Health Tips : क्या आपको चलने-फिरने के समय घुटनों या शरीर के किसी अंग में हड्डियों के जोड़ों में दर्द होता है? आपकी उम्र 40 के पार है? अगर होता है, तो आप सावधान हो जाएं. कहीं ऐसा न हो किए ये ऑर्थराइटिस हो और आप इसे 40 पार होने के बाद भी नजरअंदाज करते जाएं. ऐसी स्थिति में यह आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसी स्थिति में आप तुरंत किसी डॉक्टर के पास जाएं और उनसे सलाह लें. आइए, जानते हैं कि विशेषज्ञ क्या कहते हैं…
शारीरिक श्रम जरूरी : बिहार की राजधानी पटना के हनुमान नगर स्थित गोविन्द ऑर्थोकेयर के आर्थोपेडिक एवं प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ अश्विनी पंकज का कहना है कि व्यक्ति को शारीरिक श्रम करना बेहद जरूरी है.उन्होंने कहा कि हमारा खानपान और दिनचर्या पूरी तरह से बिगड़ चुकी है और यह लगातार जारी है। इसमें नई पीढ़ी काफी आगे है. इसी का नतीजा है कि लोग ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटाइड ऑर्थराइटिस के शिकार हो रहे हैं. ये दोनों समस्या गठिया के दो प्रकार हैं, जिसमें जोड़ों में दर्द और जकड़न की शिकायत रहती है. जीवन कष्टमय हो जाता है. कई बार आदमी का जीवन ठहर सा जाता है. ऐसे में मेरी सलाह है कि व्यक्ति को शारीरिक श्रम करते रहना चाहिए.
ऑस्टियो आर्थराइटिस : ऑस्टियो आर्थराइटिस गठिया रोग के सबसे आम रूप में गिना जाता है. इसमें व्यक्ति के जोड़ों में दर्द और सूजन के साथ-साथ हिलने- डुलने की गति पर भी असर पड़ता है. ऑस्टियो आर्थराइटिस हमारे जोड़ों के कार्टिलेज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और धीरे-धीरे कार्टिलेज टूटना शुरू हो जाते हैं.
रूमेटॉइड आर्थराइटिस : रूमेटॉइड आर्थराइटिस से हमारे जोड़ों की परत को हानि होती है. रूमेटॉइड आर्थराइटिस में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी सिस्टम) अपने ही शरीर के ऊ तकों पर हमला कर देती है. जोड़ों की परतों को क्षति पहुंचने की वजह से जोड़ों में दर्द और सूजन जैसी समस्याएं हो जाती हैं.
ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के चार स्टेज : डॉ अश्विनी कुमार पंकज के मुताबिक, यदि घुटना के ऑस्टियोऑर्थराइटिस की बात की जाए तो इसके चार ग्रेड होते हैं. पहले और दूसर ग्रेड की स्थिति में शरीर के भावभंगिमा के तरीके में बदलाव लाकर, व्यायाम या एक्युप्रेशर और दवा से इलाज किया जाता है. पालथी मारकर बैठना मना होता है. इसी तरह उकड़ू मारकर या चुक्कु-मुक्कु नहीं बैठना होता है. शरीर के वजन को नियंत्रित रखना पड़ता है. शौच त्याग करने के लिए कमोड या पश्चिमी टॉयलेट का इस्तेमाल करना चाहिए. सीढ़ी कम चढ़ा चाहिए. दवा में विटामिन डी और कैल्सियम दिया जाता है, लेकिन यदि बीमारी तीसरे या चौथे स्टेज में पहुंच चुका है, तो दर्द से राहत के लिए प्रत्यारोपण ही एक मात्र उपाय बचता है.
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण : शुरुआत में सीढ़ी चढ़ने में दिक्कत होना, भारतीय तरीके से शौच करने में समस्या होना आदि ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण हैं. समस्या थोड़ी बढ़ने पर घुटना से आवाज आने लगती है. चलने में दर्द होने लगता है. पैर टेड़ा होने लगता है. सूजन भी आ जाता है. बाद वाले स्टेज में सोने, मोड़ने और छूने पर भी घुटना दर्द करना.
क्या खाएं : गठिया रोग में दूध और कैल्सियम वाले खाद्य पदार्थों का सेवन फायदेमंद होता है. ड्राईफ्रुट्स, नट्स का सेवन करें. इसके अलावा विटामिन-सी से युक्त फलों का सेवन करें. जैसे कि मौसमी, संतरा, अनानास, कीवी, नींबू, बैरीज, आदि। लहसुन, अदरक, हल्दी ब्रोकली, जामुन, पालक, टमाटर, कद्दू आदि भी गठिया रोग में फायदेमंद हैं. रूमेटॉइड आर्थराइटिस की स्थिति में बीन्स, नट्स, कौड लीवर ऑयल, मछली का सेवन करना होता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड जिसमें ज्यादा हो वह चीज ज्यादा खानी चाहिए.
क्या करें उपाय : वैसे तो अर्थराइटिस आजीवन रहने वाली एक बीमारी है, जिसको जड़ से नहीं ख़त्म किया जा सकता. फिर भी कुछ उपायों के द्वारा इस रोग की पीड़ा से छुटकारा पाया जा सकता है. कुछ उपायों को अपनाकर हम अर्थराइटिस के अत्यधिक तीव्र दर्द को कम भी कर सकते हैं.
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वजन कम करें. यदि आपका वज़न बढ़ जाता है तो ऐसे में आर्थराइटिस की समस्या और ज़्यादा परेशानी का सबब बन सकती है.
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व्यायाम करना भी काफ़ी फ़ायदेमंद होता है. इससे शरीर में मूवमेंट होगी जो जोड़ों की फंक्शनिंग को ठीक कर सकता है. हालांकि, कई तरह के व्यायाम रोगियों को मुश्किल में भी डाल सकते हैं. इसलिए डॉक्टर तथा एक्सपर्ट की सलाह से ही व्यायाम करें.
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रूमेटॉइड आर्थराइटिस मुख्त: दवा से नियंत्रित होता है, लेकिन डॉक्टर की सलाह से दवा लेनी चाहिए या छोड़नी चाहिए, अन्यथा मर्ज और बढ़ सकता है.
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क्या नहीं खाएं : अधिक ठंडे पदार्थ खाने से परहेज करें. मैदा युक्त पदार्थ जैसे बिस्किट्स, स्नैक्स, चिप्स आदि से भी दूर रहें. कैफीन का अधिक इस्तेमाल करने से बचें. घी या तेल से बने पदार्थ और डीप फ्राइड भोजन के सेवन से भी अपने आप को दूर रखें.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.