Medical Miracles : बबल बेबी सिंड्रोम की शिकार 2 महीने की अनीशा को मिली नई जिंदगी, किया बोन मैरो ट्रांसप्लांट
Bubble Baby' Bone Marrow Transplant : मुंबई में डॉक्टरों ने मेडिकल के क्षेत्र में चमत्कार कर दिखाया है. बबल बेबी सिंड्रोम से पीड़ित दो महीने की नन्ही सी बच्ची को मौत के मुंह से बाहर निकालते हुए मुंबई में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया गया.
शीघ्र निदान और सहयोग से मिली जिंदगी
अनीशा बांदेकर बबल बेबी सिंड्रोम से पीड़ित थी. कर्नाटक के कारवार से वाडिया अस्पताल लाई गई अनीशा बांदेकर का 19 दिन की उम्र में बीएमटी किया गया. डोनर रजिस्ट्रियों से अनीशा के स्टेम सेल मैच पाए गए. दरअसल अनीशा के माता-पिता का एक बच्चा इंफेक्शन के कारण मर गया गया, जिसके बाद जन्म लेने पर अनीशा का भी परीक्षण किया गया जिसमें इस बीमारी के बारे में पता चला. और समय पर जानकारी मिलने से और मैच डोनर मिलने के बाद गंभीर कंबाइंड इम्यूनोडेफिशिएंसी (एससीआईडी) का शीघ्र निदान हो सका यह मामला मेडिकल प्रोफेशनल्स और डोनर रजिस्ट्रियों के बीच शीघ्र निदान और सहयोग के महत्व पर प्रकाश डालता है.
19 दिन की अनीशा बांदेकर को कर्नाटक से लाया गया
बबल बेबी सिंड्रोम से पीड़ित दो महीने की यह बच्ची किसी असंबंधित डोनर से बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) कराने वाली देश की सबसे कम उम्र की मरीजों में से एक बन गई है. 19 दिन की अनीशा बांदेकर को कर्नाटक के कारवार से वाडिया अस्पताल लाया गया था, और दो महीनों के भीतर उसका बीएमटी किया गया
सिवियर्ड कंबाइंड इम्यूनो डिफिशिएंसी (एससीआईडी) यानी बबल बेबी
बबल बेबी , आनुवांशिक दोष गंभीर कंबाइंड इम्युनोडेफिशिएंसी (एससीआईडी) से पीड़ित होते हैं, ये बिना प्रतिरक्षा प्रणाली के पैदा होते हैं जो इनके लिए छोटे से छोटा संक्रमण जीवन के लिए खतरा बना देता है यह बीमारी करोड़ लोगों में एक को होती है.
समय पर सलाह से जीवन रक्षा में मदद
बीएमटी एक्सपर्ट्स ने बताया कि वे डोनर रजिस्ट्री से कई स्टेम सेल मैच प्राप्त करने में कामयाब रहे और अनीशा को ठीक करने में मदद करने के लिए बीएमटी कर सके. उन्होंने यह भी बताया कि इनकी पहचान देर से होने के कारण बबल बेबी को शायद ही कभी वक्त पर निदान मिल पाता है लेकिन अनीशा के मामले में डॉक्टरों की समय पर सलाह से उसकी जीवन रक्षा में मदद मिली.
सबसे कम उम्र के प्रत्यारोपण रोगियों में से एक
9 नवंबर को बीएमटी कराने वाली अनीशा को कुछ ही दिनों पहले अस्पताल से छुट्टी मिल गई, लेकिन बच्ची का परिवार अगले छह महीने तक मुंबई में रहेगा. वाडिया अस्पताल के सीईओ डॉ. मिन्नी बोधनवाला ने बताया है कि यह वोलेन्टियर डोनर से स्टेम सेल प्राप्त करने वाले देश के सबसे कम उम्र के प्रत्यारोपण रोगियों में से एक है. यह मामला शीघ्र निदान और चिकित्सा पेशेवरों और बोन मैरो डोनर्स के सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व को बताता है. डॉक्टरो के इस प्रयास ने चिकित्सा के क्षेत्र में नई उम्मीदों को बल दिया है जहां कई और भी ऐसे बच्चे अगर होंगे तो उन्हें जीवन की नई उम्मीद मिलेगी
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