24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुमला का घाटो बगीचा है सबसे पुराना रामनवमी अखाड़ा, 103 साल पहले ऐसे मनाया जाता था

रामनवमी के दिन कई राज्यों के लोग गुमला में गाय बेचने व खरीदने जुटते थे. उस जमाने में गाड़ी नहीं चलती थी. लोग पैदल आते थे. गाय बेचने व खरीदने के बाद रात को गुमला में ही विश्राम करते थे.

गुमला शहर का सबसे पुराना रामनवमी अखाड़ा घाटो बगीचा है. इस अखाड़ा का इतिहास 103 साल पुराना है. 1920 ई में घाटो बगीचा में रामनवमी पूजा की शुरूआत की गयी थी. गदा से खेल होता था. पहलवान जुटते थे. कुश्ती होती थी. देखने वालों की भीड़ जुटती थी. उस जमाने में एकमात्र अखाड़ा घाटो बगीचा में होने के कारण लोग यहां दूर-दूर से आते थे. उस समय गुमला शहर के बाजार टाड़ में गौ मेला लगता था.

कई राज्यों के लोग गुमला में गाय बेचने व खरीदने जुटते थे. उस जमाने में गाड़ी नहीं चलती थी. लोग पैदल आते थे. गाय बेचने व खरीदने के बाद रात को गुमला में ही विश्राम करते थे. इसलिए थकान दूर करने, मनोरंजन व धार्मिक आस्था को लेकर घाटो बगीचा में अखाड़ा की शुरूआत की गयी थी. तब से यह अखाड़ा चल रहा है. हालांकि अब गदा से खेल नहीं होता. न ही पहलवान जुटते हैं. गदा की जगह लाठी, डंडा, बलुवा, भाला, तलवार ले लिया है.

राधाकृष्ण साव सबसे बड़े पहलवान थे

बताया जाता है कि घाटो बगीचा में स्व राधाकृष्ण साव, स्व रामचन्द्र साव, स्व रामवृक्ष साव, स्व खदेरन मिस्त्री, स्व बिष्टु महंती, स्व गुलसहाय भुइयां ने रामनवमी अखाड़ा की नींव रखे थे. मशाल जलाकर खेल हुआ करता था. उस समय घाटो बगीचा के सबसे बड़े पहलवान राधाकृष्ण थे, जो दूसरे राज्यों व जिलों से आने वाले पहलवानों से लड़ते थे. मनोरंजन के मकसद से मिट्टी के धूल पर जब पहलवान लड़ते थे, तो लोग उन्हें देखने के लिए भीड़ लगा देते थे.

1920 ई में मंदिर व कुआं की स्थापना हुई

घाटो बगीचा के रामनवमी अखाड़ा का जो इतिहास है. उसी इतिहास से घाटो बगीचा के मंदिर व कुआं का भी इतिहास जुड़ा हुआ है. 1920 ई में जब रामनवमी का अखाड़ा सजने लगी, तो वहीं पास एक चबूतरा बनाया गया. चबूतरा में भगवान हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गयी. बड़ाइक देवनंदन सिंह ने मंदिर बनाने के लिए जमीन दिये. कुआं खोदने में स्व टोहन बाबू ने मदद किये थे. घाटो बगीचा के लोगों ने कहा कि मंदिर बन गया. अखाड़ा लगने लगी है. पानी की दिक्कत होती है. इसपर टोहन बाबू ने लोगों की मांग पर घाटो बगीचा मंदिर के सामने कुआं खुदवाया था. यह कुआं आज भी जीवित है.

जुलूस पहले घाटो बगीचा में आती है

घाटो बगीचा में आज घनी आबादी है. परंतु 1920 के आसपास कुछ ही घर थे. मंदिर के समीप बड़ा मैदान हुआ करता था. अब वहां अनगिनत घर बन गये हैं. अखाड़ा के लिए कुछ जगह बचा हुआ है. समय के साथ रामनवमी अखाड़ा का लाइसेंस भी बना. पहले जगदीश केशरी व सत्यनारायण प्रसाद के नाम से अखाड़ा का लाइसेंस था. परंतु इनके वृद्ध होने के बाद अखाड़ा का लाइसेंस गोपाल केशरी के नाम पर है.

परंपरा के अनुसार रामनवमी का जुलूस पहले घाटो बगीचा पहुंचता है. इसके बाद ही गुमला शहर में भ्रमण करती है. यह परंपरा आज भी जीवित है. हालांकि दो वर्षो से कोरोना के कारण यहां सिर्फ अखाड़ा पूजा हो रही थी. इस वर्ष यहां धूमधाम से पूजा होगी और अखाड़ा भी लगेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें