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झारखंड के इस आदिम जनजाति बिरहोर परिवार के पास न रहने को घर, न खाने को भोजन, ग्रेजुएट बेटे का छलका दर्द

Jharkhand News: गुमला के सिसई प्रखंड के शिवनाथपुर खेर्रा गांव के ठनका बिरहोर व देवमनी देवी चलने-फिरने में असमर्थ हैं. इनका एक बेटा महावीर बिरहोर है. स्नातक पास है, लेकिन बेरोजगार है. गांव में काम नहीं है. बीमार माता-पिता को छोड़कर दूसरी जगह मजदूरी करने भी नहीं जा सकता.

Jharkhand News: झारखंड के गुमला जिले में विलुप्त आदिम जनजाति बिरहोर का एक परिवार संकट में है. आदिम जनजातियों की सुरक्षा को लेकर कई तरह की योजनाएं चला रही हैं, परंतु यह परिवार सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित है. इन लोगों के पास न रहने के लिए घर है और न खाने के लिए भोजन. ये परिवार स्कूल के बरामदे में रहता है. सिसई प्रखंड के शिवनाथपुर खेर्रा गांव के ठनका बिरहोर व देवमनी देवी चलने-फिरने में असमर्थ हैं. इनका एक बेटा महावीर बिरहोर है. स्नातक पास है, लेकिन बेरोजगार है. गांव में काम नहीं है. बीमार माता-पिता को छोड़कर दूसरी जगह मजदूरी करने भी नहीं जा सकता. इन्हें जल्द मदद की जरूरत है.

घूमते हुए खेर्रा गांव पहुंचे थे

बिरहोर जनजाति के लोग घुमक्कड़ हैं. घूमते-फिरते रहते हैं. जहां आश्रय मिलता है. वहीं रुक जाते हैं. जंगल व पहाड़ इनका घर है, परंतु अपने कबीले वालों से बिछड़ने के बाद ठनका बिरहोर व देवमनी देवी भटकते हुए खेर्रा गांव पहुंच गये थे, जहां वे झोपड़ी बनाकर रहने लगे. उसी गांव का चौकीदार सुरेंद्र कुमार बड़ाइक था, जो ठनका व देवमनी के बेटे महावीर को अपने पास रख लिया. उसे पढ़ाया लिखाया. स्नातक तक डिग्री दिलायी, परंतु तीन माह पहले चौकीदार की मौत हो गयी. इससे अब यह परिवार संकट में आ गया है. महावीर ने कहा कि ग्रामीणों की मदद से जाति, आवासीय, आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनाया गया, लेकिन इस परिवार के पास रहने के लिए छत व खाने के लिए अनाज नहीं है. स्कूल के बरामदे में रहते हैं.

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सरकार से मदद की आस

खेर्रा गांव के महावीर बिरहोर कहते हैं कि मेरे माता पिता वृद्ध हो गये हैं. बीमार भी हैं. रहने के लिए घर नहीं है. सरकार की योजना के तहत अगर प्रशासन मुझे कुछ काम दे दे तो मैं अपने माता-पिता को अच्छी तरह पाल सकता हूं.

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रिपोर्ट: दुर्जय पासवान

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