Lung Cancer : भारतीय नागरिकों में कम उम्र में लंग कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. एक विदेशी लंग कैंसर से पीड़ित व्यक्ति, एक भारतीय लंग कैंसर से पीड़ित व्यक्ति से 10 साल बड़ा होता है, जिससे यह पता चलता है कि हमारे देश में लंग कैंसर बहुत कम उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रहा है. लंग कैंसर की समस्या धूम्रपान न करने वाले व्यक्तियों में ज्यादा देखने को पायी गई है. लंग कैंसर एक ऐसा मर्ज है जो ज्यादातर धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को अपना शिकार बनाता है, लेकिन भारत में लंग कैंसर की एक नई तस्वीर देखने को मिल रही, जिसमें ज्यादातर लंग कैंसर से पीड़ित लोग नॉन स्मोकर्स हैं. जबकि विदेशों में लंग कैंसर ज्यादातर धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को होता है. यह एक चिंता का विषय है की भारत में ओसतन लंग कैंसर के मरीज धूम्रपान न करने वाले लोग होते है. चलिए जानते हैं इसके प्रमुख कारण.
लंग कैंसर के मुख्य कारण
वायु प्रदूषण
भारत में वायु प्रदूषण अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है खास करके शहरी इलाकों में, और लंग कैंसर के खतरे का बढ़ जानाभी इसी प्रदूषण की देन है. इस तरह के प्रदूषण से धूम्रपान न करने वाले व्यक्तियों में भी लंग कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ गया है और यह एक बहुत संवेदनशील और ध्यान देने वाला विषय है. माइक्रोस्कोपिक पोल्यूटेंट जैसे कि PM 2.5 फेफड़ों मेंअंदर तक जाकर जलन की समस्या पैदा पैदा करते हैं और फेफड़ों के टिशूज को डैमेज कर देते हैं. ज्यादा समय तक इन पोल्यूटेंट्स के संपर्क में आने से यह फेफड़ों के कोशिकाओं में म्यूटेशन की संभावना बढ़ा देते हैं , जिससे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है . क्या खतरा धूम्रपान न करने वाले लोगों को भी बराबर होता है जो इस हवा में रोज सांस ले रहे हैं.
व्यावसायिक खतरा
भारत में ऐसी कई फैक्ट्रियां और केमिकल के प्लांट्स हैं .जहां पर काम करने वाले श्रमिकों को रोज जहरीली गैस और केमिकल्स से निकलने वाले धुएं का सामना करना पड़ता है जिसके परिणाम स्वरूप उनमें लंग कैंसर जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.भारत में कुछ व्यवसाए ऐसे हैं जिसमें श्रमिकों को लंग कार्सिनोजेंस जिसे आम भाषा में कैंसर कॉजिंग एजेंट कहा जाता है, जैसे खतरनाक केमिकल और दूषित हवा के बीच में सांस लेनी पड़ती है. कार्सिनोजेंस में एस्बेस्टस, क्रोमियम, कैडमियम, आर्सेनिक, और कोयले के कण मौजूद होते हैं. खदानों में ,कंस्ट्रक्शन साइटों पर, और केमिकल की फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों में कैंसर का रिस्क ज्यादा होता है.
सेकंड हैंड स्मोक एक्स्पोज़र
विदेश की तुलना में भारत में स्मोकिंग रेट्स काफी कम है लेकिन सेकंड हैंड स्मोक का खतरा फिर भी रहता है. सेकंड हैंड स्मोक का मतलब होता है, अपने आसपास के लोग जो धूम्रपान करते हैं उस धुएं के संपर्क में आने से लंग्स पर पड़ने वाला असर. इस धुएं के संपर्क में आप कहीं भी आ सकते हैं घर, पब्लिक प्लेस, फैमिली मेंबर या पड़ोसी के संपर्क में आने से आदि, से भी लंग कैंसर का खतरा बढ़ता है.
जेनेटिक कारण
शोध के अनुसार शरीर में पाए जाने वाले कुछ जिन वेरिएंट्स से भी धूम्रपान न करने वाले लोगों में लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है अगर वह वातावरण में मौजूद कार्सिनोजेंस के संपर्क मैं ज्यादा रहते हैं.
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प्रारंभिक अवस्था में पता ना चल पाना
भारत में लंग कैंसर अक्सर पता लगने के 10 साल पहले से ही होना शुरू हो जाता है जिसका मतलब होता है कि मरीज कम आयु में ही इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आ जाता है. लंग कैंसर के पता लगने और सिंप्टम्स दिखने की .सबसे कम आयु होती है 54 से 70 वर्ष, अगर लंग कैंसर के पहले स्टेज में ही डायग्नॉसिस कर लिया जाए और इसका सही इलाज हो जाए तो यह बीमारी ठीक हो सकती है, लेकिन जागरूकता की कमी और मेडिकल सुविधाओं की सीमित पहुंचसे इस खतरनाक बीमारी का पता नहीं चल पाता है जिसे इलाज और रिजल्ट्स पर असर पड़ता है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.