पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में है. जहां एक ओर इस लाइलाज बीमारी की रोकथाम के लिए वैज्ञानिक जुटे हुए हैं, वहीं वे ये जानने की कोशिश भी कर रहे हैं कि कोरोना वायरस कहां पनपा. कोरोना वायरस जूनोटिक वायरस है, जूनोटिक का अर्थ है कि ये वायरस जानवरों से मनुष्यों में संचारित होने में सक्षम है.
कोरोनावायरस के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो जूनोटिक वायरस की खोज सन् 1960के दौरान वैज्ञानिक टाइरेल और बायनो के द्वारा की गई थी. लगभग उसी दौरान वैज्ञानिक हैमरे और प्रोडोम ने भी सर्दी- जुकाम से पीड़ित मेडिकल छात्रों से सैंपल इकट्ठा किया था. इस सैंपल में पाए गए नमूनों को उन्होंने नाम दिया 229E . इधर अल्मीडा और टायरेल ने मिलकर मुर्गियों में पाए जाने वाले ब्रोंकाटिस वायरस की खोज कि. करीब तीन दशक बाद दो और वायरस OC43 और 229E की खोज की गई जिसका विशेष रूप से अध्ययन किया गया. 229E नामक वायरस ने अमरिका में लोगों के नाम में दम कर दिया था. वहीं OC43 नामक वायरस ने बच्चों में सांस संबंधी बीमारी को बढ़ाया. अध्ययनों में पाया गया कि ये जूनोटिक वायरस विभिन्न श्वसन रोगों से जुड़े थे, हालाँकि, उनकी रोगजनकता कम मानी जाती थी.
बाद में जूनोटिक वायरस का पशुओं से मनुष्यों में तेजी से विस्तार होने लगा. चूहों, मुर्गियों, बछड़ों, कुत्तों, बिल्लियों के अलावा खरगोश एवं सुअरों से भी यह वायरस मनुष्यों में फैलता था. कोरोना वायरस से पहले वर्ष 2002-03 में सार्स वायरस से भी विश्व परेशान था.
कोरोना वायरस से Covid 19नामक बीमारी होती है. ये बीमारी कैसे फैली इसपर वैज्ञानिक अभी भी स्पष्ट तौर पर कुछ ।भी कहने से मना कर रहे हैं. शुरुआत में ये कहा गया कि ये वायरस चमगादड़ से इंसान में फैला. वहीं कुछ लोग मानते हैं कि कुछ का कहना था की ये चीन के बायो-वेपन्स लैबोरेट्रीज से लीक हुआ है.
17 मार्च के अंक के नेचर मेडिसिन जर्नल के रिपोर्ट ‘द प्रोक्सिमल ओरिजिन ऑफ़ Covid 19 में बताया गया है कि Covid 19 को ना ही किसी प्रयोगशाला में बनाया गया है और ना ही इसे किसी प्रयोगशाला में उदेश्यपूर्ण तरीके से बदला गया है. ये जंतुओं से आदमी में कैसे प्रवेश किया इसके बारे में अभी भी प्रयोग जारी है. यह रिसर्च स्क्रिप्प्स रिसर्च संस्थान, ला-जोला, कैलिफ़ोर्निया, USA द्वारा किया गया है जिसे क्रिस्टियन जी एंडरसन के द्वारा नेतृत्व किया गया था.
इसके अलावा पिछले महिने यानी फरवरी 2020 मे रॉकी माउंटेन लैबोरेट्रीज, जो की नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीज, अमेरिका के प्रांगन में है, के वैज्ञानिको ने Covid 19 वायरस को मरीजों से निकाल कर इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी के द्वारा इसकी तस्वीर ली. यह देखने में Halo या प्रभामंडल के आकार (Halo आकार को लैटिन भाषा में करोना कहा जाता है) की तरह दिखता है.
इस रोग की पहचान करने में करीब 2 से 14 दिन लगते हैं. डॉक्टरों का कहना है प्रारंभिक लक्षणों के द्वारा कि इस रोग का पहचान करना सटीक नहीं है क्योंकि इसके लक्षण बहुत सारे दूसरे वायरस जनित रोग से भी मिलते हैं.
फिलहाल Covid-19 के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है इस कारण से इस रोग के रोक थाम में कुछ विशेस प्रगति नहीं हो पायी है. अमेरिका की ही इनोवियो फर्मास्यूटिकल यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनसिलवेनिया में अपना ट्रायल अगले महीने शुरु करने जा रही है.
देखा जाए तो एक वैक्सीन के विकास में करीब एक से डेढ़ साल लगते हैं पर वॉर लेवल पे Covid-19 के खिलाफ छेड़ा हुआ जंग वैश्विक स्तर पे मानव जीवन के इतिहास की सबसे पहली प्रेरणादायक कहानी सिद्ध होगी.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.