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karma Puja 2021 :भाई-बहनों के स्नेह का प्रतीक करमा पर्व की ये है परंपरा, विवाहित बहनें मायके में करती हैं पूजा

करमा पर्व भारत के झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा में मनाया जाता है. करमा पर्व 7 दिनों तक चलता रहता है. इस पर्व की शुरुआत तीज पर्व के संपन्न होने के बाद शुरू हो जाती है. तीज का डाला अहले सुबह नदियों व तालाबों में विसर्जन किया जाता है.

karma Puja 2021, हजारीबाग न्यूज (संजय सागर) : करमा पर्व भाई-बहन के सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व का इंतजार कुंवारी व विवाहित बहनें बेसब्री से करती हैं. विवाहित बहनों को भी करमा पर्व का इंतजार रहता है क्योंकि विवाहित बहनें कर्मा की पूजा करने के लिए अपनी ससुराल से 1 सप्ताह पहले ही मायके पहुंचती हैं और करमा पूजा की तैयारी में जुट जाती हैं. करमा के लोकगीतों में भाई-बहनों के स्नेह, प्यार, खुशी, दर्द व पीड़ा झलकती है.

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करमा पर्व भारत के झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा में मनाया जाता है. करमा पर्व 7 दिनों तक चलता रहता है. इस पर्व की शुरुआत तीज पर्व के संपन्न होने के बाद शुरू हो जाती है. तीज का डाला अहले सुबह नदियों व तालाबों में विसर्जन किया जाता है. वहीं शाम को कुंवारी बहनों के द्वारा करमा का डाला स्थापित किया जाता है. कुंवारी बहनें अपने-अपने घरों से गीत गाते हुए बांस के डाला लेकर नदी व तालाब पहुंचती हैं. जहां वे स्नान कर नदियों व तलाबों से डाला में बालू लाकर अखाड़ों में सारी बहनें बैठती हैं. उसी दौरान डाला में विभिन्न तरह के बीजों को जौ के साथ बुनती हैं.

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इस दौरान ये गीत गाया जाता है.

करम के जाड़ तक बुनली जावा रे

ओरे सखी सब जावा देलथिन खिंदाय रे.

घोड़वा चढ़िएले एलथिन भइया राजीव रे…

मत कांदो मत खींजो बहिन फुल कुमारी रे

ओरे सखी फिर जावा होतउ हदबुद रे…

इस गीत में भाई-बहन के बीच पौधा को लेकर दर्द व पीड़ा झलकती है. अपने भाइयों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए बहनें विभिन्न तरह का बीज बोती हैं. अचानक जानवर द्वारा पौधों को नुकसान पहुंचा दिया जाता है. जिससे बहनों को पीड़ा होती है. जिसे देखकर भाई भी अपनी बहन को सांत्वना देते हैं और भाई संकल्प लेता है बहन की खुशियों को लौटाएगा. भाई बहनों को सांत्वना देते हुए कहता है कि मत रो बहना, तेरी हर खुशी के लिये फसल उगाएंगे. फिर से लहरा उठेंगे तेरी फसलें.

करम के लिए डाले में स्थापित किए गए बीजों को जावा कहा जाता है. इस दौरान से 7 दिनों तक सुबह शाम बहनें जावा जोगाती हैं अर्थात जावा को पूजा अर्चना कर वे लोकगीत के साथ गाती व झूमती हैं.

जावा को जगाने वाला गीत-

गोड़ा-तोरा लागो हियो, भुवां धरती मइया हो

हमर जावा है माइयेन रखिया हो…

(इस गाने में जावा को सुरक्षित करने के लिए धरती माता के लिए गीत गाए जाते हैं और धरती माता खुश होकर फसल को हरा भरा कर देती हैं. इस गाने से यह संदेश मिलता है कि धरती माता का पूजा करने से हर वर्ष फसलों का उत्पादन अधिक होता है. धरती माता की पूजा करने से क्षेत्र में अनाजों व फल सब्जियों का अधिक से अधिक उत्पादन होता है.)

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करम के डाला को जगाने के लिए भाई बहनों से संबंधित दर्जनों गीत हैं. उन गीतों में से कुछ गीत इस प्रकार हैं…

गइया के घंटिए बाजे रे रुनुझुनूं बांसिइये बजावे रे भैया…

मच्छीये बैठेलय तोहें भाई रे संजईया भइया …

इस गीत में बहनें भाइयों लिए कामना करती हैं कि हमारे भाइयों पर मक्खी कभी न बैठे. जिस तरह से गायों के गले में घंटी बजने से खुशियां झलकती हैं,उसी तरह हमारे भाई भी वंशी बजाकर खुशी से रहें. इस तरह के गीत और नृत्य 7 दिनों तक चलते रहते हैं. इस दौरान बहनें नदियों में जाकर स्नान करती हैं. नदी जाने के दौरान के गीत…

बहल आवे नदी नाला ,बहल आवे कांटा कुशा, बहल आवा हो देव, हमारी बहनियां…

देबउ हो गंगा मइया दुध के ढकनियां में

ऊपर करा हमरो बहिनिया के,

छान दिया हो गंगा मइया हमर बहिनियां के

विवाहित बहनें ससुराल से नहीं आ पाती हैं. उस दौरान भाई नदी के किनारे गंगा मैया से कहता है कि नदी में हर तरह का कांटा,कुश बह कर आ रहा है, लेकिन मेरी प्यारी बहन नहीं आ रही है. अगर नदी के सहारे मेरी बहन आती होगी, तो हे गंगा मां मेरी बहन को छानकर मुझ से मिलवा दो…

सप्ताह के छठे दिन बहनें निर्जला उपवास करती हैं. उस दिन जावा को रातभर जगाया जाता है.

लाले लाले धेजा हो परलन ओहार रे करम चईली आईले, करम चली आईले.

बड़का भइया आईले लेनिहारे

करम चली आईले

झगड़ू-झगड़ू सासु देहे बिदाई

करम चली आईले, करम चली आईले…

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शाम के समय बहनें विभिन्न तरह के फूल तोड़ने जाती हैं. जिससे फूल लोढ़ना कहा जाता है. गीत इस प्रकार है-

अलना डालावा के ,डालावा मरेआवल श्री राम

पार्वती फुला लोरहे गइले श्री राम

फुलवाहि लोरहे के घूमो नहीं परल श्री राम

झूम गेलथिन ससुर लेनिहार श्री राम .

ससुर के संग हम नहीं जाइब श्री राम…

विभिन्न तरह के फूल लाने के बाद बहनें शाम में स्नान करती हैं. इसके बाद शाम को आंगनों या अखाड़ों में करम पौधे की डाली लायी जाती है. उस समय बहनों द्वारा लोकगीत गाया जाता है.

शिवांगी बहिन पूज आई रे

पौधा के डारी आई ,पौधा के डारी आई रे

भईया बजावे बाँसुरिया

भाई संजइया भाइया…

रे बजावे बाँसुरिया भइया राजीव भइया…

इन गीतों से स्पष्ट होता है कि बहनेंअपने भाइयों की हंसी खुशी व सुरक्षा के लिए ही करमा करती हैं. भाई भी अपनी बहनों की हंसी खुशी के लिए करमा करते हैं. जिसे एकादशी पर्व कहा जाता है.

इसके बाद करम गाड़कर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है. इस दौरान महिलाएं करम डाली के चारों ओर घूम-घूम कर गीत गाती हैं. भाई खीरा लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो ? तो बहनें जवाब देती हैं भाइयों की मंगलकामना के लिए. बाद में भाई खीरे से मारता है, जिसके बाद महिलाएं व युवतियां फलाहार करती हैं. पूजा के बाद रात भर लोक नृत्य करते हैं बहनें.

अगले दिन के अहले सुबह में करम की डाल को अंकुरी -बांकुरी के साथ करम के पौधा को खिलाती हैं. इस दौरान बहनें एवं महिलाएं खीरा, चना, अरवा चावल, मटर को पत्ते में लपेट कर बांध देती हैं एवं काशी घास का कंगना चढ़ाती हैं. इस दौरान का गीत

अकुरी बकरी खीरा खोईचा में

एकादशी कर्म में

यह खेल खेले में

नेहरा में एकादशी कर्म में…

करमा पर्व की पूजा संपन्न होने के बाद सप्ताह के सातवें दिन के अहले सुबह गांव के गोड़ाइत या गवांट भगत या वीरभगत जंगलों से विभिन्न तरह के फूल लाकर गांव के अखाड़ों में पहुंचाते हैं. तब करम के डाल को विसर्जन किया जाता है. इस दौरान बहनें व महिलाएं कदम की डाल के नीचे खूब गाती हैं. इसके बाद करम की डाल के साथ गीत गाते हुए नदी व पोखर पहुंचती हैं. जहां करम की डाल को विसर्जित कर दिया जाता है. इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में पर्व मनाती हैं. करमा पर्व के दौरान विभिन्न तरह के लोक कथाएं कही जाती हैं.

Posted By : Guru Swarup Mishra

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