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रूस- यूक्रेन युद्ध : पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा बोले- भारत को मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए

jharkhand news: रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि भारत को मध्यस्थत की भूमिका निभानी चाहिए. वहीं, पीएम माेदी को खुद रूसी राष्ट्रपति से मध्यस्थता को लेकर बातचीत करनी चाहिए.

Jharkhand news: पूर्व विदेश मंत्री सह तृणमूल कांग्रेस के केंद्रीय उपाध्यक्ष यशवंत सिन्हा ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत को मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने फोन कर भारत से मदद मांगी है. रूस से भारत की मित्रता का लम्बा इतिहास रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तत्काल विदेश मंत्री एस जयशंकर को मास्को भेजकर रूस पर दबाव बनाना चाहिए, या खुद प्रधानमंत्री को रूसी राष्ट्रपति से मध्यस्थता को लेकर बातचीत करनी चाहिए. पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने प्रभात खबर से लंबी बातचीत की है.

पहले विश्व शांतिदूत बनें

श्री सिन्हा ने कहा कि दुनिया में कई देश फ्रांस, जर्मनी और इजराइल भी मध्यस्थता के लिए प्रयासरत हैं. इन देशों से भी भारत को मिलकर विश्व शांति के लिए सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है. विश्व गुरु बनने के लिए जरूरी है कि विश्व शांतिदूत पहले बनें. कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के 6 दिन गुजरने पर विश्व पटल पर आर्थिक, विदेश नीति और कई देशों में क्या प्रभाव पडने वाला है.

सवाल : रूस-यूक्रेन युद्ध लुहांस्क और डोनेटास्क को स्वतंत्र देश घोषित करना मुख्य कारण मानते हैं?

जवाब : दुनिया में किसी देश को यह अधिकार नहीं है कि किसी देश में हमलाकर उसके सीमा को बदला जाय. लेकिन, यह परंपरा अमेरिका ने शुरू किया है. लीबिया और इराक में अपने पसंद के शासक बनाने के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय फोरम को नजरअंदाज कर दोनों देशों पर हमला किया था. उस समय भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अन्य संस्थानों की भूमिका गौण थी. अमेरिका ने अपने समर्थक देशों का गुट बनाकर युद्ध में शामिल कर लिया था. अमेरिका ने सिर्फ किसी देश के शासक को बदला था, लेकिन रूस ने एक कदम आगे बढ़कर यूक्रेन में शासक बदलने के साथ देश का क्षेत्रफल को बांटने का काम किया.

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सवाल : रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे विश्वयुद्ध की ओर जा रहा है?

जवाब : रूस यूक्रेन युद्ध के 6 दिनों तक सिर्फ दुनिया देख रही है. कुछ कर नहीं रहा है. नाटो की सेना यूरोपीय देश में तैयार है, लेकिन लड़ाई में भाग नहीं ले रही है. रूस और चीन ने युद्ध से पहले आपस में जरूर समझौता कर लिया है. यूरोपीय देश के साथ अमेरिका लड़ाई की बजाय प्रतिबंध की घोषणा कर रहा है. इसलिए तीसरा विश्व युद्ध की संभावना नहीं है.

सवाल : अमेरिका, यूरोपीय देश और अन्य फोरम के प्रतिबंध का रूस पर क्या असर पड़ेगा?

जवाब : रूस क्रूड वाइल निर्यात में विश्व में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है. प्रतिबंध में क्रूड वायल रोकने का अभी तक प्रस्ताव नहीं है. गैस पाइपलाइन का काम रोकने और खाद्य सामग्री एवं कारोबार पर प्रतिबंध की बात हो रही है, जबकि रूस और चीन समेत कई देशों में इनका कारोबार होगा. रूस पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. विश्व अर्थव्यवस्था का जरूर असर पड़ेगा.

सवाल : यूक्रेन के लुहांस्क और डोनेटास्क की जनता और क्षेत्र के साथ नाइंसाफी हो रही थी?

जवाब : दुनिया के सभी देशों में धार्मिक, भाषा, क्षेत्रीय आधार पर अल्पसंख्यक रहते हैं. अमेरिका, भारत, बंग्लादेश, पाकिस्तान, चीन समेत सभी देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और विकास को लेकर हमेशा आवाज उठते हैं. कई तरह के आरोप भी लगते हैं. लेकिन, इसका माने यह नहीं है कि कोई दूसरा देश हमला कर दें. यूक्रेन के इन दो शहरों में रसियन के साथ अगर कोई न इंसाफी हो रही थी, तो यूक्रेन पर दबाव बनाना चाहिए. हमला कहीं से भी उचित नहीं है.

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सवाल : यूक्रेन में भारतीय छात्रों के साथ मारपीट और ठीक व्यवहार नहीं होने का क्या कारण है?

जवाब : यूक्रेन में क्या होनेवाला है. इसकी जानकारी हमलोगों से पहले देश के शासकों को पता चल जाता है. भारतीयों को विशेष कर छात्रों को यूक्रेन से बहुत पहले लाना चाहिए था. इसमें देरी हुई है. इराक युद्ध के समय एक लाख 70 हजार के लगभग भारतीयों को मात्र तीन माह में भारत लाया गया था.

सवाल : रूस यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका में पक्ष-विपक्ष का योगदान क्या होना चाहिए?

जवाब : प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान युद्ध के समय विश्व फोरम पर बातचीत के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा था. जयप्रकाश नारायण को भी कई सोशलिस्ट देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा गया था. पक्ष और विपक्ष के नेता हमेशा एक प्लेटफाॅर्म पर रहे हैं. भारत का यह इतिहास रहा है. लेकिन, वर्तमान केंद्र सरकार विपक्ष को महत्व नहीं देती है. यह परंपरा भी अभी दिख नहीं रही है.

रिपोर्ट : सलाउद्दीन, हजारीबाग.

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