International Childhood Cancer Day: बच्चों की शारीरिक समस्याओं को न करें नजरअंदाज, ऐसे रखें ख्याल
International Childhood Cancer Day: बच्चों में होने वाले कैंसर के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए ही हर वर्ष 15 फरवरी को इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे के रूप में मनाया जाता है. बच्चों को इस खतरे से बचाने के लिए कई उपाय हैं.
रजनी अरोड़ा
आमतौर पर कैंसर वयस्कों की बीमारी मानी जाती है, लेकिन पिछले दशक से देखने में आ रहा है कि 1 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चे भी इस गंभीर रोग की चपेट में आते जा रहे हैं. मेडिकल टर्म में बच्चों के कैंसर को ‘चाइल्डहुड कैंसर’ कहा जाता है. विश्व पटल पर देखा जाये तो चाइल्डहुड कैंसर 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और दुनियाभर में हर वर्ष लगभग 1.75 लाख से ज्यादा बच्चे इसकी वजह से अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं. बच्चों में होने वाले कैंसर के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए ही हर वर्ष 15 फरवरी को ‘इंटरनेशनल चाइल्डहुड कैंसर डे’ के रूप में मनाया जाता है. बच्चों को इस खतरे से बचाने के उपाय बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ.
कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जो किसी भी उम्र में हो सकती है और शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है. यह कोशिकाओं में जेनेटिक बदलाव से शुरू होती है, फिर ट्यूमर का रूप ले लेती है. आइसीएमआर, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च और डब्ल्यूएचओ द्वारा की गयी एक साझा अध्ययन के हिसाब से भारत में कैंसर पीड़ित तकरीबन 80 प्रतिशत बच्चों का इलाज संभव है और वे लंबे समय तक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
देश में हर वर्ष 50 हजार नये मामले
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, दुनियाभर में हर वर्ष 14 वर्ष तक के तकरीबन 4 लाख बच्चे कैंसर की चपेट में आ जाते हैं, जो कि सभी प्रकार के कैंसर का 3 से 4 प्रतिशत है. अपने देश में ही सालाना चाइल्डहुड कैंसर के तकरीबन 50 हजार नये मामले सामने आते हैं. बच्चों में पाया जाने वाला सबसे आम कैंसर ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) है, जो भारत में बच्चों के कैंसर के सभी मामलों में लगभग एक तिहाई (33 प्रतिशत) तक पाया जाता है, इसके बाद ब्रेन ट्यूमर (20 प्रतिशत) और लिम्फोमा (10 प्रतिशत) का स्थान है. इनके अलावा बच्चों में विल्म्स ट्यूमर (किडनी में), न्यूरोब्लास्टोमा (एड्रेनल ग्लैंड में), सार्कोमा (मसल्स और हड्डियों में) और रेटिनोब्लास्टोमा (आंखों में) कैंसर भी मिलते हैं.
बड़ों के कैंसर से होता है अलग
चाइल्डहुड कैंसर बड़ों के कैंसर से थोड़ा अलग होते हैं. बड़ों में कैंसर ज्यादातर अस्वास्थ्यकर जीवनशैली और खान-पान की गलत आदतों की वजह से होते हैं. केवल पांच प्रतिशत चाइल्डहुड कैंसर के पीछे इनका हाथ रहता है. जेनेटिक कारणों व सेल्स में बायोलॉजिकल म्यूटेशन से बच्चों में कैंसर होते हैं. चाइल्डहुड कैंसर में ब्लड कैंसर, लिम्फोमा, किडनी जैसे चाइल्डहुड कैंसर में प्रभावित अंगों में आमतौर पर सूजन होती है, जबकि वयस्कों के कैंसर के दौरान मरीज में मेटास्टिस या रूप व आकार में बदलाव आने की संभावना रहती है. चाइल्डहुड कैंसर हाइ ग्रेड होते हैं, यानी बहुत जल्दी बढ़ते हैं, इलाज और रिकवरी रिजल्ट भी बहुत अच्छा मिलता है.
80 प्रतिशत बच्चे हो सकते हैं स्वस्थ
सर्वाइवल रेट पर नजर डालें, तो जहां वयस्क मरीजों में 50 प्रतिशत मिलता है. वहीं सही समय पर जांच और समुचित उपचार से तकरीबन 80 प्रतिशत बच्चों को जानलेवा कैंसर से बचाया जा सकता है. पॉजिटिव एप्रोच रखने के कारण बच्चे बड़ों की अपेक्षा ट्रीटमेंट को अच्छी तरह झेल लेते हैं. उनमें रिकवरी और सर्वाइवल रेट भी ज्यादा होता है.
सतर्कता बहुत जरूरी
जिद या बहाना मानकर नजरअंदाज करने की जगह अभिभावकों को बच्चों की शारीरिक समस्याओं या बीमारी पर ध्यान देना चाहिए. खासकर समुचित उपचार करने के बावजूद अगर बच्चे की स्थिति में 15 से 20 दिन तक सुधार न आ रहा हो या कुछ समय बाद बार-बार वही समस्याएं हो रही हों. ऐसी स्थिति में टर्सरी केयर सेंटर में सीनियर डॉक्टर या ऑन्कोलॉजी स्पेशलिस्ट डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी हो जाता है, जैसे- बच्चे को सुबह सिरदर्द के साथ उल्टी आना, पैरों में दर्द की वजह से थोड़ी-थोड़ी देर बाद ही गोदी में उठाने की जिद करना, बार-बार बुखार आना, गर्दन की गांठों का बढ़ना, आंख की पुतली के अंदर से सफेद होना, आंखों में भेंगापन नजर आना, स्किन पर लाल-नीले चकत्ते या रैशेज होना आदि.
कैसे होता है यह डायग्नोज
ब्लड कैंसर पीड़ित बच्चे का ब्लड टेस्ट, लिम्फोमा के लिए बायोप्सी और सीटी स्कैन किया जाता है, ब्लड कैंसर के लिए बोन मैरो की भी जांच करते हैं, ब्रेन ट्यूमर और बोन ट्यूमर की जांच एमआरआइ, सीटी स्कैन और बायोप्सी से की जाती है, रेटिनोब्लास्टोमा की पहचान के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की जाती है.
बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़े भ्रम व तथ्य
मिथ : बच्चों व बड़ों में होनेवाले कैंसर एक जैसे होते हैं.
तथ्य : बड़ों में होने वाले कैंसर की तुलना में बच्चों में होने वाले कैंसर काफी अलग होते हैं. कैंसर के प्रकार, रोग की प्रकृति व उपचार के मामले में भी ये बहुत भिन्न होते हैं.
मिथ : बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर लाइलाज है.
तथ्य: बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर बड़ों से बहुत अलग होता है. इनमें 80 प्रतिशत मामले इलाज के योग्य होते हैं.
मिथ : बच्चों में होने वाले कैंसर आनुवंशिक होते हैं.
तथ्य: कैंसर डीएनए में बदलाव के कारण होते हैं, लेकिन बच्चों में होने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा कैंसर के मामले आनुवंशिक नहीं होते हैं.
मिथ : चाइडहुल्ड कैंसर बड़ों में होने वाले कैंसर से ज्यादा आसानी से पकड़ में आ जाता है.
तथ्य : बच्चों में कैंसर के लक्षण अन्य सामान्य बाल रोगों के जैसे ही हो सकते हैं. यही वजह है कि इसका पता लगा पाना मुश्किल होता है, लेकिन समुचित उपचार के बाद भी यदि शारीरिक समस्या बनी रहे व जुड़े कोई भी लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो ऑन्कोलॉजिस्ट से सलाह लेनी चाहिए.
मिथ : चाइल्डहुड कैंसर के शिकार बच्चे कभी सामान्य जीवन नहीं जी सकते.
तथ्य : ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. कैंसर से पीड़ित बच्चे उपचार के बाद अपने साथियों की तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं. कुछ मामलों में उन्हें पर्याप्त देखभाल की जरूरत अवश्य होती है.
क्या हैं इसके लिए उपचार
कैंसर का उपचार मल्टी मोर्टेलिटी ट्रीटमेंट है, जिसमें अलग-अलग थेरेपी और एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है. इलाज छह महीने से तीन वर्ष तक चलता है. बच्चों के लिए उपचार की विधियों का प्रयोग स्पेशलाइज तरीके से किया जाता है. ज्यादातर चाइल्डहुड कैंसर का उपचार कीमोथेरेपी से किया जाता है. ब्लड कैंसर के लिए कीमोथेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है. न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर जैसे कैंसर में बनने बनने वाली गांठों के सर्जरी के माध्यम से हटाया जाता है.
क्या होते हैं साइड इफेक्ट
बच्चे को कुछ समय के लिए उपचार के साइड इफेक्ट का सामना करना पड़ता है, जैसे- बाल झड़ना, ब्लड का हीमोग्लोबिन कम होना आदि. हालांकि, ये लंबे वक्त तक नहीं रहते हैं, समुचित उपचार से कैंसर ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट कुछ समय बाद खत्म हो जाते हैं. मरीज रिकवर कर जाता है और आगे की जिंदगी सामान्य जी पाता है. बच्चों को मेंटल ट्रॉमा का सामना करना पड़ सकता है, उनकी पढ़ाई पर भी असर पड़ता है. इसके लिए समय-समय पर काउंसलिंग की जाती है और जरूरत पड़ने पर मेडिसिन भी दी जाती हैं.
उपचार के बाद देखभाल
बच्चों के कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी कारगर है, लेकिन कीमोथेरेपी के बाद मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है, इसलिए विशेष ध्यान रखना जरूरी हो जाता है, ताकि बच्चे को किसी तरह का इंफेक्शन न हो. इससे बचने के लिए हाइजीन का विशेष ध्यान रखना होता है, बच्चे को रोजाना नहलाना चाहिए या स्पॉन्ज जरूर कराना चाहिए और साफ-सुथरे कपड़े पहनाये जाने चाहिए. रिकवर हो रहे बच्चे को भीड़-भाड़ वाली जगह या पार्टियों में ले जाने से बचें. पोषक तत्वों से भरपूर आहार दे. आहार बनाने में स्वच्छता का ध्यान रखें.
किन कारणों से होता है बच्चों में कैंसर
लगभग 90 प्रतिशत बच्चों के कैंसर का कोई स्पष्ट कारण नहीं होता है. फिर भी इनके पीछे मूलतः दो कारण रहते हैं.
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आनुवंशिक : तकरीबन 5 प्रतिशत चाइल्डहुड कैंसर जेनेटिक या आनुवंशिक कारणों से होते हैं, जो माता-पिता के डीएनए जीन्स के रूप में बच्चों में ट्रांसफर होते हैं. इसमें रेटिनोब्लासटोमा, ब्रेस्ट कैंसर आते हैं.
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बाहरी एक्सपोजर : ज्यादातर मामले बाहरी एक्सपोजर से जीन में होने वाले म्युटेशन के कारण होते हैं. ये कारण, जैसे- बदलते लाइफस्टाइल, पीयर प्रेशर और आसानी से उपलब्धता की वजह से अर्ली चाइल्डहुड यानी 10-14 वर्ष के बच्चों में तंबाकू-सिगरेट सेवन का बढ़ता चलन, पैसिव स्मोकिंग या सेकंड हैंड स्मोकिंग, एक्स रे, सीटी स्कैन में होने वाला रेडिएशन एक्सपोजर, इंडस्ट्री के पास रहने के कारण कैमिकल एक्सपोजर, पेस्टीसाइड युक्त भोजन, स्मोक्ड या ग्रिल फूड का अधिक सेवन, हाइ कैलोरी फैटी डायट का सेवन, वातावरणीय प्रदूषण और मोटापे की वजह से शरीर के सेल्स का अनियंत्रित विकास आदि हो सकते हैं.
क्या होते हैं लक्षण
कैंसर के प्रकार के हिसाब से बच्चे में लक्षण भी देखने को मिलते हैं. कई बार बच्चों में कैंसर के लक्षण पहचानने में कठिनाई होती है, क्योंकि ये सामान्य बीमारी की तरह होते हैं. उन्हें पहचानकर समय पर डायग्नोज हो जाये और बच्चे को समुचित उपचार मिले, तो निश्चय ही कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचाव संभव है.
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ल्यूकेमिया : ब्लड प्लेटलेट्स की कमी, स्किन के नीचे ब्लीडिंग होना, शरीर पर नीले, काले व लाल रंग के स्पॉट्स पड़ना, हीमोग्लोबिन का स्तर कम होना, बच्चा दिन-ब-दिन पीला या सफेद दिखना, कमजोरी महसूस होना, वजन कम होना, लगातार बुखार रहना.
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ब्रेन ट्यूमर : सिरदर्द, उल्टी आना खासकर सुबह उठने के बाद उल्टी की फीलिंग होना, दौरे पड़ना, चक्कर आना.
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लिम्फोमा : गर्दन की लिम्फनोड ग्रंथियों में सूजन और गांठ होना, दर्द होना.
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न्यूरोब्लास्टोमा : किडनी के ऊपरी भाग व पेट में सूजन, दर्द, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन.
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रेटिनोब्लास्टोमा : आंखों में बदलाव, पुतली का सफेद या लाल होना, सूजन होना, अंधेरे में बिल्ली की आंखों की तरह चमकना, नजर कमजोर होना.
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बोन कैंसर : शरीर के किसी भी हिस्से में बच्चे को अकारण दर्द होना, दर्द का लगातार बने रहना हड्डी या जोड़ों में गांठ-सा बनना, हाथ या पैर के जाइंट की हड्डियों में सूजन और दर्द होना.
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विल्म्स ट्यूमर : पेट में गांठ होना, पेट फूला-फूला रहना, दर्द होना, खाना ठीक तरह न खा पाना, यूरिनरी समस्याएं होना.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.