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Manxiety: हर महीने ‘रिनपास’ में 300 से 400 डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामले, महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में तेजी से बढ़ रहे केसेज

Manxiety: महिलाओं के मुक़ाबले पुरुषों में बेचैनी और तनाव कहीं ज़्यादा है. भारत में आत्महत्या की दर लगातार बढ़ रही है. पुरुषों के अंदर ये जो तनाव और डिप्रेशन की शक्ल में सामने आ रही है वो क्या है. एंटी-डिप्रेशन सेंटर्स के आंकड़े बेहद डराने वाले हैं. जानते हैं क्या है इसकी वजह.

By Neha Singh | May 15, 2024 10:38 AM
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मेट्रो सिटीज और बड़े शहरों में वर्क लोड व फैलियर होने का डर पुरुषों को सुसाइड की तरफ ले जा रहा

Manxiety: एंग्जायटी और डिप्रेशन का नाम आते ही इससे पीड़ित महिलाओं का ख्याल जेहन में आता है. आम धारणा यह है कि एंग्जायटी और तनाव जैसी समस्याओं से महिलाएं ही ज्यादा जूझती हैं. पर यह पूरी तरह सच नहीं है. ताजा रिपोर्ट्स और आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं से ज्यादा पुरुषों में तनाव और बेचैनी की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. खासतौर पर मेट्रो सिटीज और बड़े शहरों में कामकाजी पुरुषों में इस तरह की समस्याएं ज्यादातर देखने को मिल रही हैं. मेंटल हेल्थ में पुरुषों से जुड़ी इस तरह की समस्याओं के लिए एक नया टर्म आया है ‘Manxiety’. पुरुषों में इस तरह की समस्याएं क्यों तेजी से बढ़ रही हैं? इनकी वजह क्या है? और इसके निदान के लिए क्या किया जाना चाहिए? इसे लेकर हमने बात की रांची इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरो सायकेट्री एंड एलाइड साइंसेज के वरीय मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा से.

Manxiety: पुरूषों में बढ़ रहे केसेज

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा के अनुसार रिनपास में पहुंचने वाले केसेज में पुरुषों की संख्या ज्यादा देखी जा रही है. हर माह तकरीबन 300 से 400 मामले पहुंचते हैं, जो एंग्जायटी और तनाव से जूझते लोगों से जुड़े होते हैं.इनमें काफी तादाद में पुरुष होते हैं. पिछले कुछ वक्त में पुरूषों में इस समस्या का आंकड़ा का-फी तेजी से बढ़ा है. यहां पहुंचने वाले लोगों में 70 फ़ीसदी पुरुष होते हैं जो डिप्रेशन की शिकायत लेकर आते हैं. ये सब मैंग्जाइटी के शिकार होते हैं. भले इनकी वजह अलग-अलग होती है, पर कॉमनली देखें तो इनकी वजह वर्कलोड, परिवार की जिम्मेदारी और जीवन में आने वाली पारिवारिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना न कर पाना प्रमुख वजहों में शामिल हैं. लेटेस्ट रिपोर्ट्स के मुताबिक आत्महत्या करने वालों में से 75% पुरुष हैं. भारत में आत्महत्या की दर 1978 में 6.3 प्रति लाख से बढ़कर आज 12.4 प्रति लाख हो गई है. इनमें महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की संख्या ज्यादा है.

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, वरीय मनोचिकित्सक

Manxiety: मेंटल हेल्थ केयर

वर्कलोड और परिवार की जिम्मेदारियां इस कदर बढ़ चुकी हैं कि पुरुषों में मेंटल हेल्थ को लेकर अवेयरनेस पर काम किया जाना कितना जरूरी है. शहरों में एंग्जायटी और डिप्रेशन के केसेस ज्यादा बढ़ रहे हैं. चौकानें वाले आंकड़े ऐसे हैं कि पुरूषों में सुसाइड के केसेज बढ़ गए हैं. पीड़ितों में पुरुषों की समस्या की संख्या महिलाओं की तुलना में ज्यादा है. कई बार पुरुष अपनी समस्याएं किसी से शेयर नहीं कर पाते और वे तनाव और डिप्रेशन के लेवल को इतना पार कर जाते हैं कि जीवन से हार मान बैठते हैं.

Manxiety: सोशल टैबू

मेंटल हेल्थ आज भी समाज में एक टैबू की तरह है. लोग इस पर बात नहीं कर पाते. तनाव और अन्य समस्याओं से वह जूझते रहेंगे, पर अपनी समस्या किसी को खुलकर बात पाने में हिचकेंगे. खास तौर पर पुरुषों में ऐसा आमतौर पर देखा जा रहा है. वह अपनी लड़ाई को खुद ही अंदर ही अंदर लड़ते रहते हैं पर किसी से अपनी समस्या साझा नहीं करते. विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि मेंटल हेल्थ पर खुलकर बात नहीं करेंगे तो अंदर ही अंदर एंजायटी जैसी समस्याएं लोगों को आत्महत्या की दहलीज तक ले जाती है. अपनी समस्या जरूर साझा करें. मनोचिकित्सक से मिलें और अपनी पूरी समस्या को विस्तारपूर्वक बताएं.

Manxiety: ये हैं लक्षण

डॉ सिद्धार्थ सिन्हा के अनुसार जब कोई अवसाद या डिप्रेशन से जूझता है तो उसके कई लक्षण दिखते हैं.

  • डिसऑर्डर की पहचान करनी हो तो व्यक्ति के लिविंग पैटर्न पर ध्यान रखें.
  • छोटी-छोटी बातों पर झल्ला जाना या घबराना एक प्रमुख लक्षण है.
  • ऐसे पुरुष अक्सर चिंताओं में डूब जाते हैं. ये चिंताएं भविष्य की होती हैं. कई बार यह चिंताएं बेवजह भी होती हैं.
  • एंग्जायटी के शिकार लोग धीरे-धीरे लोगों को फेस करना कम कर देते हैं. वह अपने सीनियर्स से बातचीत में कटने लगते हैं या ज्यादातर मामलों में उनके सामने आने से बचना चाहते हैं.
  • इन्हें चीजों को बार-बार दोहराने की आदत हो जाती है. खास तौर पर वह अतीत में डूब जाते हैं और पुरानी बातों को याद कर उनकी तुलना वर्तमान से करते हैं. चिंताग्रस्त रहते हैं.
  • वे अपने काम पर बेहतर ढंग से ध्यान नहीं लगा पाते. अपनी वर्क रिस्पांसिबिलिटीज में भी अक्सर फेल होते रहते हैं. जो कार्य वे पहले आसानी से कर लिया करते थे उनमें भी उन्हें ज्यादा वक्त लगता है.
  • नकारात्मक सोच में डूबे रहते हैं. अक्सर दिल की धड़कन बढ़ जाया करती है और घबराहट जैसा महसूस करते हैं.

Manxiety: प्रमुख वजह

  • लाइफस्टाइल पहले की तरह आसान नहीं रह गई है. वर्क फ्रंट पर हर रोज नई चुनौतियां हैं. मन मुताबिक सफलता न मिल पाना तनाव को जन्म देता है.
  • बाहर से सही दिखने वाले रिश्ते आमतौर पर जरूरी नहीं है कि अंदर से भी ठीक हों. रिश्तो में पार्टनर का बेहतर सपोर्ट ना होना तनाव या एंजायटी की एक वजह के रूप में मानी जाती है.
  • संयुक्त परिवार का ताना-बाना अब लगभग बिखर सा गया है. अगर आप टूटते हैं तो कोई संभालने वाला नहीं मिलता है. ऐसे में अकेलापन निराशा की स्थिति में ले जाता है. तनाव की यह एक प्रमुख वजह है.
  • पुरुषों से परिवार के प्रत्येक सदस्य को कुछ ना कुछ एक्सपेक्टशंस रहते हैं. घर का प्रमुख सदस्य जब उन अपेक्षाओं पर खरा उतर पाने में खुद को असफल पाता है, तो वह अंदर से तनाव का शिकार होने लगता है. उसे यह असफलता अपनी क्षमता या पुरुषत्व पर सवाल की तरह लगती है.
  • फाइनेंशियल रूप से मजबूत होना आज के दौर में सबसे पहली जरूरत है. लोगों के जॉब्स और उनकी लाइफस्टाइल ऐसी हो गई है कि जब तक वह फाइनेंशियली मजबूत नहीं होंगे, तब तक अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाएंगे. फाइनेंशियल वीकनेस लोगों को मेंटल तौर पर कमजोर बनाता है.

Manxiety: ऐसे रखें खुद को स्वस्थ

  • बाहर निकलें और लोगों से बातें करें
  • अपने अंदर चल रही बातों को किसी से शेयर करें
  • एक्सरसाइज या योग करें.
  • गेम्स खेलें
  • काम को इंजॉय करें
  • परिवार के साथ समय बिताएं
  • जरूरत पड़ने पर मनोविशेषज्ञ से संपर्क करें

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Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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