कोरोना प्रोटोकॉल के जरिए कोरोना की तीसरी लहर के खतरे को किया जा सकता है कम, जानिए क्या कहते हैं रायपुर एम्स के एक्सपर्ट
कोरोना की दूसरी लहर बहुत गंभीर थी और इसने छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश को बुरी तरह प्रभावित किया. मार्च 2021 की शुरुआत के दौरान राज्य में 6.5 लाख मामले देखे गए और बहुत से लोगों की जान चली गई.
नई दिल्ली : देश में कोरोना की तीसरी लहर का आना संभव माना जा रहा है. ऐसे में, विशेषज्ञ देश के लोगों को लगातार कोरोना प्रोटोकॉल यानी कोरोना से बचाव के लिए तय किए गए नियमों का पालन करने को लेकर सावधान कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करके तीसरी लहर के खतरे को कम किया जा सकता है. हालांकि, उसे टाला जाना संभव नहीं है. इस मामले को लेकर हमने रायपुर एम्स के निदेशक और सीईओ डॉ नितिन एक नागरकर से बातचीत की. आइए जानते हैं कि वे क्या सलाह देते हैं…
देश और छत्तीसगढ़ में कोरोना की क्या स्थिति है?
करीब दो महीने के उतार-चढ़ाव के बाद अब कोरोना के मामलों में कमी देखी जा रही है, लेकिन यदि हम इस घातक वायरस को सच में नियंत्रित करना चाहते हैं, तो लॉकडाउन हटने के बाद हमें अधिक सर्तक रहना होगा. लोगों को सख्ती से कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना होगा, ऐसा नहीं करने पर पर तीसरी लहर आने की को नहीं रोका जा सकेगा.
कोरोना की दूसरी लहर ने किस तरह प्रभावित किया? ग्रामीण इलाकों में संक्रमण का कितना अधिक प्रभाव देखा गया?
कोरोना की दूसरी लहर बहुत गंभीर थी और इसने छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश को बुरी तरह प्रभावित किया. मार्च 2021 की शुरुआत के दौरान राज्य में 6.5 लाख मामले देखे गए और बहुत से लोगों की जान चली गई. संक्रमण की उस स्थिति में मृत्यु दर 1.4 फीसदी थी. संक्रमण की दूसरी लहर का असर ग्रामीण क्षेत्र पर भी दिखा. सही मायने में संक्रमण की दृष्टि से शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में अधिक अंतर नहीं देखा गया. संक्रमण शहर से गांव, छोटी जगह से बड़े कस्बे और शहर से गांवों तक ऐसी जगहों पर फैल गया, जहां लॉकडाउन होने के बाद भी पाबंदियों का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा था. इसके साथ ही, श्रमिकों का शहर से गांव की ओर पलायन भी ग्रामीण इलाकों में कोविड के मामले बढ़ाने की बड़ी वजह बना.
कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने को लेकर लोग कितने जागरूक हैं?
लोग अब संक्रमण के प्रति जागरूक हो रहे हैं, लेकिन उसे उन्हें अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करना होगा. हम यदि महामारी को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो हमें कोरोना प्रोटोकॉल के नियमों का पालन करना ही होगा और यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है.
सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान होने के नाते आपने अचानक कोरोना के बढ़ते मरीज की चुनौती को कैसे स्वीकार किया?
एम्स में देशभर से लोग इलाज के लिए आ रहे थे. सभी मरीज संस्थान में सर्वोत्तम इलाज की उम्मीद से आते हैं. सबसे बड़ी चुनौती जिसका हम सभी ने सामना किया वह यह रही कि अच्छा इलाज देने के लिए हमें सभी मरीजों को अस्पताल में बेड और जगह देनी थी. अप्रैल और मई महीने के दौरान जब कोविड के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई तब अचानक आईसीयू और एचयूडी बेड की मांग तेजी से बढ़ गई, जिसको देखते हुए हमने पांच दिन में आईसीयू बेड की संख्या 41 से बढ़ाकर 81 आईसीयू बेड कर दी. हमने ऑक्सीजन बेड की संख्या भी बढ़ाई, पूर राज्य में केवल हमारे संस्थान में ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ 500 बेड हैं.
दूसरी लहर में ब्लैक फंगस और बैक्टीरियल निमोनिया के कितने मामले देखे गए और यह कितने अधिक गंभीर दिखे?
कोरोना संक्रमण के अनुपात में इससे जुड़े अन्य संक्रमण का आंकड़ा देखा जाए, तो यह बेहद कम रहा. केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं, अन्य राज्यों से भी ब्लैक फंगस संक्रमण के मामले हमारे पास आ रहे थे. हालांकि, इनकी संख्या बहुत कम थी. अस्पताल में भर्ती होने वाले कोरोना के लगभग 3.5 फीसदी मामलों में बैक्टीरियल निमोनिया देखा गया और इसमें से ऐसे मरीजों की अधिकता थी, जिन्हें आईसीयू में भर्ती होने की जरूरत पड़ी.
क्या यहां भी लोगों में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट या शंका है और इस समस्या का समाधान किस तरह हो सकता है?
शुरुआत में वैक्सीन को लेकर लोगों के मन शंका या हिचकिचाहट थी, लेकिन अब उनमें वैक्सीन के प्रति गजब का उत्साह है. धर्मगुरू और राजनेताओं द्वारा वैक्सीन लिए जाने से एक तरह का उदाहरण प्रस्तुत किया गया, जिसके बाद लोग वैक्सीन के लिए आगे आने लगे. इससे लोगों को प्रोत्साहन मिला. अब जबकि लोग स्वेच्छा से वैक्सीन लगवाना चाहते हैं, हमें उनकी सहूलियत को देखते हुए टीकाकरण में गति लानी चाहिए. इसके लिए घर घर जाकर वैक्सीन लगाने का विशेष अभियान शुरू किया जा सकता है, जिससे टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके.
Posted by : Vishwat Sen
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.