डॉ अर्चना जुनेजा
एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, कोकिलाबेन डी अंबानी हॉस्पिटल, मुंबई
डॉ गौरव गुप्ता
मनोरोग विशेषज्ञ, तुलसी हेल्थकेयर, नयी दिल्ली
हॉर्मोन्स और न्यूरोट्रांसमीटर्स सेहत के रखवाले हैं, जिनका हमारे शरीर के अलावा मस्तिष्क, भावनाओं और अनुभूतियों पर प्रत्यक्ष व गहरा असर पड़ता है. हम सुखद एहसास कर रहे हैं या फिर दुखद, ऐसी सकारात्मक व नकारात्मक स्थितियों में शरीर के विभिन्न भागों से स्रावित होने वाले हॉर्मोन्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐसे में उनका संतुलित बने रहना जरूरी हो जाता है. इस बारे में बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
शरीर के विभिन्न भागों में नलिकाविहीन ग्रंथियों से जो स्राव होते हैं, उन्हें हॉर्मोन्स कहा जाता है. हॉर्मोन ऐसे रसायन हैं, जो रक्त के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों, टिश्यूज, त्वचा और मांसपेशियों तक मस्तिष्क और उसकी तंत्रिकाओं के जरिये संदेश पहुंचाकर शरीर में विभिन्न कार्यों का समन्वय बनाये रखते हैं.
शरीर के किसी भी भाग की नलिकाविहीन ग्रंथियों, जैसे- थायराइड, पैंक्रियाज, पैराथायराइड और एड्रिनल आदि से रिलीज होने वाले रसायन हॉर्मोन्स कहलाते हैं, जो हमारे संपूर्ण शरीर को प्रभावित करते हैं. वहीं, न्यूरोट्रांसमीटर्स मस्तिष्क के भाग, जैसे- पिट्यूटरी ग्लैंड, हाइपोथैलेमस ग्लैंड आदि से रिलीज होते हैं, जिन्हें तंत्रिका तंत्र द्वारा उपयोग किये जाने वाले रासायनिक संदेशवाहक (न्यूरो मैसेंजर) कह सकते हैं.
आमतौर पर महिलाओं में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का स्तर अधिक होता है, जबकि पुरुषों में बहुत कम. तनाव और बेचैनी जैसी समस्या से बचाने का काम करता है यह हॉर्मोन. एस्ट्रोजन की कमी के कारण स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. जरा-सी बात पर मूड का खराब हो जाना या तैश में आने जैसी समस्याएं सामने आती हैं. महिलाओं में खासतौर पर रजोनिवृत्ति (मेनॉपॉज) के वक्त एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है, इस कारण एक बड़ी संख्या में महिलाओं का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है या फिर वे चिंता ग्रस्त रहने लगती है, छोटी-छोटी बातों पर भी उन्हें क्रोध या इरिटेशन होने लगता है.
नलिकाविहीन ग्रंथियों से रिलीज होने वाले इन हॉर्मोन्स का शरीर में अधिक होना या कम होना सेहत के लिहाज से अच्छा नहीं होता. इन सभी हॉर्मोन्स और न्यूरोट्रांसमीटर्स का लेवल शरीर में संतुलित होना चाहिए. हॉर्मोन्स के स्तर के असंतुलन का दुष्प्रभाव व्यक्ति के तन व मन पर भी पड़ता है.
प्रोजेस्टेरॉन की कमी स्वभाव को चिड़चिड़ा और चिंताग्रस्त बना देती है. रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) की अवधि के दौरान अधिकांश महिलाओं को तनाव के दौर से गुजरना पड़ता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके शरीर में एस्ट्रोजन के साथ प्रोजेस्टेरॉन का भी स्तर कम हो जाता है. इस हॉर्मोन का स्तर बढ़ाये रखने के लिए महिलाओं को अपने डॉक्टर या फिर डाइटीशियन से परामर्श लेकर संतुलित व पौष्टिक आहार ग्रहण करना चाहिए. इसके अलावा उन्हें खुद भी ऐसी हॉबीज में संलग्न होना चाहिए, जिससे उन्हें आत्मसंतुष्टि मिल सके.
पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन यौन इच्छा और इससे संबंधित क्रियाओं पर असर डालता है. इस हॉर्मोन की कमी से पुरुषों में ‘इरेक्टाइल डिस्फंक्शन’ नामक समस्या से ग्रस्त होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं. इसके अलावा यह हॉर्मोन मांसपेशियों के विकास में भी सहायक है. टेस्टोस्टेरॉन आपको जोखिम लेने का माद्दा देता है और इसके साथ ही यह प्रतिस्पर्धा करने की प्रेरणा भी प्रदान करता है.
इस संदर्भ में आप डॉक्टर से जरूर परामर्श लें. हां, कुछ सुझावों पर अमल कर हार्मोन्स के स्तर को संतुलित रखा जा सकता है.
नृत्य (डांस) एक ऐसी कला है, जो आपके शरीर को पूरी तरह सक्रिय करती है. डांस से कैलरी बर्न होती है. इसके अलावा डांस का व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. नृत्य हैप्पी हॉर्मोन को रिलीज करने में सहायक है.
द लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार, हैप्पी हॉर्मोन्स को बढ़ाने के लिए ऐसे कार्य किये जा सकते हैं, जिसे करने के बाद खुशी या संतुष्टि मिलती हो. पसंदीदा हॉबी को पूरा करें, जिससे आपको संतुष्टि मिले, जैसे- आपको अगर किसी खेल से लगाव है, तो उस शौक को पूरा करें. पेंटिंग में दिलचस्पी है तो पेंटिंग बनाएं. वहीं, कोई खाद्य पदार्थ अच्छा लगता है, तो उसे खाएं, लेकिन ध्यान रखें कि वह पौष्टिक हो.
कसरत करने से एंडोर्फिन हॉर्मोन का स्तर बढ़ने के अलावा सेरोटोनिन व डोपामाइन हार्मोन्स भी बढ़ते हैं. इसी के साथ यदि आप किसी प्रकार के दर्द से पीड़ित हैं या एक्सरसाइज करते हुए दर्द महसूस हो रहा है, तो ऐसे में एंडोर्फिन आपके दर्द के एहसास को कम करने में सहायक है.
जी हां हंसने से आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है. जी खोलकर हंसिए, क्योंकि हंसने से डोपामाइन और एंडोर्फिन का स्तर बढ़ता है, जिनके परिणामस्वरूप आपका तनाव दूर होता है. वहीं नकारात्मक विचार भी आपके पास नहीं फटकते. मूड को बेहतर बनाने में हंसने का कोई जवाब नहीं.
हैप्पी हॉर्मोन्स को सक्रिय रखने के लिए परिजनों साथ संवाद स्थापित करना बेहतर है. आमतौर पर जो लोग अपने परिजनों और दोस्तों के साथ संवाद स्थापित नहीं करते या सामाजिक मेलजोल से दूर भागते हैं, तो ऐसे लोगों में डिप्रेशन होने का खतरा बढ़ जाता है.
हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति को लगभग 7 से 8 घंटे की नींद लेनी चाहिए. गहरी नींद लेने के बाद हॉर्मोन्स सुचारु रूप से सक्रिय रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति का मूड खुशनुमा बना रहता है.
एक अध्ययन के अनुसार, हैप्पी हॉर्मोन को बढ़ाने में पसंदीदा संगीत का महत्वपूर्ण योगदान है. ऐसे में अपनी पसंदीदा संगीत को सुनें. पसंदीदा गाना या संगीत सुनने से आपका मस्तिष्क डोपामाइन रिलीज करता है. अगर आप किसी बात से परेशान हैं, तो यह आपको फील गुड करने में मदद करता है. जैसे-जैसे आपका मूड बेहतर होता है, वैसे-वैसे सेरोटोनिन के स्तर में बढ़ोतरी होती है. अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, गानों के रिहर्सल के दौरान लोगों के शरीर में एंडोर्फिन के स्तर को बढ़ा हुआ दर्ज किया गया.
अवसाद या डिप्रेशन होना.
रक्तचाप का बढ़ना या फिर डायस्टोलिक लो होना.
नकारात्मक विचारों से ग्रस्त होना.
किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित न होना या मन न लगना.
किसी बीमारी के बगैर थकान या सुस्ती महसूस करना.
भूख से अधिक खाना या फिर भूख से कम खाना.
कालांतर में याददाश्त का कमजोर होना.
अक्सर बदहजमी होना.
विश्वविख्यात मेडिकल जर्नल द लैंसेट के अनुसार, हॉर्मोनल असंतुलन के अनेक कारण फिलहाल अज्ञात हैं, जिन पर शोध-अध्ययन जारी हैं. बावजूद इसके, स्वास्थ्यकर जीवनशैली पर अमल कर जैसे नियमित रूप से व्यायाम करना, निश्चित समय पर संतुलित पौष्टिक आहार ग्रहण करना, पर्याप्त नींद लेना और तनाव का समुचित प्रबंधन करने से हॉर्मोन्स से संबंधित समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके अलावा हॉर्मोन्स असंतुलन के लक्षणों के महसूस होने पर डॉक्टर से परामर्श लें और उनकी राय के अनुसार ही हॉर्मोन से संबंधित जांचें करवाएं.
न्यूरोट्रांसमीटर के अंतर्गत डोपामाइन, सेरोटोनिन, एंडोर्फिन और ऑक्सीटोसिन आदि को प्रमुख तौर पर शुमार किया जाता है. ये सभी मस्तिष्क से रिलीज होते हैं, जिन्हें हैप्पी हॉर्मोन भी कहा जाता है, जो व्यक्ति के मूड, व्यवहार, भूख, नींद और शरीर के तापमान आदि को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं. अपने पसंदीदा शौक को पूरा करने के बाद जो खुशी मिलती है या फिर पसंदीदा खान-पान ग्रहण करने से जो सुखद एहसास होता है, किसी दोस्त या परिजन के साथ बैठकर बात करने से आनंद की जो अनुभूति होती है, उनके कारण हैप्पी हॉर्मोन्स तेजी से रिलीज होते हैं.
अचानक सफलता मिलने के बाद आपको जो खुशी मिलती है या फिर आपके मनोनुकूल कोई कार्य अचानक पूर्ण हो जाता है, तो इस स्थिति में व्यक्ति को जो एहसास होता है, उसकी वजह न्यूरोट्रांसमीटर-डोपामाइन है. कुछ हासिल करने के बाद व्यक्ति को मिलने वाली प्रसन्नता उसे अपने जीवन या कैरियर में बेहतर से उम्दा कार्य करने की प्रेरणा देती है
डोपामाइन के असंतुलन से पार्किंसंस डिजीज और शिजोफ्रेनिया नामक मनोरोग होने का जोखिम बढ़ जाता है.
मनोवांछित परिणाम और सेरोटोनिन का असर
अनुकूल परिणाम मिलने पर प्रसन्नता की जो अनुभूति होती है, उसे आप न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन के कारण ही महसूस करते हैं. अच्छा नतीजा मिले तो हमें अच्छा लगता है. ऐसा नतीजा हमें निकट भविष्य में संतुष्टि और शांति प्रदान करता है.
मन में उत्साह की लहरें उठाने में सहायक है सेरोटोनिन. इसके प्रभाव से व्यक्ति सामाजिक संबंधों को महत्व देता है.
सेरोटोनिन की कमी से डिप्रेशन ग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है. व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और वह अक्सर तनावग्रस्त महसूस करता है.
प्रेम की भावना और ऑक्सीटोसिन का जादू
यह न्यूरोट्रांसमीटर प्रेम की भावना की अनुभूति कराने वाला माना जाता है.
प्रेम के अनेकानेक रूप स्वरूप हैं. अपने परिजनों के प्रति प्रेम, दोस्तों के प्रति प्रेम और इसके साथ ही रोमांस या फिर किसी व्यक्ति के आकर्षण में जो सुखानुभूति होती है, इसका एहसास ऑक्सीटोसिन कराता है. दुनिया में शिशु और मां के बीच जो विशिष्ट अनुपम प्रेम होता है, जिसके कारण मां को मातृत्व का सुखद एहसास होता है, उसका कारण भी ऑक्सीटोसिन है. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है, जो मां में बच्चों के लिए दूध बनाने में मदद करता है. इसके अलावा यौन संपर्क की इच्छा को भी यह हॉर्मोन बढ़ाता है.
व्यायाम करने से यह हॉर्मोन रिलीज होता है. अब आप घर में रहकर योगासन व प्राणायाम करें या फिर सुबह सैर करने जाएं या फिर जिम में जाकर व्यायाम करें, तब यह हॉर्मोन रिलीज होता है. एंडोर्फिन आपको सुखद अनुभूति कराता है. मांसपेशियों में दर्द होने पर या दबाव पड़ने पर जो तकलीफ होती है उसे दूर करने में भी एंडोर्फिन मदद करता है और दर्द को कम करता है. दर्द के नियंत्रण के बाद आपको जो सुखद अनुभूत होती है उसका एहसास भी एंडोर्फिन के कारण होता है. इसे आप कुदरती पेन रिलीविंग हॉर्मोन भी कह सकते हैं. इसका बढ़ा स्तर मूड को खराब भी कर सकता है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.