Noida News: मंकीपॉक्स (Monkeypox) को इस बार ऐसे देशों में देखा जा रहा है जहां साधारणतः यह नहीं मिलता है. इसमें बुखार, नाक बहने के शुरुआती लक्षण के साथ-साथ शरीर पर चकत्ते बनने लगते हैं. यह लक्षण 20 से 25 दिन तक रहते हैं. इस वायरस से ग्रसित होने पर मरीज को लक्षण आधारित उपचार की जरूरत होती है.आवश्यकता पड़ने पर इसकी दवाई भी मौजूद है. पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (PGICH) नोएडा के बाल रोग विभाग के डॉ. भानु भाकरी ने सोमवार को यह जानकारी दी.
PGICH के माइक्रोबायोलॉजी विभाग एवं बाल रोग विभाग के संयुक्त तत्वावधान में मंकीपॉक्स वायरस की पहचान एवं बचाव विषय पर आयोजित जन जागरूकता कार्यक्रम में डॉ. भानु भाकरी ने कहा कि मंकीपॉक्स वायरस से बचाव के लिए हमें बिना जरूरत के भीड़भाड़ वाली जगह पर जाने से बचना चाहिए. बार-बार हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करना चाहिये या फिर हाथ धोते रहना चाहिए. मास्क का भी उपयोग करना चाहिए.
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निदेशक प्रो. अजय सिंह ने कहा कि मंकीपॉक्स वायरस अभी भारत में नहीं आया है. लेकिन आमजनों में इस बीमारी को लेकर चिंता है. इससे ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमने कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये साफ-सफाई का ध्यान रखा, मास्क का उपयोग किया, वैसे ही इस वायरस से बचाव के लिये करना है. यही एक तरीका है जो हमें हर तरह की संक्रामक बीमारियों से दूर रखता है.
प्रो. अजय सिंह ने कहा कि सभी लोगों को बीमारियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए. इससे ग्रसित मरीज को हवादार कमरे में आइसोलेट रखना चाहिए. संभावित मरीज को मास्क जरूर लगाना चाहिए. मरीज की देखभाल करने वाले को ग्लब्स और मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है.
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की हेड डॉ. सुमी नंदवानी ने बताया कि 2022 में मंकीपॉक्स वायरस का प्रभाव अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में देखने को मिला है. जबकि अफ्रीका में यह पहले से ही मौजूद था. लगभग 50 हजार से ज्यादा प्रकार के वायरस समुद्र के गर्भ में मौजूद हैं. जिनमे से समय-समय पर कोई ना कोई वायरस जानवरों के साथ-साथ मनुष्य को भी अपनी गिरफ्त में लेता रहता है. मंकीपॉक्स एक जूनोटिक डिजीज है, जो सर्वप्रथम 1958 बंदरों में मिला था.
मंकीपॉक्स मनुष्यों में सर्वप्रथम 1970 में इसका पहला केस युगांडा में देखने को मिला था. अफ्रीकी देशों में यह एक एंडेमिक की तरह पाया जाता है. यह जानवरों (गिलहरी, चूहों, प्रेरीडॉग) के काटने या खरोंच मारने से फैलता है. इस वायरस से ग्रसित इंसान अगर लंबे समय तक किसी दूसरे इंसान के संपर्क में रहता है तो उसमे भी यह वायरस फैल सकता है.
2022 में यह पुरुषों से पुरुषों (होमो सेक्सुअल) में भी देखने को मिल रहा है. गर्भवती मां के प्लेसेंटा से भ्रूण में फैलता है. इसमें शरीर में पानी भरे रैशेज हो जाते हैं. यह चेचक की तरह फैलता है. भारत में जिन मरीजों को चेचक की वैक्सीन लगी है, वह भी इस वायरस के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न कर सकते हैं. इसकी पहचान स्किन के रैशेज से सैंपल लेकर, गले से स्वाब एवं ब्लड सैंपल की जांच के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है. भारत मे अभी इसकी जांच केवल NIV पुणे में उपलब्ध है.