डाॅ केके पांडेय
वरिष्ठ वैस्क्युलर व कार्डियोथोरेसिक सर्जन
इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली
Diabetes Problems: अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं, तो कहीं ऐसा तो नहीं होता है कि थोड़ी दूर चलने पर पैरों व टांगों में दर्द शुरू हो जाता हो, पर रूकने पर दर्द गायब हो जाता हो. ऐसा भी हो सकता है कि आप के पैरों, उंगलियों व तलवे में बराबर झनझनाहट बनी रहती हो जो विशेषकर सर्दी के दिनो में बढ़ जाती हो. कभी ऐसा भी हो सकता है कि आप से एक कदम भी चलना कठिन हो, और तो और रात में बिस्तर में लेटते समय टांगों व पैरों में दर्द उभरता हो जिसकी वजह से आप रात में ठीक से सो नही पाते. कभी ऐसा भी होता होगा कि अचानक आप की नींद खुल गई और पाया होगा कि पैरों में दर्द हो रहा है, पैरों को लटका कर बैठे या थोड़ा सा चले तो दर्द कम हो गया. आप के साथ शायद यह भी होता हो कि हर समय पैरों में दर्द बना रहता हो और कभी-कभी यह दर्द असहनीय हो जाता हो. अगर आप इनमें से किसी एक समस्या से पीड़ित है और आप डायबिटीज के मरीज़ हैं तो लापरवाही बिल्कुल न करिए क्योंकि समस्या गंभीर हो सकती है और पैर खोने की नौबत आ सकती है. समय रहते किसी वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन की सलाह लें.
अनदेखी हो सकती है खतरनाक
आंकड़े बताते हैं कि अपने भारतवर्ष मे डायबिटीज के सारे मरीजों में पैर कटने का प्रति वर्ष का औसत 10 प्रतिशत है यानी 100 डायबिटीज के मरीजों में 10 मरीज हर साल अपना पैर खोते हैं. जबकि 65 साल से ज्यादा उम्र वाले डायबिटीज के मरीजों में यह औसत हर साल लगभग पाँच प्रतिशत है. आपको शायद यह मालूम न होगा कि डायबिटीज के मरीजों में पैर कटने का खतरा बिना डायबिटीज वाले लोगों की तुलना में लगभग डेढ़ गुना ज्यादा होता है. लंब समय से चल रही डायबिटीज, खून में शुगर की अनियंत्रित मात्रा, धूम्रपान, पेशाब में एल्ब्युमिन का होना, आंखों में रोशनी का कम होना, पैरों में झनझनाहट व संवेदनहीनता का होना व पैरों में खून की सप्लाई का कम होना आदि यह सारी बातें डायबिटीज के मरीज में पैर कटने का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण बनती है. इस बात से यह पता लगता है कि डायबिटीज के मरीज द्वारा बरती गई लापरवाही उसके विकलांग होने का सीधा कारण बन सकती है.
क्यों होता है पैरों में दर्द व झनझनाहट
डायबिटीज के मरीजों के पैर में दर्द कई कारणों से होता है. एक तो कारण न्यूरोपैथी है जिसके फलस्वरूप पैरों में दर्द व झनझनाहट रहती है, विशेषकर पैरों के तलुओं व एड़ीं में. पैरों की मांसपेशियों में न्यूरापैथी की वजह से हल्का फालिज का असर हो जाता है, जिससे पैरों व हड्डियों पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है. साथ ही साथ जोड़ों की क्रियाशीलता में भी कमी आ जाती हैं. इन सब का मिला जुला असर यह होता है कि पैरों में दर्द व झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है, तथा चलने से और बढ़ जाती है.
शुद्ध खून की मात्रा में कमी हो जाना
दूसरा पैरों में दर्द का सबसे बड़ा कारण पैरों में शुद्ध खून की मात्रा में कमी हो जाना है. टांगों व पैर को ऑक्सीजन युक्त शुद्ध खून की सप्लाई करने वाली खून की नली के अन्दर निरन्तर चर्बी व कैल्शियम जमा होता रहता है. जिसके परिणाम स्वरूप खून की नली में सिकुड़न आ जाती है जिससे शुद्ध खून की सप्लाई में बाधा पहुंचती है. शुरूआती दिनों में बरती गई लापरवाही के कारण यह खून की नली पूरी तरह से बन्द हो जाती है, इस दशा में डायबिटीज के मरीज़ के पैरों में असहनीय दर्द शुरू हो जाता है. अगर मौके पर किसी वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन से सलाह न ली गई, तो अन्त में पैर कटवाने तक की नौबत आ सकती है.पैर की त्वचा की रक्त सप्लाई कम हो जाने में एक और महत्वपूर्ण कारण होता है. इसे मेडिकल भाषा में आटोनोमिक सिमपैथेटिक न्यूरोपैथी (ए. एस. एन.) कहते हैं, जिसके कारण शुद्ध खून, पैर की त्वचा में स्थित अपने गंतव्य स्थान तक नही पहुँच पाता है, क्योंकि खून की शॉर्ट सर्किटिंग हो जाती है, ठीक उसी तरह से जैसे कोई राहगीर निर्धारित लक्ष्य स्थान तक न पहुँच कर बीच रास्ते में हि वापस मुड़ कर आने लगे.
पैरों के गुलाबी रंग से भ्रमित न हो
अक्सर लोग व फिजिशियन डायबिटीज के मरीजों के पैरों की त्वचा के गुलाबी रंग से भ्रमित हो जाते है और जल्दबाजी में यह निष्कर्ष निकाल लेते है कि पैरों में खून का बहाव नार्मल व पर्याप्त है. यह धारणा मिथ्य है. अगर आप जानना चाहते है कि पैरों में शुद्ध खून की सप्लाई पर्याप्त है या नही, तो आप एक साधारण सा प्रयोग स्वयं कर सकते हैं. लेट कर पैरों को छाती से दो फीट उपर एक मिनट तक रखें, अगर पैरों का रंग गुलाबी से बदल कर पीला दिखने लगे तो समझ जाइये पैरो में शुद्ध खून की सप्लाई कम है. होशियार हो जाईये यह जानकर कि आप पैरों में घाव बनने के बहुत करीब है. तुरंत किसी वैस्क्युलर सर्जन से सम्पर्क करें.
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पैरों पर खतरा क्यों ज्यादा मंडराता है
डायबिटीज में होने वाली आटोनोमिक न्यूरोपैथी की वजह से पसीने को पैदा करने वाली और त्वचा को चिकना बनाने वाली ग्रन्थियाँ ठीक से काम करना बन्द कर देती है जिसके परिणाम स्वरूप पैंरों की त्वचा बहुत ज्यादा खुश्क हो जाती है और त्वचा में क्रैक्स (फटन), चटकन व गड्ढ़े बन जाते है जो पैरों में इन्फेक्शन जल्दी हो जाने का कारण बन जाते हैं. यही कारण होता है कि डायबिटीज के मरीजों में जल्दी घाव बनते है, और इन्फेक्शन अन्दर तक पहुंच जाता है जिसको नियंत्रित करने में बड़ी दिक्कत आती है. कभी-कभी इसमें ऑपरेशन की जरूरत पड़ जाती है.
पैरों में गोखरू न बनने दें
न्यूरोपैथी की वजह से पैर में दर्द तो होता हि है साथ ही साथ लापरवाही के कारण पैरों में गोखरू बनने कि संभावना बढ़ जाती है. पैर कि हड्डियों पर मांशपेशियों के कमजोर हो जाने से, दबाव बढ़ जाता है. इस निरन्तर दबाव के कारण त्वचा में दबाव वाले स्थानों पर गोखरू का निर्माण हो जाता है. गोखरू के कारण डायबिटीज के मरीज को ऐसा लगता है कि जूते के अन्दर कंकड़, रोड़ा या छोटा पत्थर रखा हुआ है. इस गोखरू की वजह से पैरों में दर्द असहनीय होने लगता है.
डायबिटीज के मरीज पैर में दर्द होने पर कहां जाएं
अगर आप डायबिटीज से पीड़ित है और चलने से पैरों में दर्द उभरता हो या रात में बिस्तर पर लेटने पर झनझनाहट की शिकायत हो तो तुरन्त किसी वैस्क्युलर या कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन की सलाह लें. दर्द का कारण जानना बहुत जरूरी है. अक्सर लोग इस तरह के दर्द को गठिया या सियाटिका का दर्द समझ लेते है और हड्डी विशेषज्ञ से परामर्श करने पहुंच जाते हैं. कभी-कभी पैरों के दर्द के साथ कमर मे भी दर्द होता है ऐसी परिस्थिति आने पर लापरवाही बिल्कुल न करें, क्योंकि इसका मतलब यह होता है कि टांगों को जाने वाली शुद्ध खून की मात्रा अत्यधिक कम हो गई है.
जरूरी जांचों से परहेज न करें
डायबिटीज के मरीज में पैरों के दर्द का सही कारण जानने के लिए कुछ जरूरी जांचें आवश्यक है. कुछ खून की जांचों के साथ-साथ, खून की सप्लाई की जांच भी आवश्यक ह. इसके लिए डॉप्लर स्टडी नामक जाँच की जरूरत होती है. इस जांच में मोटे तौर पर यह पता लगता है कि कहां-कहां शुद्ध खून की सप्लाई बाधित हो रही है. इस जांच के आधार पर ही एंजियोग्राफी की अनिवार्यता के बारे में निर्णय लेना पड़ता है. एंजियोग्राफी से खून की नली में कितनी और कहाँ रूकावट है इसके बारे में पता चलता है. आजकल एंजियोग्राफी की तकनीक भी बदल गई है इसमें मरीज को अस्पताल में भर्ती की जरूरत नही पड़ती और न ही जाँघ में इंजेक्शन व नली डालने की जरूरत पड़ती है. इस एंजियोग्राफी को 64-स्लाइस सी टी एंजियोग्राफी कहते है. इसमें सिर्फ पांच मिनट लगते है. इसलिए हमेशा ऐसे अस्पताल में जाये, जहां इन सब जाँचों की सुविधा हो. एंजियोग्राफी की रिपोर्ट के आधार पर ही, आगे इलाज की दिशा का निर्धारण होता है.
पैरों में दर्द के रोकथाम के उपाय
अगर आप डायबिटजि के मरीज है तो सबसे पहले अपने खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित करें. रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अनियंत्रित रहना भविष्य में पैर खोने का साफ संकेत है. डायबिटीज के मरीज को नित्य 5-6 किलोमीटर चलना अत्यन्त आवश्यक है. नित्य टहलने से एक तो पैरों को शुद्ध खून की सप्लाई अबाध गति से चलती रहती है तो दूसरे न्यूरोपैथी का भी पैरों पर प्रभाव कम हो जाता है. डायबिटीज के मरीजों को चाहिए कि अपनी टांगों व पैरों की त्वचा को खुश्की व सूखेपन से बचायें क्योंकि त्वचा सूखी होने से त्वचा के फटने की संभावना बढ़ जाती है जिससे कीटाणुओं को सीधा पैर के अन्दर पहुँचने का रास्ता मिल जाता है. त्वचा के सूखेपन को कम करने के लिए त्वचा पर जैतुन का तेल लगा सकते है पर ध्यान रहे कि पैर के अंगुलियों के बीच में कोई भी तेल व मलहम न लगायें. पैरों में ठिकारें व गोखरू को पनपने न दें. इसके लिए जरूरी है कि जूते मुलायम व सही नाप के हो और जूतों के अन्दर सही नाप के सिलीकॉन का पैताबा डालकर अवश्य पहने. यह पैताबे जिन्हें ‘डायबिटीक इन्सोल’ कहते है, पैरों की हिफ़ाजत में बहुत कारगर सिद्ध हुए है. डायबिटीज के मरीजों के लिए विशेष किस्म के जूते भी उपलब्ध है जिन्हें किसी वैस्क्यूलर सर्जन की सलाह पर ही पहनना चाहिए.
डायबिटीज के मरीज कभी भी घर के अन्दर या बाहर नंगे पांव न चलें, और जूते कभी भी बगैर मोजों के न पहने. पैरों को स्वच्छ व नमीरहित रखें. डायबिटीज के मरीजों को चाहिए कि हमेशा हर चार महीने में अपने टांगों व पैरों की जांच किसी वैस्क्यूलर या कार्डियोवैस्क्यूलर सर्जन से जरूर करवाते रहें. अगर कहीं पैरों में फफोले या लाल चकत्ते दिखें तो तुरन्त बगैर लापरवाही किये किसी वैस्क्यूलर सर्जन से परामर्श लें.
पैर दर्द के इलाज की विधाएं
अगर जांच द्वारा यह पाया गया कि पैरों को शुद्ध रक्त की आपूर्ति करने वाली नली में रूकावट है जिसकी वजह से पैरों की खून की सप्लाई कम है, तो तुरन्त पैरों को खून की सप्लाई बढ़ाने के लिये कारगर कदम उठाने पड़ते हैं. इसके लिए टांगों की बाईपास सर्जरी बड़ी कामयाब सिद्ध हुई है. इस विशेष सर्जरी में उसी पैर की या दूसरे पैर की वेन्स का इस्तेमाल किया जाता है. कभी-कभी विदेशों से आयातित कृत्रिम खून की नली का भी बाईपास सर्जरी में इस्तेमाल करना पड़ता है जब वेन्स की अवस्था उपयुक्त नही पायी जाती है. कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में एंजियोपलास्टी का भी सहारा लेना पड़ता है, पर जांघ के नीचे की जाने वाली एंजियोपलास्टी व स्टेटिंग ज्यादा सफल नही रहती है क्योंकि इसके परिणाम शुरूआती दिनों में लुभावने लगते है पर ज्यादा दिन तक इससे मिलने वाला लाभ टिकाऊ नही रहता है. इसलिए इलाज की विधा का निर्धारण बहुत सोच समझ कर करना पड़ता है. हमेशा ऐसे अस्पताल में जायें जहाँ किसी अनुभवी वैस्क्युलर सर्जन की उपलब्धता हो और पैरों की बाईपास सर्जरी नियमित रूप से होती हो. यह सारे इलाज असफल हो जाते है अगर डायबिटीज के मरीज ने धूम्रपान व तम्बाकू का सेवन पूर्णतया बंद न किया हो.
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Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.