Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Gumla News, गुमला (जगरनाथ/जॉली) : जनजातीय बहुल गुमला जिले में मकर संक्रांति के अवसर पर भव्य मेला लगाने की प्राचीन परंपरा रही है. यह परंपरा वर्षों पुराना है, लेकिन इसबार कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रशासन ने मेला लगाने की अनुमति नहीं दी है. प्रशासन के आदेश के बाद मेला आयोजन समिति ने भी मेला नहीं लगाने का निर्णय लिया है. लेकिन, मंदिर में पूजा- पाठ होगी. रथयात्रा खींची जायेगी. इसके लिए प्रशासन ने मंदिर के पुजारियों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया है. मंदिर में पूजा- पाठ के दौरान भीड़ नहीं लगाने और एक-एक कर मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गयी है.
यहां बता दें कि गुमला जिले के रायडीह प्रखंड के हीरादह, सिसई के नागफेनी, बसिया के बाघमुंडा में मेला लगता है. इसके अलावा अन्य प्रखंडों में भी मेला लगता है, लेकिन नागफेनी व हीरादह में लगने वाले मेला में झारखंड सहित ओड़िशा, छत्तीसगढ़ व बिहार राज्य के लोग आते हैं. हजारों भक्त पूरी श्रद्धा के साथ कोयल नदी में डुबकी लगाते हैं और भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा की पूजा अर्चना करते हैं.
नागफेनी में लगभग 60 से 70 और हीरादह में 40 से 50 हजार भक्त पूजा के लिए आते हैं. वहीं, कोयल नदी के किनारे बैठकर तिल, गुड़, चूड़ा, दही खाते हैं. इसी भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने मेला लगाने पर रोक लगाते हुए सिर्फ पूजा- पाठ करने की अनुमति दी है.
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रायडीह प्रखंड से 22 किमी दूर हीरादह गांव में 14 जनवरी, 1954 से मकर संक्रांति के अवसर पर रथयात्रा की परंपरा शुरू हुई है, जो अनवरत जारी है. सिसई प्रखंड के नागफेनी कोयल तट के किनारे मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाले मेले का इतिहास 65 वर्ष भी अधिक पुराना है. NH Road के किनारे होने के कारण यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है. नागफेनी में देखने के कई प्राचीन ऐतिहासिक स्रोत है. इस वजह से यहां लोगों की भीड़ देखते ही बनती है. नागफेनी के पुजारी अनिल पंडा ने कहा कि मेला लगाने के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी गयी थी. लेकिन, अनुमति नहीं मिलने के कारण मेला स्थगित कर दिया गया है. सिर्फ पूजा- पाठ का आयोजन होगा और सोशल डिस्टैंसिंग के तहत रथ खींची जायेगी.
1700 ईस्वी के आसपास गुमला जिले में नागवंशी राजाओं का शासन था. नागवंशी राजा उस समय अपनी शक्ति व राज्य विस्तार के लिए मेला लगाते थे. कलांतर में यह मेला का रूप धारण कर लिया. नागवंशी राजाओं द्वारा शुरू की गयी मेला की परंपरा आज वृहत रूप ले लिया है. यही वजह है कि जनजातीय बहुल गुमला जिले में मेला लगाने की प्राचीन परंपरा है. समय के साथ मेला का स्वरूप बदला है, लेकिन आज भी गुमला में लोगों का विश्वास भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के प्रति है. मकर संक्रांति के अवसर पर नागफेनी व हीरादह नदी में डुबकी लगाने के साथ लोग भगवान की जरूर पूजा करते हैं. हालांकि, 20 दिसंबर से ही गुमला जिले के गांवों में पूस मेला लगाने की परंपरा शुरू हो जाती है जो कई गांवों में 14 जनवरी तक जारी रहता है.
गुमला में आज से 100 वर्ष पहले घोड़ा गाड़ी व बैलगाड़ी की परंपरा थी. उसी से लोग मेला आते थे. 50 से 100 किमी की दूरी पर रहने वाले लोग एक या फिर दो दिन पहले मेला के लिए निकलते थे. लेकिन अब समय बदल गया है. इस वैज्ञानिक युग में मोटर गाड़ी है. इसलिए आने- जाने का साधन सुगम हुआ. लेकिन मेला का महत्व आज भी वर्षों पुराना है.
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गुमला में मकर संक्रांति का सामाजिक महत्व इस मायने में है कि शादी- विवाह, परजिनों से मिलन व विचारों का आदान- प्रदान होता है. इस दिन दूर- दराज के लोग मेला देखने पहुंचते हैं. गांव की परंपरा के अनुसार, मेला में लड़का- लड़की देखा- देखी भी होता है. अगर पसंद आ गया, तो तिथि तय कर शादी की रस्म निभायी जाती है. वहीं, दूर- दराज के रिश्तेदार मेला में आते हैं. जहां घर व परिवार के कुशल मंगल के बारे में पूछा जाता है. संदेश के रूप में मिठाई का आदान- प्रदान किया जाता है. रथयात्रा का महत्व गांव के लोगों के लिए काफी मायने रखता है. इसी परंपरा के तहत रथ यात्रा में लोगों की भीड़ दूर- दूर से आती है.
मकर संक्रांति को लेकर गुमला जिले के सभी 12 प्रखंडों में जगह- जगह तिलकुट की दुकान सजी हुई है. दूसरे राज्य से आये कारीगर तिलकुट बनाकर बेच रहे हैं. चारों तरफ तिलकुट की सोंधी महक लोगों को मकर संक्रांति का अहसास दिला रहा है. गुमला शहर में 50 से अधिक तिलकुट दुकान लगी है. जहां बुधवार को खरीदारों की भीड़ देखी गयी.
Posted By : Samir Ranjan.