Kho Kho Player In Jharkhand, गुमला न्यूज (प्रेम भगत) : झारखंड के गुमला जिले के डुमरी प्रखंड के गनीदरा गांव की आदिम जनजाति परिवार की खोखो खिलाड़ी सुमंती कोरवा वर्षों से गुमनाम की जिंदगी जीने को विवश है. सुमंती जिला स्तर की खिलाड़ी थी. जिसका चयन राष्ट्रीय टीम के लिए हुआ था, परंतु गरीबी के कारण वह प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकी. सुमंती ने बताया कि जब वह कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय डुमरी की छात्रा थी. बीमारी व गरीबी के कारण परीक्षा भी नहीं दे पायी. इसी कारण पढ़ाई भी छूट गयी. सुमंती व उसके पिता दशवा कोरवा ने सरकार से मदद की गुहार लगायी है.
वर्ष 2015 में बोकारो में राज्य स्तरीय विद्यालय खोखो प्रतियोगिता हुई थी. गुमला की टीम उपविजेता रही थी, परंतु सुमंती का राष्ट्रीय टीम के लिए चयन किया गया था. उसके बाद उसे ट्रायल के लिए इंदौर बुलाया गया था. बीमार होने के कारण ट्रायल में शामिल नहीं हो सकी. उसके बाद किसी ने सुमंती का हालचाल नहीं पूछा. कहा कि वर्ष 2017 में डुमरी महाविद्यालय डुमरी में बीए पार्ट वन में नामांकन करायी थी. बीमारी व गरीबी के कारण परीक्षा भी नहीं दे पायी. इसी कारण पढ़ाई भी छूट गयी.
Also Read: ह्यूमन ट्रैफिकिंग के खिलाफ हेमंत सोरेन सरकार सख्त, दिल्ली से 26 लड़के-लड़कियों को कराया गया मुक्तसुमंती ने कहा कि घर की दयनीय स्थिति व बीमारी के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रही हूं. उसने सरकार से गुहार लगायी है कि सरकार द्वारा पढ़े-लिखे आदिम जनजाति युवक-युवतियों को सीधी नियुक्ति पर नौकरी देने का प्रावधान है. मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मुझे नौकरी दें या फिर आगे की पढ़ाई करने के लिए आर्थिक मदद करें.
Also Read: Jharkhand Weather Forecast:झारखंड में फिर Monsoon सक्रिय, इन जिलों में भारी बारिश, हफ्तेभर ऐसा रहेगा मौसमसुमंती के पिता दशवा कोरवा ने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. मैं बूढ़ा हो गया हूं. मैं दो वर्षों से लकवा से ग्रसित हूं. पैसे के अभाव में इलाज नहीं हो पाया है. घर में सामूहिक रूप से बेटी, बेटा-बहू और बच्चे रहते हैं. तीन जवान बेटे जो शादीशुदा हैं. वे लोग रोज दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. इन्हीं लोगों के ऊपर घर परिवार का खर्चा चलाने की जिम्मेदारी हैं. मनरेगा में काम मिलता है, तो उसमें काम करने जाते हैं और कुछ काम नहीं मिलता है, तो लकड़ी बेचने का काम करते हैं.
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