संकट में प्राण: सावधान! डायबिटीज की जगह आप कैंसर की दवा तो नहीं ले रहे, मिलते-जुलते नामों से है लोगों में भ्रम

एनएचआरसी ने कहा कि अगर ऐसा है, तो यह मानवाधिकारों का गंभीर मुद्दा है. लिहाजा उसने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और डीसीजीआई से चार हफ्ते में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है. एनएचआरसी ने अपने नोटिस में उन प्रस्तावित कदमों की जानकारी भी मांगी है, जिससे इस मुद्दे से निपटने के लिए उठाया जाना चाहिए.

By Prabhat Khabar News Desk | February 14, 2024 5:05 AM
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आप अगर डायबिटीज के मरीज हैं और इसकी दवा ले रहे हैं, तो आपके लिए यह बड़ी खबर है. आप तुरंत पता कीजिए कि कहीं आप डायबिटीज की जगह कैंसर की दवा तो नहीं ले रहे. दरअसल, पिछले दिनों ऐसी खबर आयी, जिसमें यह दावा किया गया था कि बाजार में बड़ी संख्या में ऐसी दवाएं हैं, जिनके नाम लिखने या बोलने में एक जैसे है, मगर ये अलग-अलग बीमारियों के इलाज में उनका इस्तेमाल होते हैं. इनमें डायबिटीज की भी दवाएं हैं, जिनके नाम कैंसर की दवाओं से मिलते-जुलते हैं. इस खबर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को भी चौकन्ना कर दिया है. उसने इसे लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) को नोटिस जारी कर सावधान किया है.

दवा के नाम में है मामूली अंतर

खबर के मुताबिक, एक दवा है ‘लिनामैक 5’. इसका इस्तेमाल एक प्रकार के कैंसर के इलाज में किया जाता है. दूसरी दवा है ‘लिनामैक’. इसका इस्तेमाल डायबिटीज के इलाज में होता है. दोनों नामों में मामूली अंतर है. एक जैसा नाम होने से भ्रम की स्थिति पैदा होती है. इसका परिणाम मरीजों के लिए काफी गंभीर हो सकता है, क्योंकि दोनों दवाओं का इस्तेमाल बिलकुल ही अलग-अलग बीमारियों के इलाज में होता है.

मिलते-जुलते नाम से है परेशानी

एक और दावा ‘एल्फ्लॉक्स’. यह एंटीबायोटिक है. इसी से मिलता-जुलता नाम एक अन्य दवा का है ‘एल्फॉक्स’, जो मिर्गी की दवा है. ऐसी और भी दवाएं हैं, जिनके नाम का पहला नाम बड़े अक्षरों में होता है, जबकि शेष छोटे अक्षरों में लिखा रहता है. ऐसे में भ्रम की स्थिति पैदा होती है. जानकारी के अनुसार 10 हजार से भी ज्यादा ऐसी दवाएं बाजार में हैं, जिनके नाम मिलते-जुलते हैं.

मानवाधिकारों का है गंभीर मुद्दा

एनएचआरसी ने कहा कि अगर ऐसा है, तो यह मानवाधिकारों का गंभीर मुद्दा है. लिहाजा उसने केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और डीसीजीआई से चार हफ्ते में विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है.

अभी दवाओं के ब्रांड नामों का कोई डेटाबेस नहीं

दरअसल, खबर के मुताबिक देश में अभी दवाओं के ब्रांड नामों का कोई डेटाबेस नहीं. एनएचआरसी ने एक कहा कि केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) को सबसे पहले प्रत्येक राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश के 36 विभिन्न औषधि नियंत्रकों से डेटा एकत्रित करना चाहिए और सभी दवाओं के ब्रांड नामों का डाटाबेस बनाना चाहिए, क्योंकि देश में ऐसा कोई डेटाबेस नहीं है. एनएचआरसी के मुताबिक, अधिकारियों द्वारा दवाएं प्रिस्क्राइब करने में गलतियों का भी कोई डाटा नहीं रखा जाता.

प्रस्तावित कदमों के बारे में भी बताना होगा

एनएचआरसी ने अपने नोटिस में उन प्रस्तावित कदमों की जानकारी भी मांगी है, जिससे इस मुद्दे से निपटने के लिए उठाया जाना चाहिए.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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