Delta Plus Variant, Symptoms, Causes, Treatment, Precautions: देश कोरोना की दूसरी लहर से बाहर आया ही है इस बीच डेल्टा प्लस वैरिएंट लोगों को डरा रहा है. कोरोना में म्यूटेंट करने की क्षमता अधिक होती है. पिछले डेढ़ साल में कोरोना के अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, डेल्टा प्लस और कप्पा म्यूटेशन आये हैं… इनसे बचाव के उपाय बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
दुनियाभर में अब भी कोरोना और इसके अलग-अलग म्यूटेंट से बचाव का एकमात्र कारगर रास्ता ‘वैक्सीनेशन’ है. प्रमुख देशों के आंकड़े बताते हैं कि जहां-जहां 30 फीसदी लोगों का कंप्लीट वैक्सीनेशन हो चुका है, वहां कोरोना की संभावित लहर नहीं आयी.
खास बात है कि भारत में भी अब तक लगभग 27 फीसदी से ज्यादा लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका है, लेकिन यहां वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाली आबादी का प्रतिशत अब भी 10 प्रतिशत से कम है. यही वजह है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट को लेकर यहां चिंता की स्थिति बनी हुई है.
भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का कारण डेल्टा वैरिएंट ही थी. इसी वायरस के म्यूटेशन का एक वर्जन है डेल्टा प्लस. नेशनल टेक्नीकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्युनाइजेशन इन इंडिया ने डेल्टा प्लस वैरिएंट की पहचान 11 जून को ही की थी. हांलाकि, अभी इसके केसेज काफी कम हैं और रिसर्च सीमित है, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में भी इसके मामले देखे गये हैं. वर्तमान में भारत के 13 राज्यों इसके मामले देखने को मिले हैं.
भारत में डेल्टा वैरिएंट सबसे पहले पाया गया था, जिसे वैज्ञानिकों द्वारा B.1.617.2 कहा गया. डेल्टा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन के ऊपर मौजूद ल्यूसिन अमीनो एसिड में म्यूटेशन की वजह से डेल्टा प्लस वैरिएंट सामने आया है, जिसे B.1.617.2.1 कहा जा रहा है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, डेल्टा प्लस वैरिएंट में एक विशेष म्यूटेशन है- K417N म्यूटेशन. इस म्यूटेशन को सबसे पहले साउथ अफ्रीका से आये बीटा वैरिएंट में देखा गया था. उस वैरिएंट के खिलाफ फाइजर जैसी वैक्सीन की भी एफिकेसी बहुत कम यानी 20 प्रतिशत से भी ज्यादा गिर जाती थी. इसे देखते हुए ही वैज्ञानिकों की चिंता है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट में भी वैक्सीन या मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का असर कम होने लगेगा. अगर ऐसा हुआ तो भारत में आया डेल्टा प्लस वैरिएंट सीवियर डिजीज का कारण भी बन सकता है.
इस वैरिएंट ने यूके, फ्रांस, रूस जैसे देशों में तहलका मचा रखा है. इस पर दवाइयां काम नहीं कर रही हैं. रोश कंपनी के द्वारा बनायी गयी और अमेरिका के एफडीए स्वीकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल दवा भी काम नहीं कर रही है और यह घातक साबित हो रहा है. वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग से जुड़े इंडियन सार्स सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम ने रिसर्च के मुताबिक, इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न कहा जा रहा है.
कोरोना के दूसरे वैरिएंट की तुलना में यह वैरिएंट फेफड़ों की म्यूकस लाइनिंग के साथ जल्दी जुड़ जाता है. साथ ही यह कई गुना ज्यादा तेजी से फैलता है और इसकी मारक क्षमता भी काफी ज्यादा है. संक्रमित व्यक्ति को अगर वैक्सीन नहीं लगी हो तो डेल्टा प्लस वैरिएंट उसके फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाता है और 3 से 10 दिन में यह मरीज के लिए जानलेवा हो सकता है. डेल्टा प्लस वैरिएंट शरीर में बनी नेचुरल एंटीबॉडीज को भी कम कर सकता है, जिससे ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन या रिइन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है.
डेल्टा प्लस वैरिएंट से संक्रमित व्यक्ति में लक्षण अमूमन पहले की तरह ही हैं, लेकिन डायरिया जैसे पेट की समस्याएं, उल्टियां आना, त्वचा पर रैशेज आना, पैरों की उंगलियों का रंग बदलना, नाक बहना, सिरदर्द, गले में दर्द, खराश, उंगलियों में ब्लड सर्कुलेशन कम होने से नीला पड़ना जैसे कुछ अलग लक्षण भी देखने को मिले हैं.
भारत में अभी तीन वैक्सीन- कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पूतनिक उपलब्ध हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, किसी भी वैक्सीन की एफिकेसी अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा है, तो वह वैक्सीन वैरिएंट से बचाव में कारगर मानी जाती है. हमारे यहां वैक्सीन की एफिकेसी (कोविशील्ड : 83 व कोवैक्सीन : 78 प्रतिशत) इनसे ज्यादा है, इसलिए ये वैक्सीन डेल्टा प्लस में काफी असरदार होगी. हाल ही में भारत बायोटेक ने रिसर्च के आधार पर साबित किया है कि कोरोना मरीजों के लिए कोवैक्सीन की एफिकेसी 93.4 प्रतिशत तक है, इसलिए वैक्सीन हर हाल में लें.
इस वैरिएंट से बचने के लिए सबसे पहले किसी भी वैक्सीन की दोनों डोज जरूर लगवा लेनी चाहिए. अगर मरीज ने वैक्सीन के दोनों डोज लगवाये हुए हैं, तो उनमें डेल्टा प्लस वैरिएंट ज्यादा घातक नहीं होगा.
इसके अलावा दो चीजों को ध्यान में रखकर हम अपना बचाव कर सकते हैं – पहला ‘मास्क’ यानी मेरा अपना सुरक्षा कवच. दूसरा FACTS के फॉर्मूले को फॉलो करें. यानी F- फेस को कवर करें, A- अवायड क्राउड्स, C- क्लीन हैंड्स, T- 2 मीटर डिस्टेंस, S- सैपरेट योरसेल्फ या संक्रमित होने पर तुरंत अपने आपको आइसोलेट करें.
कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीनेशन महत्वपूर्ण है. वैक्सीन लगवाने से सीवियर न होकर माइल्ड इन्फेक्शन हो सकता है या मरीज एसिम्टोमैटिक हो सकता है. मरीज को अस्पताल में जाने या आइसीयू में भर्ती होने की संभावना बहुत कम रहती है. वैक्सीनेशन हर्ड इम्युनिटी लाने में भी सहायक है और यह तभी संभव है, जब तकरीबन 60 प्रतिशत जनता को यथाशीघ्र वैक्सीन की दोनों डोज लग जाएं.
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डेल्टा प्लस वैरिएंट से बचाव के लिए हमें अपनी ओवरऑल हेल्थ पर ध्यान देना चाहिए. इसके लिए स्वस्थ जीवनशैली को फॉलो करना चाहिए – पौष्टिक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार का सेवन, नियमित एक्सरसाइज, भरपूर नींद, स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति सजग रहना व नियमित मेडिकेशन.
बातचीत व आलेख : रजनी अरोड़ा
Posted By: Sumit Kumar Verma
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.