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कोरोना की तीसरी लहर में कैसे सुरक्षित रह सकेगा ग्रामीण भारत? बता रहे हैं कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ अरुण शर्मा

गांवों के लोग अब भी टीका लगवाने से बच रहे हैं. कई लोग ये भी कहते हैं कि गांवों में सरकार टेस्ट नहीं करा रही है और करवा भी रही है, तो गांववाले खुद ही कोरोना के टेस्ट कराने से भाग रहे हैं.

नई दिल्ली : देश में कोरोना की तीसरी लहर संभावित है. इसमें आशंका यह भी जाहिर की जा रही है कि इससे बच्चे अधिक प्रभावित हो सकते हैं. बताया यह जा रहा है कि कोरोना रोधी टीका ही इसके बचाव का एकमात्र उपाय है. इसके पीछे वजह यह है कि जब बड़ी उम्र के लोग सुरक्षित होंगे, तो बच्चे खुद-ब-खुद सुरक्षित हो जाएंगे. लेकिन, टीकाकरण में समस्या यह आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसे लगवाने से अब भी बच रहे हैं.

मीडिया में यह बात गाहे-ब-गाहे हमेशा यह बात सामने आती रहती है कि गांवों के लोग अब भी टीका लगवाने से बच रहे हैं. कई लोग ये भी कहते हैं कि गांवों में सरकार टेस्ट नहीं करा रही है और करवा भी रही है, तो गांववाले खुद ही कोरोना के टेस्ट कराने से भाग रहे हैं. संसाधन सीमित हैं. गांवों में संक्रमण रोकने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने 16 मई को गाइडलाइन जारी किया है. ऐसी स्थिति में, तीसरी लहर के दौरान ग्रामीण भारत सुरक्षित कैसे रह पाएगा? यह एक बहुत बड़ा सवाल है. आइए, जानते हैं कि इसे लेकर कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ अरुण कुमार शर्मा क्या उपाय बताते हैं.

ग्रामीण इलाकों तक पहुंचे शहरी चिकित्सा सुविधा

डॉ शर्मा कहते हैं कि गांवों में इस समय जिम्मेदारी तय करने की बात है. गांवों के कई हिस्सों में अभी तक 4जी नेटवर्क की सुविधा नहीं है. ऐसे में सही तो ये है कि सभी ग्राम प्रधान पंचायत भवन में कुछ ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था पहले से करके रखें. साथ ही, इलाज की जो व्यवस्था शहरों में चल रही है, उसे गांवों तक पहुंचाया जाए. कोरोना से बचाव का जो प्रचार हम फोन के कॉलर ट्यून में सुन रहे हैं, वो गांवों में वर्ड ऑफ माउथ (मुहांमुही) की तरह रहे. लोग एक-दूसरे को बचाव का उपाय बताएं. अगर लोगों को बचाना है और तीसरी लहर को आने से रोकना है, तो इतनी न्यूनतम व्यवस्था करनी ही होगी.

बच्चों से पहले बड़ों को बचाइए

उन्होंने आगे कहा कि बच्चों में जो इंफ़ेक्शन आया है, वह बड़ों से आया है. संक्रमण के ट्रांसमिशन की चेन में बच्चे सबसे नीचे हैं. अब अगर अस्पतालों में भर्ती होने की बात करें, तो 1-2 फीसदी बच्चे ही अस्पताल में भर्ती हुए हैं. बच्चों में रोग की गंभीरता बहुत कम है. आपको बच्चों को बचाना है, तो सबसे पहले बड़ों को बचाइए. उन्हें संक्रमण से दूर रखिए. उनका वैक्सीनेशन पूरा होना चाहिए. बच्चे अपने आप बच जाएंगे.

गांवों में टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट पर देना होगा जोर

डॉ शर्मा ने कहा कि शहरों की अपेक्षा गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं. ऐसे में गांवों के लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाया, तो उनके गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका बनी रहेगी. इसलिए गांव में टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के आधार पर कार्य करना होगा. जिस गांव में संक्रमण बढ़ रहा है, वहां टेस्टिंग के कैम्प लगा कर रैंडम टेस्टिंग करनी चाहिए. संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों को अलग रखना चाहिए.

संक्रमित लोगों को अलग रखने के लिए अगर घर में व्यवस्था न हो, तो पंचायत भवन या स्कूलों का उपयोग भी किया जाना चाहिए. गांव के अस्पतालों में कोरोना के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की किट उपलब्ध करवा कर हल्के लक्षण वाले मरीजों को तुरंत उपचार दिया जाए, तो वे जल्दी ठीक हो सकते हैं.

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Posted by : Vishwat Sen

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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