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नमी या कूड़ेवाली जगहों पर जाने से बचें पोस्ट कोविड मरीज, ब्लैक फंगस नहीं रहेगा खतरा, जानें क्या कहते हैं कम्युनिटी मेडिसीन एक्सपर्ट

म्यूकोरमायकोसिस और ब्लैक फंगस संक्रमण हवा, कूड़ेदान, नमी वाली जगह और पानी में मौजूद म्यूकोरसाइट्स मोल्ड के जरिए फैलता है. मुंह, गले और नाक में यह नाक के विषाणु के रूप में नजर आता है. एक स्वस्थ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी जब साथ नहीं देती या फिर वह कमजोर हो जाती है, इसके संक्रमण खतरा अधिक रहता है. इम्यूनो कंप्रोमाइज (प्रतिरक्षा में अक्षम) लोगों में ब्लैक फंगस का गंभीर संक्रमण हो सकता है.

Black fungal infections : महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश में कोरोना संक्रमण के साथ-साथ ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमायकोसिस का संक्रमण भी तेजी से बढ़ रहा है. यह कोरोना का इलाज करा रहे मरीजों में तो देखा ही जा रहा है, लेकिन अनियंत्रित डायबिटीज के मरीजों का भी इसके संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक है. इसके साथ ही, जिन लोगों ने कोरोना को मात दे दिया है, वे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं. हमने ब्लैक फंगस के संक्रमण से संबंधित खतरे और उससे बचाव को लेकर राजस्थान के जोधपुर स्थित आईसीएमआर के अधीन कार्यरत संस्थान एनआईआईआरएनसीडी के निदेशक और कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ अरुण शर्मा से बात की. आइए, जानते हैं कि उन्होंने क्या सुझाव दिए हैं…?

म्यूकोरमायकोसिस या ब्लैक फंगस क्या है?

म्यूकोरमायकोसिस और ब्लैक फंगस संक्रमण हवा, कूड़ेदान, नमी वाली जगह और पानी में मौजूद म्यूकोरसाइट्स मोल्ड के जरिए फैलता है. मुंह, गले और नाक में यह नाक के विषाणु के रूप में नजर आता है. एक स्वस्थ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी जब साथ नहीं देती या फिर वह कमजोर हो जाती है, इसके संक्रमण खतरा अधिक रहता है. इम्यूनो कंप्रोमाइज (प्रतिरक्षा में अक्षम) लोगों में ब्लैक फंगस का गंभीर संक्रमण हो सकता है.

ब्लैक फंगस कोरोना के ज्यादातर मरीजों को क्यों प्रभावित कर रहा है?

ब्लैक फंगस कोरोना के ऐसे मरीजों को संक्रमित कर रहा है, जिन्हें इलाज के दौरान अधिक मात्रा में स्टेरॉयड्स दिए गए या फिर जिनकी लंबे समय से डायबिटीज अनियंत्रित है. हालांकि, कोरोना के मरीजों के इलाज में स्टेरॉयड को कारगर माना गया है. गंभीर रूप से इंफ्लेमेशन या संकुचन की परेशानी से जूझ रहे कोरोना के मरीजों को स्टेरॉयड ने ही स्वस्थ्य किया है. स्टेरॉयड कुशल चिकित्सक की सलाह के बाद ही ली जानी चाहिए. यदि इसे संक्रमण के साथ दिया जाने लगेगा या अधिक दिन तक दिया जाएगा, तो इससे ब्लैक फंगस और दूसरा फंगल इंफेक्शन भी हो सकता है.

म्यूकोरमायकोसिस के क्या लक्षण होते हैं?

नाक के आसपास या नाक के अंदर काले धब्बे, गालों पर सूजन, आंखों में दर्द और लालपन इसके प्रमुख लक्षण हैं. सही वक्त पर इलाज न होने से आंखों की रोशनी भी जा सकती है. संक्रमण मस्तिष्क तक पहुंचकर व्यक्ति को मानसिक तौर पर प्रभावित कर सकता है. संक्रमण इतना गंभीर होता है कि यदि यह जबड़ो तक पहुंच जाएं, तो यह दांतों को खराब कर सकता है और यदि फेफड़ों तक इसका असर हो तो गंभीर निमोनिया हो सकता है.

क्या इसका इलाज संभव है?

यदि ब्लैक फंगस की सही समय पर पहचान हो जाएं, तो इसे एंटी फंगल दवाओं से ठीक किया जा सकता है, लेकिन बहुत बार संक्रमण की स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि इलाज करने वाले डॉक्टर को मरीज की जान बचाने के लिए संक्रमित या ब्लैक फंगस प्रभावित हिस्से को सर्जरी कर हटाने जैसे इलाज के सख्त तरीके भी अपनाने पड़ते हैं. ब्लैक फंगस की इस तरह की सर्जरी के लिए संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए अन्य विभाग के विशेषज्ञों की टीम जैसे इंटरनल मेडिसिन, माइक्रोबायोलॉजी, आप्थेमेलॉजी, ईएनटी, न्यूरोलॉजी, पल्मोनोलॉजी, डेंटिस्ट्री और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी के विशेषज्ञों की जरूरत होती है.

सर्जरी के दौरान ही मरीज के शुगर के स्तर की भी लगातार मॉनिटरिंग करनी पड़ती है. साथ ही, अन्य इम्यूनोसप्रेंट दवाओं को रोक दिया जाता है. इसके साथ इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि चिकित्सक द्वारा दी गई दवाओं को सही से निर्धारित समय तक सेवन किया जाए, जिससे संक्रमण के दोबारा होने की संभावना को खत्म किया जा सके.

ब्लैक फंगस संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है?

कोरोना मरीज का इलाज करने वाले चिकित्सक को संक्रमण के शुरुआती चरण में मरीज का सही मार्गदर्शन करना चाहिए. अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में डॉक्टर और नर्स को संक्रमण के लक्षणों को नोटिस करना चाहिए कि मरीज को इलाज के लिए किस तरह के स्टेरॉयड दिए जा रहे हैं या फिर कौन से इम्यूनो सप्रेसि दिए जा रहे हैं.

स्टेरॉयड का असर शरीर पर चार हफ्ते तक रहता है. इसलिए इलाज की इस समय अवधि में विशेष ध्यान देना जरूरी है. कोरोना संक्रमण से मुक्त होने के बाद मरीज को नमी वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए. यदि ऐसी जगह पर जाना अधिक जरूरी है, तब थ्री लेयर मास्क, ग्लव्स, चेहरे और हाथों को अच्छी तरह ढक कर जाएं. म्यूकोरमायकोसिस से बचने के लिए मरीज को ऑक्सीजन मास्क और कैन्युला को अच्छी तरह विसंक्रमित करते रहना चाहिए. मरीज की ऑक्सीजन सप्लाई के समय किस तरह का पानी इस्तेमाल किया जा रहा है, इसकी भी नियमित मॉनिटरिंग करते रहना चाहिए, जिससे संक्रमण की संभावना बनी रहती है.

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Posted by : Vishwat Sen

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