Monsoon 2023: इस मानसून खान-पान में न बरतें लापरवाही, जानें आयुर्वेदिक डाइट प्लान

Monsoon 2023: मानसून का सीजन शुरू हो चुका है. इस मौसम में गंदगी और आर्द्रता के कारण बैक्टीरिया व वायरस अधिक पनपते हैं, जिससे पाचन तंत्र से संबंधित संक्रमण होने का खतरा दूसरे मौसमों की तुलना में अधिक होता है. ऐसे में मॉनसून में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

By Prabhat Khabar News Desk | July 6, 2023 12:21 PM

Monsoon 2023: मॉनसून में जठराग्नि यानी डायजेस्टिव फायर धीमी पड़ जाती है, जिससे पाचन तंत्र से संबंधित समस्याएं भी अधिक होती हैं. इस मौसम में गंदगी और आर्द्रता के कारण बैक्टीरिया व वायरस अधिक पनपते हैं, जिससे पाचन तंत्र से संबंधित संक्रमण होने का खतरा दूसरे मौसमों की तुलना में अधिक होता है. ऐसे में मॉनसून में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

आयुर्वेद कहता है कि अच्छा स्वास्थ्य अच्छे पाचन तंत्र की देन है. हमारा स्वास्थ्य इस पर निर्भर नहीं करता है कि हम कितना पौष्टिक भोजन खाते हैं, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि हमारा शरीर उस भोजन को कितना पचा पता है. सभी बीमारियों का केंद्र हमारा पेट होता है, जो भोजन हमारा शरीर पचा नहीं पाता, वह शरीर को फायदा पहुंचाने की जगह नुकसान पहुंचाता है.

अन्य अंगों पर पड़ता है पाचन तंत्र का असर

पाचन तंत्र की गड़बड़ियों का असर अन्य तंत्रों पर ही नहीं, बल्कि अंगों पर भी पड़ता है. मौसम बदलने पर आंतों में रहने वाले बैक्टीरिया का कंपोजिशन बदल जाता है. इससे हमारा पाचन तंत्र प्रभावित हुए बिना नहीं रहता और संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है. जब हमारा पाचन तंत्र अच्छा होता है, तो प्रतिरक्षा तंत्र भी बेहतर होता है, क्योंकि हमारी 70-80 प्रतिरक्षा कोशिकाएं आंतों में मौजूद होती हैं.

मॉनसून के लिए आयुर्वेदिक डाइट प्लान

एक आयुर्वेदिक आहार में मौसमी फल व सब्जियां, सुखे मेवे, साबुत अनाज, दालें और तरल पदार्थ शामिल होना चाहिए. मॉनसून में शरीर में वात बढ़ जाता है, इसलिए तीखे, नमकीन, तले-भुने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. खासकर, इन दिनों में हल्का खाना सेहत के लिए बेहद लाभकारी होता है.

इन बातों का रखें खास ध्यान

  • मॉनसून में सूक्ष्मजीव जैसे बैक्टीरिया और वायरस काफी संख्या में पनपते हैं, इसलिए खाना पकाने, परोसने और खाने में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.

  • घर के बने सादे, सुपाच्य और पौष्टिक भोजन का सेवन करें. बाहर का खाना न खाएं क्योंकि इससे पेट का संक्रमण हो सकता है.

  • प्रतिदिन मौसमी फल अवश्य खाएं, लेकिन ध्यान रखें वह ताजे हों, उन्हें काटकर खाने की बजाए साबुत रूप में खाएं.

  • दालों और साबुत अनाज का भी सेवन करें. सफेद चीनी की जगह शुद्ध शहद और गुड़ का इस्तेमाल करें.

  • भोजन न तो ज्यादा पका हुआ (ओवरकुक्ड) न कम पका हुआ (अंडर कुक्ड) होना चाहिए. इस मौसम में ज्यादा पके और कम पके हुए फल भी न खाएं.

  • हमेशा उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पीएं. खाना खाने से पहले अदरक के छोटे टुकड़े के साथ सेंधा नमक का सेवन करें.

  • इस मौसम में हरे सलाद से परहेज करें. साथ ही बासी भोजन कतई न खाएं.

  • जब भी जरूरी हो अपने हाथों को साबुन से धोएं, आप अपने हाथों को जितना साफ रखेंगे. उतने रोगाणुओं के कम संपर्क में आयेंगे.

  • सड़क किनारे की रेहड़ियों और गंदे स्थानों से न खाएं. मांस को अच्छी तरह पकाकर ही उसका सेवन करें.

  • बारिश में पत्तेदार सब्जियों का सेवन न करें, क्योंकि एक तो इनसे संक्रमण फैलने का खतरा होता है, दूसरा इनमें सैल्युलोज होता है, जिसे पचाने में परेशानी होती है.

मॉनसून के लिए पांच सुपर फूड्स

मॉनसून के मौसम में स्वास्थ्य विशेषज्ञ आहार में कुछ खाद्य पदार्थों को जरूर खाने की सलाह देते हैं.

विटामिन-सी युक्त खाद्य पदार्थ : बारिश के मौसम में अनार, मोसंबी, नीबू, जामुन आदि विटामिन-सी के अच्छे स्रोत हैं. विटामिन-सी इम्युनिटी को बूस्ट करता है.

हल्दी : गोल्डन स्पाइस के नाम से मशहूर हल्दी मॉनसून में किसी मेडिसीन से कम नहीं है. इसका सेवन उतकों की सूजन और फंगस के संक्रमण से बचाता है.

अदरक और लहसुन : अदरक और लहसुन में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं. अदरक पेट को आराम पहुंचाता है, क्योंकि यह पाचन में सहायता करता है. इस मौसम में खाना खाने के बाद एक कप अदरक की चाय पीना अच्छा रहता है.

तरल पदार्थ : बारिश में प्यास कम लगती है, लेकिन इस मौसम में भी रोज 7-8 गिलास पानी जरूर पीएं. सुबह एक गिलास गुनगुना पानी जरूर पीएं, इसमें एक छोटा चम्मच शहद भी मिलाएं. छाछ, सूप, नारियल पानी का सेवन भी करें.

मौसमी फल : फल विटामिन्स और मिनरल्स से भरे होते हैं. मौसमी फल खाना हमेशा सेहत के लिए अच्छा होता है.

इन घरेलू उपायों से फूड प्वॉइजनिंग से मिलेगी राहत

बरसात में फूड प्वॉइजनिंग के काफी मामले सामने आते हैं. फूड प्वॉइजनिंग को खाद्य जनित रोग भी कहते हैं, क्योंकि ये विषैले, प्रदूषित या सड़े हुए भोजन को खाने से होती है. क्योंकि ये भोजन बैक्टीरिया, वायरस, दूसरे रोगाणुओं या विषैले तत्वों से संक्रमित होता है. अगर जरूरी एहतियाद बरतने पर भी फूड प्वॉइजनिंग हो जाये तो घरेलू उपायों से ठीक करने का प्रयास करें.

अदरक : फूड प्वॉइजनिंग का कोई भी लक्षण दिखायी दे रहा हो, तो अदरक की चाय का सेवन तत्काल शुरू कर दें. यह आपके शरीर को फूड प्वॉइजनिंग के असर को दूर करने में सहायता करेगी.

नीबू : नीबू में एंटी-इनफ्लैमेटरी, एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. नीबू में जो एसिड होता है. वह बैक्टीरिया को मारने में सहायता करता है, जो फूड प्वॉइजनिंग का कारण बनते हैं. एक चम्मच नीबू के रस में एक चुटकी चीनी डालकर दिन में 2-3 बार पी लें. आप गुनगुने पानी में नीबू का रस डालकर भी पी सकते हैं. इससे आपका पाचन तंत्र साफ हो जायेगा.

लहसुन : अपने एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुणों के कारण लहसुन फूड फ्वॉयजनिंग से निपटने में काफी कारगर है. यह डायरिया और पेट दर्द के लक्षणों में भी आराम देता है. फूड प्वॉइजनिंग होने पर लहसुन की दो कलियों को पानी के साथ निगल लें.

जीरा : जीरा फूड प्वॉइजनिंग के कारण होने वाली बैचेनी और पेट दर्द में आराम पहुंचाता है. एक चम्मच जीरे को एक कप पानी में उबाल लें. इसे छानकर इसमें एक चम्मच धनिया पत्ती का रस और थोड़ा-सा नमक मिलाएं. इसे दिन में दो बार कुछ दिन तक पीएं.

बरसाती रोगों से बचाव में होमियोपैथी भी कारगर

बारिश अपने साथ कई बीमारियां लेकर भी आती हैं. जहां शहरों में नालियों का पानी सड़कों पर बहने लगता है, वहीं दूषित पेयजलजनित कई बीमारियां भी घरों के अंदर तक पहुंच जाती हैं. गांवों में दूषित पेयजल के अलावा लगातार गोबर और कीचड़ के संपर्क में रहने से त्वचा संबंधी रोग भी हो जाते हैं.

मानसून के इस मौसम में छह प्रमुख बीमारियों से बचाव की व्यवस्था आपको जरूर करनी चाहिए. इनमें मलेरिया, डेंगू, हैजा, टायफायड, पीलिया तथा खाज-खुजली जैसे चर्म रोग शामिल हैं. इसके अलावा जहरीले कीड़ों के डंक भी कई लोगों को परेशान करते हैं. इन सभी रोगों के होने का मुख्य कारण बारिश से आयी नमी, गड्ढों और पोखरों में जमा हुए पानी में बैक्टीरिया तेजी से पनपना है. बच्चों के लिए यह मौसम बारिश की बूंदों का मजा देने के लिए तो आता है, साथ ही बीमारियों की चेतावनी भी लाता है.

सावधानी बरतना ज्यादा जरूरी

घर के पास वर्षा का पानी जमा न होने दें. सोते समय मच्छरदानी अवश्य लगाएं. मच्छर मारने वाली अगरबत्ती का व्यवहार करना घातक हो सकता है.

बाहर से घर आएं तो सबसे पहले हाथ-पैर अच्छी तरह धो लें.

कपड़े को जिस पानी से धोएं, उसमें पहले थोड़ा एंटी बैक्टीरियल लिक्विड मिला लें.

बरसात के मौसम में खुद को ज्यादा समय तक गीला नहीं रखें. जहां तक हो सके, गीले कपड़े बदल कर सूखे कपड़े पहनें, बच्चों को बरसात में भीगने न दें.

कुछ उपयोगी होमियोपैथिक औषधियां

कुछ होमियोपैथिक दवाएं भी हैं, जो वर्षा ऋतु में आपको स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं, परंतु यहां में यह बात जोर देकर कहना चाहूंगा कि यदि आपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा नहीं रखा और बचाव के अन्य उपायों का ध्यान नहीं रखा, तो ये दवाएं भी आपकी कोई सहायता नहीं कर सकती. अत: स्वयं स्वच्छ रहना, आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखना और जरूरी बातों का पालन करना सर्वाधिक आवश्यक है. यदि आप कभी किसी रोग की गिरफ्त में आ जाएं, तो इन दवाओं का सेवन आप कर सकते हैं.

डल्कामारा, 30 : वर्षा ऋतु की यह पहली दवा है. इस दवा का उपयोग पानी में भीगने के बाद जुकाम और खांसी हो जाने पर, जोड़ों के दर्द में तथा दमा, अतिसार, पेचिश, कमर दर्द, बरसात के एक्जिमा, जुलपित्ती निकलने तथा मुंह से लार निकलने में कुछ दिनों तक प्रतिदिन तीन बार सेवन करना लाभदायक है.

यूप्योटोरियम परफोलियेटम, 30 : मलेरिया, इंफ्लूएंजा, डेंगू ज्वर, शरीर में हड्डी तोड़ दर्द, सिर दर्द, कमर की ऐंठन तथा पित्त की उल्टी में लाभदायक. यदि इसी दवा को 200 शक्ति (पोटेंसी) में लिया जाये, तो यह डेंगू ज्वर की प्रतिरोधक दवा का कार्य करती है.

मर्कसोल, 30 : अतिसार, अन्य रोगों के हरे, काले, या पीले दस्त, टॉन्सिल, मुंह से लार निकलना तथा पेट दर्द के बाद होनेवाले दस्त में यह दवा बहुत लाभकारी है.

नेट्रम सल्फुरिकम, 30 : गहरे पीले और कभी-कभी हरे पतले दस्त, पेट में दर्द, अम्लपित्त के रोग, छाती में दर्द, बरसाती बुखार और मलेरिया जैसे रोगों में दिन में तीन बार इस दवा का व्यवहार करना लाभकारी होगा.

जेलसीमियम सेम्पर, 30 : हर प्रकार के ज्वर में तथा बरसात में होनेवाले घातक ज्वर में भी प्रयोग करने योग्य एक रामवाण दवा है. ज्वर होने के पहले ठंड लगती है, फिर ज्वर बढ़ता है. पसीना आने पर ज्वर कम हो जाता है. इसके अलावा और भी दवाएं हैं, रसटक्स, आर्सेनिक एलबम, बेलाडोना, एकोनाइट, केम्फर आदि जिनसे सर्दी लगने और छीकें आने पर इनकी 30 शक्ति की दवा को लिया जा सकता है.

डॉ गौरव जैन

सीनियर कंसल्टेंट, इंटर्नल मेडिसीन, धर्मशिला नारायणा हॉस्पिटल, दिल्ली

बातचीत व आलेख : शमीम खान

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