क्यों ज्यादातर दक्षिण भारतीय ही होती हैं भारत में नर्सें, जानिए हकीकत
why South Indian nurses is most in India जहां कोरोना से देश-दुनिया में कोहराम मचा हुआ है, वहीं हमारे स्वास्थ्यकर्मी इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने में जुड़े हुए है. आज वर्ल्ड हेल्थ दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी नर्सों के सम्मान को ही थीम बनाया है. और हमारी ये रिर्पोट भी उन नर्सों पर ही हैं, जो अपना घर-परिवार छोड़ हमें और आपको बचाने में लगी हुई हैं. क्या आपको मालूम है कि भारत में ज्यादातर नर्सें दक्षिण भारतीय से ही होती हैं. जानिए इसके पीछे क्या है सच्चाई..
जहां कोरोना से देश-दुनिया में कोहराम मचा हुआ है, वहीं हमारे स्वास्थ्यकर्मी इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने में जुड़े हुए है. आज वर्ल्ड हेल्थ दिवस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी नर्सों के सम्मान को ही थीम बनाया है. और हमारी ये रिर्पोट भी उन नर्सों पर ही हैं, जो अपना घर-परिवार छोड़ हमें और आपको बचाने में लगी हुई हैं. क्या आपको मालूम है कि भारत में ज्यादातर नर्सें दक्षिण भारतीय से ही होती हैं. जानिए इसके पीछे क्या है सच्चाई..
दरअसल, विशेषज्ञों की मानें तो समर्पण, बुद्धी और समय की पाबंदी के मामले में दक्षिण भारत की नर्सों का कोई विकल्प नहीं है. यह दावा दक्षिण भारतीय ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों ने भी किया है. आपको बता दें कि दक्षिण भारत में ज्यादातर लड़कियां नर्सिंग में ही करियर चुनती हैं.
इसका एक वजह यह भी है कि दक्षिण भारत, खासकर केरल, कर्नाटक में सैकड़ों नर्सिंग कॉलेज और अन्य संस्थान है जो हर साल नर्सों को प्रशिक्षित करते हैं. यहां नर्सिंग की पढ़ाई आम है. आपको बता दें कि देश से बाहर भी यहां की नर्सों का डिमांड है. पड़ोसी देश अक्सर केरल में नर्सिंग छात्रों पर नज़र रखते हैं. उनका मानना है कि यहां कि छात्राएं काफी समर्पण रूप से कार्य करती हैं. इनमें बुद्धी भी बाकी जहगों के नर्सों से अधिक होता है. इनकी कार्यक्षमता बहुत अधिक होती है. और समय की पाबंद होती हैं. यही कारण है कि विदेशों में भारतीय नर्सों की मांग अधिक है.
एक और फैक्ट यह भी है कि केरल में साक्षरता बहुत अधिक है और महिलाओं का अनुपात भी बाकि राज्यों के मुकाबले अधिक है. ज्यादातर मामलों में यह भी देखा गया है कि पुरूष इस तरह के सेवा को करने से इतराते है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में यह आंकड़ा भी बदला है. केरल के नर्सों को भारत भर के अस्पतालों की जीवन रेखा माना जाता है.
जानें क्या है इस बार वर्ल्ड हेल्थ दिवस का इतिहास
1948 में 7 अप्रैल, के दिन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अन्य सहयोगी और संबद्ध संस्था के रूप में दुनिया के 193 देशों ने मिल कर स्विट्जरलैंड के जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की नींव रखी थी. उसी साल डब्ल्यूएचओ की पहली विश्व स्वास्थ्य सभा हुई, जिसमें 7 अप्रैल, से हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का फैसला लिया गया. इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को ऊंचा उठाना है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.