कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान 18.50 लाख महिलाएं नहीं करा पायीं सुरक्षित गर्भपात : अध्ययन

Covid-19 impact 18.50 lakh women could not get safe abortion during lockdown study said : देश में जारी लॉकडाउन के कारण लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पायीं. इस बात का खुलासा इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन (आईडीएफ) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से हुआ है. इस अध्ययन में यह कहा गया है कि कोविड-19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के कारण देश में लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पायीं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2020 5:54 PM

नयी दिल्ली : देश में जारी लॉकडाउन के कारण लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पायीं. इस बात का खुलासा इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन (आईडीएफ) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से हुआ है. इस अध्ययन में यह कहा गया है कि कोविड-19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लगाये गये लॉकडाउन के कारण देश में लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पायीं. गर्भपात नहीं कराने के कारणों में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सुविधाएं तथा दवाई की दुकानें आदि शामिल हैं.

इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन के सीईओ विनोज़ मैनिंग ने बताया कि जैसे ही कोविड-19 महामारी में बदल गया, हर किसी का पूरा ध्यान और प्रयास वायरस के नियंत्रण में लग गया, जिससे बहुत सारी स्वास्थ्य स्थितियों और उनके प्रबंधन को धक्का लगा जिसमें सुरक्षित गर्भपात भी शामिल है. अधिकांश, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और उनके कर्मचारियों का ध्यान पूरी तरह से कोविड-19 के उपचार पर केंद्रित हो गया और निजी स्वास्थ्य सुविधाएं बंद होने से वहां गर्भपात कराना संभव नहीं था. यह अध्ययन इसलिए किया गया कि एक स्पष्ट तस्वीर मिल सके कि किस तरह से कोविड-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंधों ने उन महिलाओं को प्रभावित किया जो सुरक्षित गर्भपात की सेवाएं चाहती थीं और वे कौन से क्षेत्र हैं, जिन्हें आने वाले दिनों में केंद्रित प्रयासों की आवश्यकता होगी.”

अध्ययन का प्रारूप देखभाल के तीन अलग-अलग बिंदुओं सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं, निजी स्वास्थ्य सुविधाओं और दवाई की दुकानों पर गर्भपात के लिए कम पहुंच को निर्धारित करने का प्रयास करता है. इस अध्ययन की प्रक्रिया पर बात करते हुए इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन के डॉ सुशांता कुमार ने बताया, “हमने टेलिफोनिक सर्वे किया और एफओजीएसआई नेतृत्व और सामाजिक विपणन संगठनों जैसे पीएसआई इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के कईं विशेषज्ञों के साथ परामर्श किया. उनसे प्राप्त आंकड़ों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण के पश्चात, हमने निष्कर्ष निकाला है कि 39 लाख गर्भपात जो तीन महीने में हुए होते, कोविड-19 के कारण उनमें से 18 लाख 50 हजार नहीं हो पाये.”

अध्ययन का अनुमान है कि लॉकडाउन 1 और 2 (25 मार्च से 3 मई) के दौरान सुरक्षित गर्भपात कराने की सुविधा सर्वाधिक प्रभावित हुई, जिससे जो महिलाएं गर्भपात कराना चाहती थीं, उनमें से 59 प्रतिशत महिलाओं तक इस सेवा की पहुंच संभव नहीं हो सकी. हालांकि, अनलॉक के पहले चरण या रिकवरी अवधि के साथ, जैसा कि एक जून से शुरू वाले अध्ययन में उल्लेखित किया गया है, स्थिति में सुधार की उम्मीद है. क्योंकि, इन 24 दिनों में जो गर्भपात नहीं हो पाए, उनका प्रतिशत घटकर 33 हो गया है.

लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक नहीं पहुंच सकी, इसलिए यह बेहद जरूरी है कि सार्वजनिक और निजी दोनों स्वास्थ्य सेवाएं, इन महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार हों. प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन ने कुछ प्रारंभिक सिफारिशें जारी की हैं जिनमें शामिल हैं: पहली और दूसरी तिमाही के लिए सुविधाओं का तेजी से मानचित्रण, विशेषरूप से दूसरी तिमाही में गर्भपात के लिए तैयारियों का आकलन करना, रेफरल लिंकेज़ (विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों में आपसी संपर्क, ताकि मरीज़ को उपयुक्त केंद्र के लिए निर्दिष्ट किया जा सके) में सुधार और सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार करना, चिकित्सीय गर्भपात के लिए उपयुक्त दवाइयों की आपूर्ति को व्यवस्थित करना और अंत में किफायदी दामों पर अतिरिक्त यात्राओं की व्यवस्था करना ताकि यह जेब पर भारी न पड़े.

इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन अन्य सहयोगियों और प्रमुख हितधारकों के साथ विचार-विमर्श आयोजित करेगा ताकि सुरक्षित गर्भपात तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए सार्थक सहयोग प्रदान किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि सेवाओं की कमी के कारण किसी भी महिला के स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान न पहुंचे.

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