Loading election data...

अब घरों में नहीं तैयार किये जाते हैं मसालों के जायके, जानें क्यों

हाल के वर्षों में हम रेडीमेड मसालों के इतने आदी हो चुके हैं कि घर पर कुटे-पिसे मसालों का रस हमारी जिह्वा भूल चुकी है. विभिन्न मसालों के मिश्रण अब घरों में नहीं तैयार किये जाते हैं. हमाम दस्ते और सिलबट्टे को मिक्सी ने पछाड़ दिया है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 11, 2022 2:20 PM

पुष्पेश पंत

भारतीय खाना मसालों के लिए विश्वविख्यात है या कुछ लोगों की नजर में, जो मसालों को कम जानते हैं, बदनाम है. मसालों को मिर्च-मसाले का पर्याय मान लेना गलत है. मिर्च तो हिंदुस्तान में पुर्तगालियों के साथ 15वीं शताब्दी के अंत में पहुंची, जबकि भारत का दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ मसालों का व्यापार हजारों साल पुराना है. हां, बेचारे यूरोपवासी लौंग, काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, जावित्री-जायफल जैसे सुवासित और गुणकारी मसालों से वंचित ही रहे थे. सच तो यह है कि तमाम मसाले तीखे नहीं होते, बल्कि हर एक का अपना जायका और अपनी तासीर होती है. भारतीय खाने की, चाहे वह किसी भी प्रदेश का हो, यही विशेषता है कि पारंपरिक व्यंजनों में मसालों का उपयोग सिर्फ फीके पदार्थ को स्वादिष्ट बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि उनके गुणों तथा बदलते मौसम के अनुकूल किया जाता रहा है.

इसका एक उदाहरण गरम मसाला है. आज इसके पैकेट बंद अवतार को हर चीज में झोंक दिया जाता है. तंदूरी या चाट मसाले की तरह यह दूसरे मसालों के सर पर चढ़ कर बोलने लगता है. आज हम उन मसालों का जायका लगभग भूल चुके हैं, जो हर घर में मसाले के डब्बे में मौजूद रहते थे, जैसे- हल्दी, धनिया, जीरा तथा खटाई (अमचूर). साबुत मसालों के और पिसे मसालों के जायके में भी बड़ा फर्क होता है. जीरा, धनिया, मेथी, राई, सरसों कई तरह से बरते जाते हैं. पाक विधि की जरूरत तथा स्वादानुसार. हींग, अजवाइन तथा सौंफ को कई घरेलू औषधियों में शुमार किया जाता है.

एक दिलचस्प बात यह है कि देश-विदेश में प्याज सब्जियों की सूची में जगह पाता है, परंतु हमारे देश में यह मसालों का भी अभिन्न अंग है, खासकर मांसाहारियों के आहार में इसका भरपूर प्रयोग होता है. लहसुन-प्याज सात्विक भोजन में वर्जित हैं. ‘गोश्त के मसाले’ की यह जान हैं और कटहल या पनीर आदि में इनका प्रयोग होने लगा है. भरवां सब्जियां भी इनके जायके के अभाव में अधूरी लगती हैं. अदरक, ताजा हो या सूखी (सौंठ), सात्विक ही मानी जाती है. बहुत सारे ऐसे मसाले हैं, जो अब लुप्त होने लगे हैं. कलौंजी, पीपली, चक्री फूल, पत्थर फूल इनमें सबसे पहले याद आते हैं.

हाल के वर्षों में हम रेडीमेड मसालों के इतने आदी हो चुके हैं कि घर पर कुटे-पिसे मसालों का रस हमारी जिह्वा भूल चुकी है. विभिन्न मसालों के मिश्रण अब घरों में नहीं तैयार किये जाते हैं. हमाम दस्ते और सिलबट्टे को मिक्सी ने पछाड़ दिया है. खुरदुरे और महीन पीसे मसाले भी अपने जायके मुंह में अलग तरह से दर्ज कराते हैं. मसालों का जायका भूनने तथा तलने से निखरता है. तेल या घी में ही घुलने वाले द्रव्य ही अपनी सुगंध वातावरण में फैलाते हैं. यदि मसाले ठीक से तले/भुने न गये हों, तो इनका कच्चा जायका गुड़ गोबर कर देता है.

मसालों का जिक्र हो, तब हम केसर को कैसे भूल सकते हैं. इसे दुनिया का सबसे महंगा मसाला कहा जाता है. कुछ और मसालों की तरह इसका प्रयोग सामिष तथा निरामिष व्यंजनों में होता है. नमकीन तथा मीठे जायके वाले व्यंजनों में इलायची, लौंग की ही तरह इसकी कद्र की जाती है.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

Next Article

Exit mobile version