल से सटा हुआ है. यही वजह है कि गुमला के जंगलों में जंगली जानवरों का बसेरा है. जंगलों में हाथी, हिरण, भालू, जंगली सूअर, बंदर, जंगली खरगोश, सियार, लकड़बग्घा, लंगूर, शाही, रॉक पाईथन (अजगर), रॉक इगल आउल, नीलगाय जैसे कई जानवर हैं. इन जानवरों को स्थानीय लोगों द्वारा जंगल में देखा गया है. कई लोगों ने मोबाइल से इनकी फोटो भी ली है. कई जानवर ऐसे हैं, जिनका निवास स्थल घने जंगल हैं. वन विभाग गुमला द्वारा जंगली जानवरों का सर्वे नहीं कराया गया है.
भारतीय वन संस्थान देहरादून द्वारा 2019 में इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट का प्रकाशन किया गया था. इसमें गुमला जिले में 5360 स्क्वायर किमी में अति घनत्व जंगल का क्षेत्र है. इसी प्रकार 304.86 स्क्वायर किमी में मध्यम घनत्व जंगल और 551.32 स्क्वायर किमी में कम घनत्व वाला जंगल है. इसके अतिरिक्त लॉकडाउन में जंगलों के किनारे-किनारे 1.26 स्क्वायर किमी के दायरे में स्वत: ही पेड़-पौधे निकलकर जंगल का रूप ले चुके हैं. जिसमें भालू, हाथी व हिरण का निवास स्थल अति घनत्व वाला जंगल है, जबकि जंगली सूअर, बंदर, जंगली खरगोश, सियार, लकड़बग्घा, लंगूर, शाही, रॉक पाईथन (अजगर), रॉक इगल आऊल, नीलगाय जैसे जानवरों का निवास स्थल मध्यम घनत्व वाला जंगल है. सबसे बड़ी बात कि इन जंगली जानवरों को जंगल में देखना काफी दुर्लभ है क्योंकि ये जानवर शायद ही दिन के उजाले में बाहर निकलते हैं. ये जानवर अक्सर रात के अंधेरे में ही बाहर निकलते हैं.
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हाल के दिनों में रायडीह प्रखंड के वासुदेव कोना नवागढ़ में स्थानीय ग्रामीणों ने लंगूरों का झुंड देखा है. वन विभाग की ओर से नवागढ़ में बांस बखाड़ की सफाई करवायी जा रही है. इस कार्य के लिए विभाग ने स्थानीय ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराया है. बांस बखाड़ की सफाई के दौरान ही ग्रामीणों ने जंगली जानवरों को देखा. ग्रामीणों के अनुसार लंगूरों का झुंड एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल-कूद कर रहा था. ग्रामीणों ने मोबाइल से फोटो भी खींची है. नवागढ़ गांव में ही एक ग्रामीण ने पेड़ के नीचे बैठे रॉक इगल आउल की फोटो ली है. इससे पहले विगत वर्ष मई माह में घाघरा के इटकिरी में नीलगाय देखी गयी है, जो जंगल से भटकते हुए गांव में घुस गया था. इससे लगभग एक साल पहले पालकोट वन क्षेत्र से एक हिरण पानी की तलाश में जंगल से गांव में घुस गया था.
हाथी की बात करें तो हाथियों का झुंड यदा-कदा जंगल से गांव की ओर प्रवेश करता रहता है. नारेकेला में तीन हाथियों का झुंड एवं जारी प्रखंड के श्रीनगर में हाथी छह-छह माह तक अपना बसेरा बनाये रहते हैं. वहीं पालकोट में मुख्य पथ से गुजरने के दौरान राहगीरों ने पथ से भालू को गुजरते देखा है. बिशुनपुर-महुआडांड़ से सटे जंगलों में काफी संख्या में वुल्फ देखा गया है, जो इस बात को दर्शाता है कि जिले के जंगल में विभिन्न प्रकार के जंगली जानवरों का बसेरा है.
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हाथी, हिरण, भालू, बंदर, जंगली सूअर, जंगली खरगोश, सियार, लकड़बग्घा, शाही, नीलगाय जैसे जानवर प्राय: भोजन व पानी की तलाश में जंगल से निकलकर गांवों में घुसते रहे हैं. जिससे न केवल इंसानों को जानमाल की क्षति होती रही है, बल्कि जंगली जानवरों को भी अपनी जान गंवानी पड़ जाती है. जानवर जब गांव में घुसते हैं तो स्थानीय लोग जानवरों को दोबारा जंगल की ओर खदेड़ने का प्रयास करते हैं. यदि जंगली सूअर, जंगली खरगोश, शाही, सियार व लकड़बग्घा जैसे जानवर हो तो उनका शिकार कर लिया जाता है. इसके अलावा कई लोग शौक से जंगली सूअर का शिकार करने के लिए जंगल जाते हैं. ऐसी स्थिति में जंगली जानवरों को शिकार होने से बचाने के लिए वन विभाग को जानवरों पर नजर रखने की जरूरत है.
गुमला जिले में जंगल हैं और जंगल में जानवर भी हैं, लेकिन वन विभाग गुमला द्वारा जंगली जानवरों का सर्वे नहीं कराया गया है. हालांकि वन विभाग को भी इस बात की जानकारी है कि जंगलों में कई प्रकार के जानवर हैं. संभावना है कि जंगली जानवरों के अलावा जंगल में और भी अन्य प्रकार के जंगली जानवर हों. जिसे सूचीबद्ध करने एवं उनके संरक्षण के लिए विशेष योजना बनाकर कार्य करने की जरूरत है.
रिपोर्ट: जगरनाथ पासवान