Prabhat Khabar Special: लगभग 200 एकड़ भूमि को सिंचित करने वाली लिफ्ट इरिगेशन मशीन पिछले 14 सालों से बेकार पड़ी हुई है. मशीन के बेकार होने के कारण गेहूं, मटर और मिर्चा की खेती प्रभावित हो गयी. सबसे ज्यादा प्रभावित गेहूं की खेती हुई है. अब क्षेत्र के किसान बरसाती पानी के भरोसे सिर्फ धान की खेती करते हैं. हम बात कर रहे हैं गुमला के सिसई प्रखंड अंतर्गत नागफेनी गांव में श्री जगन्नाथ मंदिर के सामने सरकारी योजना से लगाये गये लिफ्ट इरिगेशन की.
1980 में लिफ्ट इरिगेशन मशीन लगाया गया
कृषि कार्य को बढ़ावा देने और किसानों को सिंचाई की सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से वर्ष 1980 में लिफ्ट इरिगेशन मशीन लगाया किया गया था. जिसमें 25-25 एचपी का इलेक्ट्रिक मशीन लगाया गया है. इसके साथ ही पाइप लाइन लगाया गया और नहर बनाया गया. वहीं, मशीन वाले भवन के सामने एक सरकारी क्वार्टर भी बनाया गया है. जहां दो सरकारी कर्मचारी रहते थे. एक मशीन ऑपरेटर और एक चौकीदार था. सिंचाई की सुविधा मिलने से क्षेत्र के किसान काफी खुश थे. कृषि कार्य को बढ़ावा मिला और किसान गेहूं, मटर व मिर्चा की खेती करने लगे. सबसे ज्यादा खेती गेहूं की करते थे. मशीन लगने के बाद कई बार मशीन खराब हुई. जिसे मरम्मत कर दोबारा उपयोग में लाया गया. लेकिन, 1991 में जब मशीन खराब हुई, तो चालू नहीं किया गया.
राजीव गांधी के आगमन पर हुई थी मरम्मत
साल 1991 में मशीन खराब हुई. इसके बाद दो-तीन माह तक मशीन से पानी की आपूर्ति नहीं हो पाया. इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (अब स्वर्गीय) का गुमला आगमन होने वाला था. उनके आगमन को लेकर आनन-फानन में खराब मशीन को बदलकर नया मशीन लगाया गया. नया मशीन लगने से किसानों को फिर से सिंचाई की सुविधा मिली. इसके बाद फिर से 1997 में एक मशीन जल गयी. मशीन जलने के लगभग एक साल बाद 1998-99 में मशीन की मरम्मत के लिए टेंडर हुआ. मरम्मत में लगभग 10 लाख रुपये खर्च किया गया. जिसमें इलेक्ट्रिक मशीन की जगह डीजल मशीन लगाया गया. इसके साथ ही पाइप लाइन और नहर का भी मरम्मत किया गया. चूंकि शुरूआती समय में मशीन बिजली से चलती थी. इसलिए किसानों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हुई.
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लेकिन, 10 लाख खर्च कर इलेक्ट्रिक की जगह डीजल मशीन लगने से किसानों के समक्ष परेशानी उत्पन्न हो गयी. किसान डीजल का खर्चा वहन करने में असमर्थ थे. जिस कारण मशीन का उपयोग बंद हो गया. मशीन चलना बंद होने के कारण मशीन फिर से खराब हो गया. इसके बाद वर्ष 2007-08 में फिर से मशीन की मरम्मत के लिए टेंडर हुआ. एमआई विभाग से निकाले गये टेंडर में मरम्मत के नाम पर लगभग 20 लाख रुपये खर्च किया गया. जिसमें डीजल मशीन को हटाकर फिर से इलेक्ट्रिक मशीन लगाया गया. इलेक्ट्रिक मशीन लगने से किसान लाभान्वित हुए, लेकिन एक साल बाद ही वहां के दोनों कर्मचारी मशीन ऑपरेटर और चौकीदारी सेवानिवृत्त हो गये. उन दोनों की सेवानिवृत्ति के बाद किसी की बहाली नहीं हुई. जिस कारण मशीन फिर से बंद हो गया. जो अब खराब पड़ा हुआ है. वहीं क्वार्टर भी जर्जर स्थिति में है.
किसानों की सुनायी अपनी पीड़ा
बाबूलाल साहू, कृष्णा साहू, हरि साहू, शिनचर पहान, लालमोहन साहू, जगरनाथ साहू, अनिल कुमार पंडा, रीझु साहू, महावीर साहू, बाबुराम उरांव, महली उरांव आदि किसानों ने बताया कि मरम्मत के नाम पर लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी मशीन की उपयोगिता साबित नहीं हो पा रहा है. पिछले 14 सालों से मशीन खराब पड़ा हुआ है. लेकिन, इसपर प्रशासनिक ध्यान नहीं है. मशीन ठीक था तो 200 एकड़ से भी अधिक भूमि सिंचित होती थी. गेहूं, मटर और मिर्चा की खेती करते थे. लेकिन, मशीन खराब होने के कारण सिंचाई सुविधा नहीं मिल रही है. अब गेहूं, मटर और मिर्चा की खेती नहीं होती है. बरसाती पानी के भरोसे सिर्फ धान की खेती करते हैं.
रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.