भारत कोरोना से लड़ने को लेकर कितना तैयार है. इसी सवाल पर है हमारी ये रिर्पोट. दरअसल, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) और कोलोराडो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, कोरोना प्रभावित मरीज जिन्हें तीव्र श्वसन संबंधी समस्या हो रही है या जिन्हें वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, वैसे COVID-19 मरीजों को ठीक करने में काम आ रही है Clot-busting दवा.
यह दवा भारी मात्रा में अस्पतालों में उपयोग की जाने वाली एक तरह की प्रोटीन है, जिसे टिशू प्लास्मीनोजेन एक्टीवेटर (टीपीए) भी कहा जाता है. यह दवा आमतौर पर उन लोगों को दी जाती है, जिन्हें रक्त के थक्के को भंग करने के लिए कार्डियक अरेस्ट या स्ट्रोक का सामना करना पड़ता है.
चीन और इटली के आंकड़ों से पता चला है कि COVID-19 रोगियों में रक्त के थक्के जमने के कई मामले सामने आये हैं. जिससे मरीजों को श्वसन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और जिससे उनकी मौत भी हो जा रही है.
कुछ शोधों से यह भी पता चला है कि श्वसन संबंधी समस्याओं के दौरान रक्त के कुछ छोटे-छोटे थक्के अक्सर फेफड़ों में बन जाते हैं. यही थक्के रक्त को फेफड़ों से श्वसन नली तक पहुंचने से रोकते हैं.
आपको बता दें कि क्लॉट-बस्टिंग दवा बिल्कुल आम दवा है जो लगभग सारे दवा दुकानों और अस्पतालों में उपलब्ध होता हैं.
एक आंकड़ा ये भ आया है कि COVID-19 पॉजिटिव रोगियों में से 81 प्रतिशत को हल्की बीमारी होती है जबकि 5 प्रतिशत रोगियों को गहन देखभाल की आवश्यकता होती है. जिसमें वेंटिलेटर दूसरा सबसे कामगार उपाय है जो मरीजों को सांस लेने में मदद करता है.
लेकिन क्या आपको मालूम है 1.4 बिलियन लोगों की आबादी वाले भारत में करीब 50 हजार ही वेंटिलेटर है, जो सुचारू रूप से काम करते हैं. वो भी बड़े सरकारी मेडिकल अस्पतालों और कॉलेजों या बड़े निजी अस्पतालों में ही मौजूद हैं.
जबकि भारत को अगर कोरोना से लड़ना है तो 2 लाख से ज्यादा बेड की जरूरत पड़ सकती है. अत: इस लंबी लड़ाई में भारत अभी काफी पिछे है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.