World Mental Health Day : 10 अक्तूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे (World Mental Health Day) है. इस बार विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मेंटल हेल्थ फॉर ऑल : ग्रेटर इनवेस्टमेंट, ग्रेटर ऑक्सेस (More investment on mental health and reach more people) थीम रखा है. आज देश में स्वास्थ्य मंत्रालय के बजट की मात्र तीन फीसदी राशि ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च हो रही है. 10 हजार लोगों पर एक मनोचिकित्सक होने का मानक तय किया गया है. लेकिन, पूरे देश में दो लाख लोगों पर एक मनोचिकित्सक हैं. झारखंड में सवा तीन करोड़ की आबादी पर 100 के करीब मनोचिकित्सक (सरकारी-गैर सरकारी मिलाकर) हैं.
झारखंड के 30 लाख लोगों मेें मनोरोग के लक्षण : अगर मनोचिकित्सा की पढ़ाई करने वाले छात्रों (सीनियर रेजीडेंट) को भी जोड़ दें, तो यह संख्या 140-150 के करीब ही होती है. इनमें से 80 फीसदी मनोचिकित्सक रांची, जमशेदपुर और धनबाद में हैं. कई जिलों में तो एक भी मनोचिकित्सक नहीं है. सात जिलों में जहां मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चल रहा था. इनमें से कुछ में मनोचिकित्सक ही नहीं है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार झारखंड में सवा तीन करोड़ आबादी में से करीब 11.1 फीसदी (करीब 30 लाख) में मनोरोग के लक्षण हैं. इनके इलाज के लिए करीब 100 विशेषज्ञ मनोचिकित्सक ही हैं.
रोग छुपाने से बढ़ेगी परेशानी : सीआइपी के डॉ संजय मुंडा बताते हैं कि अधिक से अधिक मनोचिकित्सक तैयार करें, इसके लिए काम करने की जरूरत है. इसके बिना इस समस्या से नहीं लड़ पायेंगे. चिकित्सक कहते हैं कि इस पेशे में लोगों की कमी के बावजूद झारखंड में दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर चिकित्सा की व्यवस्था है. दो सरकारी व कई निजी अस्पताल हैं. राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिकित्सक हैं. इस कारण अगर किसी में डिप्रेशन, एंजाइटी या मनोरोग के कोई भी लक्षण मिले, तो जरूर इलाज करायेें, क्योंकि छुपाने से रोग बढ़ सकता है. इससे परेशानी भी बढ़ सकती है.
मानसिक स्वास्थ्य स्वाभाविक आवश्यकता : डॉ केशव जी – मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ केशव जी बताया कि मानसिक रोग अब असाध्य नहीं रहा. यह छोटी शारीरिक बीमारियाें की तरह है. मानसिक बीमारी में भी डाॅक्टर की सलाह, दवा व संयम काम आता है. आये दिन मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नये-नये शोध हो रहे हैं. पहले मानसिक बीमारी को सामाजिक उपेक्षा की नजर से देखा जाता था, लेकिन अब लोगों का नजरिया बदल गया है. अब इस बीमारी को छिपाने की प्रवृत्ति कम हुई है.
डिप्रेशन के रोगियों की संख्या अधिक : झारखंड में मनोरोगियों की संख्या देश के औसत संख्या से अधिक है. राष्टीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे की ताजा रिपोर्ट की मुताबिक झारखंड में कुल आबादी का करीब 11.1 फीसदी लोग किसी ना किसी प्रकार के मानसिक बीमारी के शिकार हैं. जबकि पूरे देश में आबादी का करीब 10.6 फीसदी के आसपास आबादी में मनोरोग के लक्षण हैं. इसमें डिप्रेशन वाले रोगियों की संख्या अधिक है. मनोवैज्ञानिक डॉ अनुराधा वत्स डिप्रेशन का सही समय पर इलाज नहीं होने से यह गंभीर मनोरोग हो सकता है. इसके लक्षण को समझकर समय पर इलाज जरूरी है.
यह सही है कि मनोचिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की कमी है. इसके बावजूद रिनपास राज्य सरकार के साथ मिलकर व्यवस्था सुधारने में लगा है. इसके लिए स्टेट मेंटल हेल्थ ऑथिरिटी बनाया गया है. यही राज्य में मनोचिकित्सा के क्षेत्र में व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगा है. राज्य के सात जिलों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने की सहमति भारत सरकार ने दी है. सभी मेडिकल कॉलेजों में साइकेट्रिक यूनिट है. कम्युनिटी स्तर पर मेंटल हेल्थ प्रोग्राम चलाने की रूपरेखा तय की गयी है. सरकार की कोशिश है कि मनोरोगियों का निशुल्क व बेहतर इलाज हो. अधिक से अधिक मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स तैयार हो, इसके लिए नियमावली भी तैयार हो गयी है.
डॉ सुभाष सोरेन, निदेशक, रिनपास
Also Read: लालू यादव को मिली जमानत, लेकिन जेल में ही रहेंगे, नहीं कर सकेंगे बिहार चुनाव में प्रचार
Posted by : Pritish Sahay
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.