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झारखंड के दैहर व सोहरा गांव के बौद्ध सर्किट से जुड़ने की आस बढ़ी, बन सकता है अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र

Jharkhand News: बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के बोधगया के साथ आत्मिक संबंध के प्रमाणों की तरह ही इस क्षेत्र में अनेक ऐसे प्रमाण बिखरे पड़े हैं. बौद्ध धर्म के अवशेष क्षेत्र के मानगढ़, दैहर, सोहरा एवं हथिन्दर गांवों में हैं. मानगढ़ में झारखंड के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की पहचान हुई है.

Jharkhand News: झारखंड-बिहार के सीमावर्ती हजारीबाग जिले के चौपारण प्रखंड की मिट्टी में दफन ऐतिहासिक पुरातात्विक अवशेष को अब पहचान मिलने की आस बढ़ने लगी है. दैहर, सोहरा एवं हथिन्दर गांव में 72 वर्ष पूर्व ग्रामीणों द्वारा खुदाई में बरामद बौद्ध अवशेष एवं दर्जनों विखंडित मूर्तियों का राज खुलने लगा है. उत्खनन में प्राप्त मूर्तियों में लिखी गयी विशेष लिपि के अध्ययन के लिए प्रदेश से लेकर देश स्तर के पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञ गांव पहुंचने लगे हैं. पुरातत्व विभाग के दिल्ली स्थित मुख्य कार्यालय से लिपि विशेषज्ञ डॉ अर्पिता रंजना ने दैहर गांव पहुंचकर बिखरी मूर्तियों को बारीकी से देखा.

कुआं खुदायी में निकली थीं मूर्तियां

इस गांव की मिट्टी में वर्षों से दफन मूर्तियां 1948-50 के आसपास एक कुआं की खुदायी के दरम्यान बरामद हुई थीं. गांव के नागेंद्र कुशवाहा की मानें तो तत्कालीन मुखिया जगरनाथ सिंह को ग्रामीणों के सहयोग से पुराने कुआं की सफाई में दर्जनों मूर्तियां मिली थीं. वहीं पास के गांव सोहरा में भी खुदाई में मूर्तियां मिली हैं. मुखिया ने सभी पौराणिक मूर्तियों को मंदिरों में स्थापित कराया था. शेष विखंडित मूर्तियां जहां-तहां यूं ही पड़ी हैं. इसमें बहुत सी मूर्तियां चोरी भी हो गयीं.

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मानगढ़ में झारखंड के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की पहचान

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के बोधगया के साथ आत्मिक संबंध के प्रमाणों की तरह ही इस क्षेत्र में अनेक ऐसे प्रमाण बिखरे पड़े हैं. बौद्ध धर्म के अवशेष क्षेत्र के मानगढ़, दैहर, सोहरा एवं हथिन्दर गांवों में हैं. मानगढ़ में जहां झारखंड के सबसे बड़े बौद्ध स्तूप की पहचान हुई है, वहीं दैहर व सोहरा के मंदिर में बौद्ध धर्म की देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं. आज भी सनातन धर्मावलंबी इन मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं. इन क्षेत्रों के कई इतिहासकार, विश्लेषक एवं बौद्ध भिक्षुओं ने भ्रमण कर इन बातों को स्वीकार किया है.

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समृद्ध परंपरा व बड़ी आबादी रहने के प्रमाण

आपको बता दें कि पिछले दो दशक में प्रशासनिक प्रयास से क्षेत्र में कई इतिहासकार, विश्लेषक इन गांवों तक पहुंचकर पौराणिक मूर्तियों, स्तूप की जानकारी ले चुके हैं. जिसमें पुरातत्व विभाग, पटना जोन के वैज्ञानिक डॉ राजेन्द्र देहुरी, रांची जोन के डॉ नीरज मिश्रा, नालंदा विश्वविद्यालय के डॉ विश्वजीत कुमार, डॉ रूबी कुमारी, कला साहित्य विभाग के डॉ हरेंद्र सिन्हा, बौद्ध भिक्षु भंते तिस्सोवरे, हजारीबाग से डॉ मिहिर, मृत्युंजय कुमार सहित बंगाल व अन्य राज्यों से कई लोग दैहर पहुंच चुके हैं. दैहर, सोहरा, मानगढ़, हथिंदर गांव में बड़े पैमाने पर खुदाई की आवश्यकता है. विशेषज्ञों के अनुसार क्षेत्र में दो हजार साल पूर्व की समृद्ध परंपरा व बड़ी आबादी रहने के प्रमाण हैं.

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बन सकता है अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र

यदि इस क्षेत्र को बौद्ध सर्किट से जोड़कर देखा जाए, तो यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र बन सकता है. राजनीतिक प्रयासों से इन इलाकों की प्रामाणिकता को पुष्टि करने के बाद यह पूरा इलाका बौद्ध सर्किट से जुड़ने से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है. बोधगया से नजदीकी, जीटी रोड से सुगमता, इटखोरी से नजदीकी के कारण यह क्षेत्र बौद्ध पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सकता है.

रिपोर्ट: अजय ठाकुर

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