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Baha Implant से बहरेपन की समस्या होती है दूर, पूर्वोत्तर भारत में हुआ पहला ऑपरेशन

सिंगल साइड डेफनेस यानी जब मरीज को एक कान से सुनाई न दे तब अपनाई जाती है. इसके लिए बाहा इम्प्लांट किया गया. बाहा इम्प्लांट यानी बोन एंकर्ड हीयरिंग एड में कान की हड्डियों में एक यंत्र लगाया जाता है, जिससे मरीज उस यंत्र के जरिए सुनने में सक्षम हो जाता है.

पटना: कान से सुनने में कमजोर लोग आते-जाते जरूर नजर आ जाते हैं. कई बार बहरेपन की वजह से सुन नहीं पाने के चलते दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं, लेकिन बहरेपन के लिए दुनिया का सबसे आधुनिकतम तकनीक ‘बाहा इम्प्लांट’ बिहार की राजधानी पटना में सफलतापूर्वक कर लिया गया है. इस जटिल इम्प्लांट प्रक्रिया को ईएनटी विशेषज्ञ डॉ अभिनीत लाल ने अंजाम दिया है. कोलकाता और लखनऊ सहित पूर्वोत्तर भारत में इस तरह का यह पहला सफल इम्प्लांट है.

दरअसल, यह प्रक्रिया सिंगल साइड डेफनेस यानी जब मरीज को एक कान से सुनाई न दे तब अपनाई जाती है. इसके लिए बाहा इम्प्लांट किया गया. बाहा इम्प्लांट यानी बोन एंकर्ड हीयरिंग एड में कान की हड्डियों में एक यंत्र लगाया जाता है, जिससे मरीज उस यंत्र के जरिए सुनने में सक्षम हो जाता है.

इस केस में बिहटा के 19 साल के एक कॉलेज स्टूडेंट को एक कान से सुनने में परेशानी होती थी. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान शिक्षकों के लेक्चर को वह ठीक से सुन नहीं पाता था. इस परेशानी को लेकर वह ईएनटी सर्जन डॉ अभिनीत लाल के पास पहुंचा. वहां डॉ लाल के नेतृत्व में उसका इलाज चला.

उसकी स्थिति को देखते हुए डॉ अभिनीत लाल ने उसके कान में बाहा इम्प्लांट करने का फैसला किया. सबसे पहले उसके कान के अंदर एक विशेष यंत्र लगाया गया. यह इम्प्लांट बिल्कुल सफल रहा. अब घाव सूखने के बाद बाहर से एक साउंड प्रोसेसर डाला जाएगा जिससे वह सुनने में सक्षम हो जाएगा.

डॉ लाल ने कहा कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में बाहा इम्प्लांट काफी महंगा होता है लेकिन पूर्वोत्तर भारत में यह इलाज पहली बार हुआ है. यहां तक कि कोलकाता और लखनऊ जैसे बड़ो शहरों में भी अबतक ऐसा इलाज नहीं हुआ है. वह बताते हैं कि आज के समय में यह दुनिया के सबसे आधुनिक इलाजों में से एक है जो पटना में किया गया और पूरी तरह सफल रहा.

उन्होंने कहा कि जहां तक खर्च की बात है, बाहा इम्प्लांट अमूमन दो तरह के होते हैं. पहला होता है बाहा एट्रेक्ट जिसमें करीब पांच से छह लाख का खर्च आता है, जबकि दूसरा ऑसिया होता है, जिसमें करीब आठ लाख का खर्च आता है. जैसा कि इस केस में हुआ था. मरीज के पास अगर किसी तरह की स्वास्थ्य बीमा हो, तो यह खर्च भी पूरी तरह से बचाया जा सकता है.

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