महिलाएं नहीं रख पाती हैं अपना ख्याल, बढ़ रही दिल की बीमारी
महिलाओं में बीमार दिल के संकेत: महिलाओं में दिल की बीमारियों के लक्षण पुरुषों के समान ही होते हैं, लेकिन महिलाओं में हार्ट अटैक और कार्डिएक अरेस्ट के दौरान सीने में दर्द पुरूषों जितना गंभीर नहीं होता है, अन्य लक्षण पुरुषों के समान ही होते हैं, जैसे- बिना कठोर शारीरिक श्रम के सांस फूलना अत्यधिक […]
महिलाओं में बीमार दिल के संकेत: महिलाओं में दिल की बीमारियों के लक्षण पुरुषों के समान ही होते हैं, लेकिन महिलाओं में हार्ट अटैक और कार्डिएक अरेस्ट के दौरान सीने में दर्द पुरूषों जितना गंभीर नहीं होता है, अन्य लक्षण पुरुषों के समान ही होते हैं, जैसे-
बिना कठोर शारीरिक श्रम के सांस फूलना
अत्यधिक पसीना आना
लगातार चक्कर आना
अच्छे भोजन और भरपूर सोने के बाद भी थकान महसूस होना
बांहों का सुन्न हो जाना
§ बोलने में जबान लड़खड़ाना
दिल की धड़कनें आसामान्य होना
खतरा बढ़ानेवाले कारक
डायबिटीज : जिन महिलाओं को डायबिटीज होती है, उनके दिल की बीमारियों की चपेट में आने की आशंका डायबिटीज से पीड़ित पुरुषों से अधिक होती है.
मानसिक तनाव और अवसाद : तनाव और अवसाद पुरुषों की तुलना में महिलाओं के दिल को अधिक प्रभावित करते हैं.
धूम्रपान : धूम्रपान महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दिल की बीमारियों का अधिक बड़ा रिस्क फैक्टर है.
शारीरिक सक्रियता में कमी : शारीरिक सक्रियता में कमी दिल को बीमार बनाने में अहम भूमिका निभाती है. कई अध्ययनों में यह तथ्य उभर कर आया है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कम सक्रिय होती हैं, कसरत वगैरह में भी उनकी रुचि कम होती है.
मीनोपॉज : मीनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन के स्तर में कमी महिलाओं के दिल को बीमार बनाने का सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर है, क्योंकि युवा महिलाओं में एस्ट्रोजन दिल के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है.
गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं : कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्त दाब और गैस्टेशनल डायबिटीज की शिकार हो जाती हैं, जिनमें से कुछ में प्रसव के बाद भी समस्याएं बनी रहती हैं, जो इनके दिल के बीमारियों की चपेट में आने की आशंका बढ़ा देती हैं.
एनीमिया : एनीमिया के कारण जब आरबीसी की संख्या कम हो जाती है, तब पूरे शरीर को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए दिल को ज्यादा रक्त पंप करना पड़ता है. इससे दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और लेफ्ट वेंट्रीक्युलर हाइपरट्रॉफी (एलवीएच) होने का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें दिल की मांसपेशियों का आकार बढ़ जाता है. इससे हार्ट फेल होने या लाल आरबीसी के नष्ट होने का खतरा बढ़ जाता है.
समय-समय पर मेडिकल चेकअप जरूरी
दिल की बीमारियों के अधिकतर कारक खामोश होते हैं. ये अपनी मौजूदगी की कोई चेतावनी नहीं देते हैं. इसलिए अपने ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और वजन की नियमित रूप से जांच कराएं. आज की जीवनशैली को देखते हुए यह चेकअप 20 साल की उम्र में ही शुरू कर देने चाहिए. 40 की उम्र पार कर चुकी महिलाओं को स्ट्रेस टेस्ट भी कराना चाहिए.
कुछ जरूरी तथ्य: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ का अध्ययन कहता है कि हार्ट अटैक से मरनेवाले पुरुषों और महिलाओं का अनुपात पहले 10:2 था, जो अब बढ़ कर 10:7 हो गया है.
जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल में हार्ट अटैक से मरनेवाली महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले 12 फीसदी अधिक होती है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के अनुसार, तनाव दिल की बीमारियों की आशंका को 15-20 प्रतिशत बढ़ा देता है.
अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के एक शोध के मुताबिक, भारतीय महिलाओं की धमनियां पुरुषों के मुकाबले संकरी होती हैं, इसलिए उनके हृदय रोगों की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है.
(प्रस्तुति : शमीम खान)
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.