Smoking After Covid-19 In Hindi रांची : सिनेमा घरों में अक्सर किसी फिल्म के शुरू होने से पहले महाराष्ट्र के भुसावल निवासी कैंसर पीड़ित मुकेश हराने (24 वर्ष) की कहानी दिखायी जाती है. उसकी कहानी दिखा कर लोगों को तंबाकू छोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है. बावजूद इसके लोग सार्वजनिक स्थानों पर खुलेआम सिगरेट, बीड़ी, खैनी, पान-गुटका आदि का सेवन करते नजर आ जाते हैं. लोग तंबाकू का सेवन न करें, इसके लिए इन नशीले उत्पादों के पैकेट पर भी संदेश लिखा होता है.
प्रशासन की ओर से कई बार तंबाकू उत्पादों को लेकर जुर्माना भी वसूला जाता है. लोग कम से कम तंबाकू का इस्तेमाल करें, इसके लिए लगातार जागरूकता अभियान भी चलाये जाते हैं.
इन्हीं जागरूकता अभियानों को जोड़ देते हुए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से प्रत्येक वर्ष 31 मई को वर्ल्ड नो टोबैको डे यानी विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है. इसको लेकर डब्ल्यूएचओ प्रत्येक वर्ष अलग-अलग थीम के साथ विभिन्न कार्यक्रम करता है. इस वर्ष दिवस विशेष का थीम ‘कमिट टू क्विट यानी छोड़ने के लिए प्रतिबद्ध’ तय किया गया है, ताकि लोग तंबाकू के सेवन से दूर हो सकें.
तंबाकू उत्पादों का सेवन करने वाले लोगों के मुंह से बदबू आने की समस्या आम है.
नियमित रूप से तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों के मसूड़े से अक्सर खून आना और दांत कमजोर होने की समस्या आम है.
तंबाकू के सेवन का असर आंख पर भी पड़ता है, साथ ही लोगों की नजर कमजोर हो जाती है.
सिगरेट, बीड़ी, हुक्का व अन्य धुआं युक्त तंबाकू का सेवन करने पर लोगों के फेफड़ा खराब होने की संभावना बढ़ जाती है.
अत्यधिक तंबाकू के सेवन से हृदय रोग व ब्लड प्रेशर भी बढ़ता है.
तंबाकू का नियमित सेवन करने वाले लोग सबसे ज्यादा मुंह और फेफड़े का कैंसर से ग्रसित हुए हैं.
तंबाकू निषेध को लेकर तय थीम के अनुसार, इसे छोड़ने वाले लोगों को विजेता घोषित किया जायेगा. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, विश्व भर में तंबाकू से करीब आठ मिलियन लोग प्रत्येक वर्ष अपनी जान गवां देते हैं.
वहीं कोरोना महामारी के दौरान मौत के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि मरनेवाले लोगों में सबसे ज्यादा संख्या वैसे लोगों की है, जो नियमित रूप से सिगरेट या बीड़ी का सेवन करते थे. इससे लोगों का फेफड़ा सामान्य लोगों की तुलना में जल्दा तेजी से संक्रमित हो रहा था.
डब्ल्यूएचओ की ओर से पहली बार वर्ष 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी. इसका कारण था कि उस वर्ष तंबाकू के नियमित सेवन से लोगों के बीच बीमारियों में तेजी से इजाफा हुआ था. विश्व भर में हजारों लोग कैंसर, फेफड़ा रोग, हार्ट अटैक समेत अन्य बीमारी के कारण मारे गये थे.
यही कारण है कि डब्ल्यूएचओ ने 1987 में तंबाकू से होने वाली मृत्यु को भी महामारी में शामिल किया था. इसके बाद 1988 में पहली बार सात अप्रैल को विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया गया. बाद में दिवस विशेष के लिए 31 मई का दिन निर्धारित किया गया.
रिम्स कैंसर सर्जरी विभाग के सहायक प्रो डॉ रोहित कुमार झा ने बताया कि कैंसर विभाग में इलाजरत मरीजों में 70 से 80 फीसदी मरीज तंबाकू का सेवन करने की वजह से पहुंचे हैं. कैंसर मरीजों की कुल संख्या का 90 फीसदी वर्ग मुंह के कैंसर से पीड़ित है.
इनमें से 50 से 70 फीसदी मरीज बीते 10 वर्ष या इससे भी अधिक समय से सिगरेट, खैनी या गुटका का सेवन करते थे. वहीं सामान्य दिनों में ओपीडी में चिकित्सीय सलाह के लिए पहुंचाने वाले 50 में से 35-40 मरीज तंबाकू से होने वाली परेशानी लेकर पहुंचते हैं. डॉ रोहित ने बताया कि झारखंड में चिह्नित होने वाले नये कैंसर मरीजों में 70 से 80 फीसदी मुंह के कैंसर से ग्रसित होते है. राज्य के लोगों में कैंसर का सबसे बड़ा कारण गुटका और खैनी का नियमित सेवन है.
ग्लोबल यूथ टोबैको सर्वे के अनुसार, विश्व भर में तंबाकू का सेवन करनेवालों में सर्वाधिक युवा हैं. वहीं प्रत्येक वर्ष करीब 10 लाख नये कैंसर पीड़ित को चिह्नित किया जाता है. इनमें से 27 से 50 फीसदी केस तंबाकू सेवन करने वालों के होते हैं. सिगरेट पीने वालों की संख्या भारत में सर्वाधिक है. देश के 44.3 फीसदी पुरुष सिगरेट पीते हैं.
वहीं महिला वर्ग भी इसमें पीछे नहीं है. देश की 16 फीसदी महिलाएं धूम्रपान की आदि हैं.अगर वयस्कों की बात करें, तो इनकी संख्या करीब 39.7 फीसदी है. इसके अलावा खैनी और गुटका का सेवन करने वाले पुरुषों की संख्या करीब 19.2 फीसदी, महिला 3.6 फीसदी और वयस्कों की संख्या 10.7 फीसदी है.
डॉ रोहित कहते हैं कि समय रहते मुंह के कैंसर का इलाज संभव है. एक बार जिसे मुंह का कैंसर होता है, वह इलाज के बाद तंबाकू से दूरी बना लेता है. आम लोग भी दृढ़ निश्चय के साथ तंबाकू से दूरी बना सकते है. इसमें परिवार का सहयोग सबसे ज्यादा जरूरी है. तंबाकू का सेवन करने वाले व्यक्ति के करीबी चाहें, तो उन्हें एक से तीन माह के अंतराल में तंबाकू से दूरी बनाने में मदद कर सकते हैं.
इसके लिए परिवार के एक सदस्य को लगातार व्यक्ति के तंबाकू की आदत पर नजर रखने की जरूरत है. वैसे लोग जो तंबाकू चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहे हैं, वे रिम्स के नशा मुक्ति विभाग से संपर्क कर सकते हैं. यहां मनोवैज्ञानिक काउंसेलिंग कर तंबाकू की आदत छोड़ने में मदद करेंगे.
वर्द्धमान कंपाउंड निवासी अजीत महतो की उम्र 60 वर्ष है. उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा था जब सिगरेट, गुटका और खैनी जैसे तंबाकू उत्पादों की लत बहुत ज्यादा थी. इसके बिना दिन गुजारना मानों भारी लगता था. ऐसे में लगातार तंबाकू सेवन की वजह से उन्हें पांच वर्ष पूर्व गंभीर समस्या हो गयी. डॉक्टर को दिखाने के बाद उन्हें तंबाकू छोड़ने की सलाह दी गयी. इसके बाद से उन्होंने तंबाकू से दूरी बना ली. अजीत कहते हैं कि तंबाकू छोड़ने के क्रम में खुद में आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय रखना बहुत जरूरी है.
कोकर निवासी 28 वर्षीय शिव शंकर ने बीते दो वर्ष से गुटका से दूरी बना ली है. शिव ने बताया कि 2019 के अंत तक उसे नियमित रूप से गुटका चबाने की आदत थी. लगातार तीन-चार वर्ष तक गुटका चबाने से मसूड़े कमजोर हो गये थे. इससे कई बार खून निकलता था.
डेंटिस्ट से चिकित्सीय परामर्श लेने के बाद पता चला कि गुटका चबाने की वजह से मसूड़ा कमजोर हो गया है और एक दांत में कैविटी की समस्या हो गयी है. कुछ समय बाद दांत की समस्या बढ़ी, तो उसे उखाड़ना ही अंतिम विकल्प था.
Posted By : Sameer Oraon
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.