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Lumpy Skin Disease: लंपी रोग दुधारू पशुओं के लिए बना संकट, जानें इसके लक्षण और बचाव के उपाय

देश के दुधारू पशुओं और पशुपालकों पर इन दिनों संकट छाया हुआ है. एक महीने से देशभर के 12 से अधिक राज्यों के 16 लाख से अधिक पशुधन, विशेषकर गोवंश, लंपी वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और 70 हजार से अधिक मवेशियों की जान जा चुकी है. इसने दूध उत्पादन पर भी असर डाला है.

Lumpy Skin Disease: भारतीय खेती-किसानी इन दिनों विकट स्थिति का सामना कर रही है. जहां मौसम की मार से फसलों को हानि पहुंची है, वहीं लंपी स्किन डिजीज मवेशियों के जीवन के लिए काल बन गया है. एक महीने से देशभर के 12 से अधिक राज्यों के 16 लाख से अधिक पशुधन, विशेषकर गोवंश, लंपी वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और 70 हजार से अधिक मवेशियों की जान जा चुकी है. इसने दूध उत्पादन पर भी असर डाला है. क्या है यह रोग व इसके लक्षण, कैसे हो पशुओं का बचाव और अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानें इस बार के इन दिनों पेज में…

दुधारू पशुओं और पशुपालकों पर संकट

देश के दुधारू पशुओं और पशुपालकों पर इन दिनों संकट छाया हुआ है. बीते लगभग एक माह से लंपी स्किन डिजीज मवेशियों पर आफत बन टूट पड़ा है. राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर और दिल्ली समेत देश के 12 से अधिक राज्यों के मवेशी लंपी वायरस की चपेट में आ चुके हैं, जिससे अब तक 70 हजार से अधिक पशुओं की मौत हो गयी है. पशुओं में फैला यह संक्रमण उन किसानों के लिए चिंता का सबब बन गया है जिनका व्यवसाय पूरी तरह मवेशियों पर निर्भर है. यह बीमारी डेयरी व्यवसाय को चौपट कर रही है, क्योंकि यह गाय-भैंसों जैसे दुधारूओं में तेजी से फैल रही है. वायरस से संक्रमित होने के कारण गुजरात, राजस्थान और पंजाब में हजारों गायों की मौत हो गयी है.

मवेशियों में बढ़ता जा रहा प्रसार

इस वायरस को लेकर चिंता वाली बात यह है कि मवेशियों में इसका प्रसार बढ़ता ही जा रहा है और थमने का नाम नहीं ले रहा है. यह बीमारी कितना गंभीर रूप ले चुकी है, इसी से जाहिर होता है कि इसे लेकर राज्यों से लेकर केंद्र सरकार तक पूरी तरह एक्शन मोड में आ चुकी है. केंद्र सरकार विभिन्न राज्यों के साथ मिलकर इसे नियंत्रित करने की कोशिश में जुटी है. मुसीबत की इस घड़ी में सुखद खबर इतनी है कि इससे निपटने के लिए स्वदेशी टीका तैयार हो चुका है.

क्या है लंपी स्किन डिजीज

लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है. ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्युनाइजेशन (जीएवीआई) के अनुसार, लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) कैप्रीपॉक्स वायरस के कारण होता है, जो वर्तमान में दुनियाभर के पशुधन के लिए एक उभरता हुआ खतरा है. यह वायरस अनुवांशिक रूप से पॉक्स परिवार (गोटपॉक्स और शीपपॉक्स वायरस परिवार) से संबंधित है.

कैसे फैलता है यह वायरस

एलसीडी मुख्य रूप से मवेशियों के संक्रमित मच्छर, मक्खी, ततैया, जूं जैसे खून चूसने वाले कीटों के सीधे संपर्क में आने से फैलता है. इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशुओं के नाक से होने वाले स्राव, दूषित भोजन और पानी के सेवन से भी होता है.

क्या हैं लक्षण

  • लंपी वायरस से संक्रमित पशुओं के शरीर के अधिकतर भागों में मोटे-मोटे गोलाकार चकत्ते (2-5 सेमी) निकल आते हैं, जो गांठ यानी लंप की तरह दिखाई देते हैं. इन गांठों में बहुत खुजली होती है. नतीजा, पशु इन्हें खुजला-खुजलाकर घाव कर लेते हैं.

  • संक्रमण से ग्रस्त पशुओं के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, यानी उन्हें तेज बुखार आ जाता है.

  • वायरस से संक्रमित होने के तुरंत बाद मवेशियों का वजन कम होने लगता है, उनकी भूख मर जाती है. इसके साथ ही, पशुओं का दूध उत्पादन कम हो जाता है और मुंह एवं ऊपरी सांस नली में घाव हो जाता है.

  • इतना ही नहीं, संक्रमित पशुओं के पैरों में सूजन व लंगड़ापन आ जाता है, जिससे उनकी काम करने की क्षमता कम हो जाती है.

  • संक्रमण के अन्य लक्षणों में नाक, मुंह और आंख से पानी आना शामिल है.

  • गर्भवती गाय और भैंस का प्रायः गर्भपात भी हो जाता है और इस कारण कई पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है.

  • पशुओं के शरीर पर निकलने वाले चकत्तों में जीवाणुओं का संक्रमण बढ़ जाता है.

बीमारी का शरीर पर प्रभाव

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के अनुसार, इस बीमारी के पूरे शरीर पर प्रभाव के कारण पशुओं को एनोरेक्सिया, डिसगैलेक्टिया और न्यूमोनिया से जूझना पड़ता है. जिस कारण पीड़ित पशु बहुत कमजोर हो जाता है, महीनों तक उसकी दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाती और उसे बांझपन से भी जूझना पड़ सकता है. स्थिति के अत्यधिक गंभीर होने पर पशुओं की जान तक चली जाती है.

बचाव व रोकथाम

  • विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एलएसडी का सफल नियंत्रण और उन्मूलन इसके जल्दी पता लगाने और उसके बाद तेजी से और व्यापक टीकाकरण पर निर्भर करता है. एक बार ठीक हो जाने के बाद मवेशी पूरी तरह सुरक्षित हो जाते हैं और अन्य जानवरों को संक्रमित नहीं करते.

  • मवेशी के संक्रमित पाये जाने पर कीटाणुनाशक रसायनों का छिड़काव कर पशु शेड को साफ कर देना चाहिए. उसके बाद तुरंत ही स्वस्थ पशुओं को संक्रमित पशुओं से अलग करना चाहिए एवं पशुओं के आवागमन पर रोक लगाना चाहिए.

  • मवेशियों के उपचार के लिए स्थानीय पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.

  • पशुओं को बुखार आने पर पशु चिकित्सक की सलाह से एंटी पायरेटिक के साथ एंटी हिस्टामिनिक, एंटी बैक्टीरियल एवं मल्टी विटामिन दिया जा सकता है.

  • बीटाडीन के घोल से घाव को नियमित साफ करना

  • जरूरी है.

  • पशुओं को तरल एवं मुलायम खाद्य पदार्थ देना चाहिए.

  • गोशालाओं के आसपास के क्षेत्रों में दो प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइट को पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • प्रभावित क्षेत्र में काम कर रहे पशु चिकित्सकों, कर्मियों एवं पशुपालकों को साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा डिसइंफेक्टेंट के रूप में ईथर 20 प्रतिशत, क्लोरोफॉर्म, फॉर्मलीन एक प्रतिशत, फेनॉल (2 प्रतिशत), आयोडिन कंपाउंड 1:33 डायल्यूशन, क्वाटेमरी अमोनियम कंपाउंड 0.5 प्रतिशत का उपयोग करके बीमारी से बचाव किया जा सकता है.

  • गोशालाओं के आसपास के क्षेत्रों को मच्छर, मक्खी से मुक्त रखने के लिए एंटी रिपेलेंट कीटनाशक का उपयोग सहायक सिद्ध होगा.

  • प्रभावित स्थल से 10 किमी की दूरी तक के पशु मेला से पशुओं का क्रय-विक्रय नहीं करना चाहिए.

भारत में इससे पहले भी सामने आ चुके हैं लंपी वायरस के मामले

यह पहली बार नहीं है जब भारत में लंपी वायरस के मामले सामने आये हैं. सितंबर 2020 में, महाराष्ट्र में वायरस का एक स्ट्रेन पाया गया था. गुजरात में भी पिछले कुछ वर्षों में लंपी के छिटपुट मामले सामने आ चुके हैं. पर इस समय जो चिंता वाली बात है, वह यह कि संक्रमण के कारण बड़ी संख्या में मवेशियों की मौत हो रही है. एक चिंता टीकाकरण को लेकर भी है क्योंकि यह उस गति से नहीं हो रहा है, जिस गति से संक्रमण फैल रहा है और मवेशियों की जान जा रही है.

संकर नस्ल के गोवंश में मृत्यु दर अधिक

लंपी डिजीज मुख्य रूप से गोवंश को प्रभावित करती है. विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूओएएच की मानें, तो इस रोग से पशुओं में मृत्यु दर आम तौर पर एक से पांच प्रतिशत तक है. पर एक सच यह भी है कि देसी गोवंश की तुलना में संकर नस्ल के गोवंश में लंपी के कारण मृत्यु दर अधिक है.

गुजरात के कच्छ से सामने आया इस वर्ष पहला मामला

लंपी डिजीज का पहला मामला इस वर्ष अप्रैल में गुजरात के कच्छ क्षेत्र में दर्ज किया गया और उसके बाद से इसका प्रकोप देशभर में फैल गया. जिन राज्यों में इस बीमारी का प्रकोप है, उनमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू व कश्मीर, उत्तर प्रदेश आदि राज्य शामिल हैं. दिल्ली से भी संक्रमण के मामले सामने आ चुके हैं. झारखंड में भी स्थिति अलग नहीं है, यहां भी मामले बढ़ रहे हैं.

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • 16 लाख से अधिक मवेशी, लगभग 200 जिलों के इस बीमारी से प्रभावित हैं और जुलाई से सितंबर 11, 2022 के बीच यह वायरस 75,000 मवेशियों की जान ले चुका है, पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार.

  • 40-50 प्रतिशत तक कमी आ सकती है दुग्ध उत्पादन में, यदि पशु पहली बार संक्रमित होता है और उसे टीका नहीं लगाया जाता है तो.

  • पशुओं को सही समय पर टीका लगाकर बीमारी और दूध उत्पादन पर इसके प्रभाव को रोका जा सकता है.

  • बीमार होने पर प्रभावित पशुओं का उपचार केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है. बीमारी की शुरुआत में उपचार मिल जाने पर महज दो से तीन दिनों में ही पशु स्वस्थ

  • हो जाते हैं.

  • बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के माध्यम से पिलाया जा सकता है.

सुरक्षित है दूध पीना

चूंकि यह एक नॉन-जूनोटिक बीमारी है, सो यह पशुओं से मनुष्यों में स्थानांतरित नहीं होती है. इतना ही नहीं, यदि कोई पशु संक्रमित है, तो उसके दूध को उबालने या पाश्चराइजेशन के बाद पीना सुरक्षित है, क्योंकि ये प्रक्रियाएं यदि दूध में कोई वायरस है, तो उसे मार देती है.

स्वदेशी टीका तैयार

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के दो संस्थानों हिसार, हरियाणा के नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स (एनआरसीई) और इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश के इंडियन वेटेरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) ने लंपी वायरस डिजीज के लिए संयुक्त रूप से एक स्वदेशी टीका विकसित किया है. यह एक बड़ी सफलता है, क्योंकि यह टीका वायरस के प्रभाव को कम करता है. स्वदेशी टीका ‘लंपी प्रोवैकइंड’ एक समजातीय टीका है जो वायरस को कमजोर कर मवेशियों को सुरक्षा प्रदान करता है. वर्तमान में मवेशियों को केवल गोटपॉक्स और शीपपॉक्स के टीके ही लग रहे हैं, जो विषमजातीय टीके हैं. जहां घरेलू एलएसडी टीका उपलब्ध नहीं है, वहां गोटपॉक्स और शीपपॉक्स मवेशियों में एलएसडी के विरुद्ध क्रॉस-प्रोटेक्शन को प्रेरित करते हैं.

झारखंड-बिहार में भी दस्तक

राजस्थान, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश समेत दर्जन राज्यों में कोहराम मचा चुका लंपी वायरस अब झारखंड में भी अपने पैर पसार रहा है. देवघर और हजारीबाग के साथ ही रांची के नगड़ी, मांडर, चान्हो, लापुंग, ओरमांझी, सोनहातू व राहे प्रखंड में भी इस वायरस के फैलने की आशंका जतायी जा रही है. बीते एक सप्ताह में यहां लंपी स्किन डिजीज से संक्रमित कई पशुओं की मौत हो चुकी है, जिससे यहां के पशुपालक दहशत में हैं. झारखंड के अतिरिक्त यह वायरस बिहार में भी फैल रहा, पर संतोष की बात है कि वायरस का संक्रमण अभी इस राज्य में कम है.

दूध उत्पादन पर असर

मवेशियों में फैले लंपी वायरस के कारण डेयरी किसानों को संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि गाय-भैंस जैसे दुधारू पशुओं के बीमार पड़ जाने से दूध उत्पादन कम हो गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में दूध उत्पादन 15 से 20 प्रतिशत तक कम हो गया है. इस बीमारी से सर्वाधिक प्रभावित राज्य राजस्थान में भी दूध व्यवसाय पर असर पड़ा है. राजस्थान सहकारी डेयरी महासंघ का कहना है कि जून माह में संग्रहण केंद्रों पर प्रतिदिन लगभग 20 लाख लीटर दूध का संग्रहण हो रहा था. पर लंपी वायरस के उभार के बाद से राज्य के प्रतिदिन के दूध संग्रहण में तीन से चार लाख लीटर की कमी आ चुकी है. इस कारण दूध और दूध से बनी मिठाइयों के दाम में भी वृद्धि देखने में आ रही है. दूध की कमी का असर मिठाई के व्यवसाय पर भी पड़ा है और राज्य में उसका उत्पादन काफी गिर गया है.

अफ्रीका की स्थानिक बीमारी

लंपी स्किन डिजीज मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है, जो अधिकांशतः अफ्रीकी देशों में ही होती है. माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत 1929 में जाम्बिया में हुई थी और वहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गयी. वर्ष 2012 के बाद से यह बीमारी मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व यूरोप और पश्चिम व मध्य एशिया के जरिये तेजी से फैली है. वहीं 2019 से एशिया के अनेक देशों में इस बीमारी के प्रकोप देखने को मिले हैं, जिनमें बांग्लादेश (2019), चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) आदि देश शामिल हैं. इसी वर्ष मई में पाकिस्तान के पंजाब में लंपी वायरस के संक्रमण से 300 से अधिक गायों के मरने सूचना आयी थी.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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