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Jharkhand: पति से अलग होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी सेवंती भगत, खुद के दम पर ऐसे किया सपनों को पूरा

पति से अलग होने के बाद सेवंती भगत कभी अपने परिवार के साथ दो कमरे के किराये के मकान में रहती थीं. आय के स्त्रोत के नाम पर उनके पास केवल पारा शिक्षक की नौकरी थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दी.

गुमला: महिलाएं आज हर कदम पर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. अगर वो चाहे तो अपने दम पर न सिर्फ अपनी जिंदगी बदल सकती है बल्कि समाज को भी नयी दिशा दिखा सकती है. ये बातें आज गुमला जिला के घाघरा प्रखंड निवासी सेवंती भगत पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. जो पेशे से एक सरकारी शिक्षक हैं. कभी दो कमरे के किराया के मकान में परिवार के साथ रहने वाली महिला आज न सिर्फ अपने बलबूते घर बनायी बल्कि बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दी. उनके दो बच्चे हैं. उनका बेटा आज सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा है और बेटी रांची के गोस्सनर कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रही है.

लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए इतना आसान नहीं था. वजह थी साल 2006 में उनका अपने पति से अलग होना. पति से अलग होने के बाद उनके पास सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को अच्छी शिक्षा देने को लेकर थी. क्योंकि आय के स्त्रोत के नाम पर उनके पास केवल पारा शिक्षक की नौकरी थी. पैसे इतने नहीं थे कि वो उस पैसे से घर और बच्चों को खर्च वहन कर सकें. इस वजह से आय के स्त्रोत बढ़ाने के लिए उन्होंने कई कंपनियों में नेटवर्किंग का काम शुरू किया. आय बढ़ी तो उन्होंने सबसे पहले स्कूटी खरीदी.

सेवंती भगत बताती हैं कि साल 1993 में मेरी शादी हुई थी. तब मैं इंटर की पढ़ाई कर रही थी. शादी के बाद मैंने इंटर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास की. उस वक्त पति के पास जॉब नहीं थी. जिस कारण मेरे सामने आगे पढ़ाई जारी रखने की चुनौती थी. सास ससुर ने आगे पढ़ाने से मना कर दिया. किसी तरह मैंने पैसे का प्रबंध करके स्नातक में दाखिला तो ले लिया लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. पढ़ाई प्रभावित न हों इसके लिए मैं घर वालों के सो जाने के बाद देर रात तक पढ़ाई करती थी. इसी तरह मैंने साल 1999 में स्नातक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से पास की.

वर्ष 2003 में मैंने एक गांव के स्कूल में पारा शिक्षक के तौर पर पढ़ाना शुरू किया. लेकिन साल 2006 में मैंने व्यक्तिगत कारणों से पति से अलग होने का फैसला लिया. नौकरी और नेटवर्किंग का काम करने की वजह से मुझे पढ़ने का समय नहीं मिलता था. इस कारण मैं रात 10 बजे के बाद पढ़ती थी. इसी तरह साल 2011 में डिप्लोमा प्राइमरी एजुकेशन ट्रेनिंग की परीक्षा पास की. इसके बाद साल 2013 में मैंने टेट परीक्षा भी पास ली.

इस दौरान मेरे सामने कई चुनौतियां आयीं. कभी कभी ऐसा लगता था कि मैं कभी सफल हो पाऊंगी या नहीं. लेकिन हिम्मत नहीं हारी. वर्ष 2016 में पहली मेरिट लिस्ट में ही मैरा चयन चाईबासा जिले में प्राइमरी शिक्षक के तौर पर हो गया. लेकिन मेरी इच्छा अपने गृह जिले में ही नौकरी करने की थी इस कारण मैंने ज्वॉइन नहीं किया. लेकिन दूसरी मेरिट लिस्ट में मेरा चयन गुमला जिला के लिए हो गया. आपको बता दें कि उनका बेटा 7वीं जेपीएससी में अपने पहले ही प्रयास में इंटरव्यू तक का सफर तय किया था. सेवंती भगत की पहचान घाघरा प्रखंड में समाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी है.

रिपोर्ट- समीर उरांव

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