सोनल ढींगरा, डिप्टी प्रोग्राम मैनेजर, फूड सेफ्टी एंड टॉक्सिंस टीम, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयर्नमेंट
शहद के बारे में जानने के लिए कुछ मधुमक्खी पालकों से बातचीत करने पर पता चला कि उनके शहद का व्यापार कम होता जा रहा है. उन्होंने इस कमी के कई कारण बताये, जैसे- कीटनाशकों का उपयोग, अंतरराष्ट्रीय बाजार में होनेवाली गिरावट आदि. बातचीत में यह सामने आया कि शहद में सीरप की मिलावट भी होती है. इसी वर्ष जून में एफएसएसएआइ का एक निर्देश जारी हुआ, जिसमें देश में आ रहे राइस, गोल्डन और इन्वर्ट शुगर सीरप के देश में मौजूद आयातकों के डॉक्यूमेंट और आयातित तीनों सीरप के एंड यूज यानी इनका कहां-कहां उपयोग हो रहा है, उसकी पूरी तरह जांच की बात कही गयी थी. इसके बाद हमने राइस, गोल्डन और इन्वर्ट शुगर सीरप की जांच शुरू की.
चीन से आ रहा है फ्रक्टोज सीरप : आरंभिक जांच में राइस सीरप और गोल्डन सीरप का एचएस कोड (हॉर्मोनाइज्ड सिस्टम कोड) नहीं होने से हमें उससे जुड़ी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई. इन्वर्ट शुगर सीरप का कोड उपलब्ध था, लेकिन उसका आयात बहुत कम था. वेबसाइट सर्च करने पर सामने आया कि अलीबाबा, ओकेकैम जैसी अनेक कंपनियां खुलेआम ग्लूकोज, फ्रक्टोज सीरप बेच रही हैं, जिनकी शहद में मिलावट होती है.
इनके मिलावट के बावजूद शहद एफएसएसएआइ के सारे मानक पार कर जाते हैं और पकड़े नहीं जाते. हमारे देश में फ्रक्टोज सीरप केवल चीन से आ रहा है. एक अन्य डेटाबेस ने भी इस बात की पुष्टि की. दवा में प्रयोग के लिए बहुत सी कंपनियां फ्रक्टोज सीरप की आपूर्ति करती हैं. हालांकि, जांच के दौरान उत्तराखंड के जसपुर में भी कुछ शुगर सीरप बनानेवाली फैक्ट्रियों का पता चला.
मानक पर खरे उतरे मिलावटी शहद : चीन से आनेवाले और जसपुर से प्राप्त सीरप की अलग-अलग मात्रा- 25, 50 और 75 प्रतिशत, को रॉ हनी में डालकर जब जांच किया गया, तो सामने आया कि जिन शहद में 25 और 50 प्रतिशत की मिलावट हुई थी, वे एफएसएसएआइ के मानक पर खरे उतर गये. इसके बाद 13 बड़े ब्रैंड के शहद की जांच हुई, जिसमें 10 ब्रैंड जांच में फेल हो गये. केवल तीन ब्रैंड ही एडवांस्ड टेस्ट में खरे उतरे. इनमें से दो जांच जर्मनी में और बाकी के भारत में कराये गये थे.
चिंताजनक है मिलावट : शहद के औषधीय गुणों की वजह से हमारे देश में बड़े पैमाने पर लोग इसका सेवन करते हैं. वजन कम करने के लिए लोग सुबह गर्म पानी के साथ शहद लेते हैं, तो कई एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में इसे लेते हैं. शहद में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं. माना जाता है कि इसके सेवन से दिल की बीमारी, एलर्जी में लाभ होता है. ऐसा भी नहीं है कि शहद में चीनी नहीं होती. होती है, लेकिन इसमें चीनी के साथ कुछ अच्छे गुण भी पाये जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं.
लेकिन, केवल शुगर सीरप से हानि अधिक हो जायेगी. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़े बताते हैं कि मोटापा और अधिक वजन के मामले बढ़ रहे हैं. यदि शहद के नाम पर हम चीनी का सेवन करते रहे, तो हमारे स्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव होगा. कहा जा रहा है कि यदि सहरुग्णता है, तो आपको कोविड-19 संक्रमण से ज्यादा नुकसान होगा. मिलावटी शहद का सेवन वजन बढ़ाने में और सहायक होगा.
खाद्य सुरक्षा पर खतरा : यदि शहद में मिलावट होगी, तो मधुमक्खी पालकों का व्यापार खत्म हो जायेगा. मधुमक्खियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा. मधुमक्खियों के नहीं होने से परागण नहीं होगा और हमारी खाद्य सुरक्षा खतरे में आ जायेगी. यह केवल शहद में मिलावट की बात नहीं है, हमारे लिए दोतरफा नुकसान की बात है. इस मिलावट से अल्पावधि में जन स्वास्थ्य प्रभावित होगा और दीर्घ अवधि में हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए संकट उत्पन्न हो जायेगा. कुल मिलाकर देखें, तो यह मिलावट हमारे अस्तित्व के लिए ही चुनौती उत्पन्न कर रही है.(बातचीत पर आधारित)
सुरक्षा उपाय : सरकार को थोड़ा सतर्क रहना पड़ेगा और शहद में मिलावट का पता लगाना होगा. इस मिलावट को रोकने के लिए सरकार को इन सीरप के आयात पर रोक लगानी होगी. यह बात समझने योग्य है कि जब हमने चार महीने की पड़ताल में जान लिया कि शहद के लिए जो सीरप आ रहा है, वह फ्रक्टोज या ग्लूकोज सीरप के नाम से आ रहा है, तो हमारा फूड रेगुलेटर भी इसका पता लगा ही सकता है और उसे इस बात का पता लगाना चाहिए.
उपभोक्ताओं को भी थोड़ी जागरूकता बढ़ानी पड़ेगी. उन्हें इस बात का पता होना चाहिए कि प्रोसेस्ड यानी प्रसंस्करित शहद के सेवन में नुकसान है. यदि कच्चा शहद यानी राॅ हनी मिलता है तो वे उसे ही खरीदें. जब उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ेगी तो कंपनियां भी राॅ प्रोडक्ट ही बेचेंगी, प्रोसेस्ड नहीं, क्योंकि कंपनियां तो उपभोक्ता के मांग के हिसाब से चलती हैं. हमें अपनी धारणा भी बदलने की जरूरत है. हमारी धारणा में साफ दिखनेवाले शहद ही शुद्ध होते हैं, क्रिस्टलाइज शहद नहीं. जबकि ऐसा नहीं है. शहद का क्रिस्टलाइज होना एक सामान्य प्रक्रिया है. उपभोक्ताओं को यह समझना पड़ेगा कि शुद्ध शहद, राॅ हनी जैसा ही दिखता है.
हमें शहद की ट्रेसेबिलिटी पर काम करना पड़ेगा और उपभोक्ता व उत्पादक को पास ले आना होगा. हमें ऐसी पद्धति विकसित करने की आवश्यकता है जिससे हर उपभोक्ता को पता चल सके कि जिस शहद का सेवन वह कर रहा है, वह कहां से आया है. यदि शहद की शीशी पर लिखा हो कि वह किस जगह से आया है, उसे किस प्रजाति की मधुमक्खी ने तैयार किया है, उसमें किस पेड़-पौधे, बगान का पराग या मकरंद है- यूकेलिप्टस है, नीम है, सरसो है, तो अच्छा रहेगा. ये सारी जानकारी भी उपभोक्ता को मिलनी चाहिए. इसके लिए सरकार को, अथाॅरिटी को काम करना पड़ेगा. हालांकि, शहद की ट्रेसेबिलिटी पर सरकार काम कर रही है, लेकिन वह अभी छोटे स्तर पर है.
ऐसा भी हो सकता है कि आज जो ब्रैंड एनएमआर जैसे एडवांस्ड टेस्ट में फेल हो गये और उनकी शहद में मिलावट का पता चल गया, अगली बार वो पास हो जायें. कंपनियां एनएमआर टेस्ट को तोड़ने वाले सीरप भी बना लें और मिलावट का पता न लग सके. मिलावट से बचने के लिए सरकार को बीच-बीच में अलग-अलग ब्रैंड का रैंडम टेस्ट करते रहना होगा. साथ ही इस ओर भी ध्यान देना होगा कि उपभोक्ता तक जो उत्पाद पहुंच रहा है वह साफ, शुद्ध है या नहीं. यह काम सरकार और उपभोक्ता दोनों को मिलकर करना पड़ेगा.
Posted by: Pritish Sahay
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.