मच्छरों की मदद से ही डेंगू को रोकने की तैयारी, गुड मॉस्क्विटो करेंगे खतरनाक मच्छरों का अंत
इंडोनेशिया के वैज्ञानिकों ने लैब में ऐसे मच्छर विकसित किये हैं, जो डेंगू फैलाने वाले मच्छरों को खत्म करेंगे. दरअसल, इन मच्छरों के अंदर एक तरह का बैक्टीरिया होता है, जो डेंगू के वायरस से लड़ सकता है. लैब में तैयार हुए मच्छरों को वैज्ञानिकों ने 'गुड मॉस्क्विटो' नाम दिया है.
वैश्विक स्तर पर डेंगू के मामले हाल के दशकों में काफी तेजी से बढ़े हैं और अब दुनिया की करीब आधी आबादी को डेंगू होने का खतरा है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में हर वर्ष डेंगू के 40 करोड़ के करीब मामले सामने आते हैं. यही वजह है कि दुनियाभर से डेंगू को खत्म करने के लिए वर्ल्ड मॉस्क्विटो प्रोग्राम (डब्ल्यूएमपी) चलाया जा रहा है. इस प्रोग्राम में ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी और इंडोनेशिया की गाडजाह यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक बतौर रिसर्चर जुड़े हुए हैं.
कैसे डेंगू वायरस से लड़ेंगे मच्छर: इन वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध के मुताबिक, वोलबाचिया एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो कीड़े-मकोड़ों की 60 प्रतिशत प्रजातियों में पाया जाता है. इनमें कुछ मच्छर, फल मक्खियां, कीट-पतंगे, ड्रैगनफ्लाइ और तितलियां भी शामिल हैं, लेकिन यह डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छरों में नहीं पाया जाता है.
वैज्ञानिकों का दावा है कि यह बैक्टीरिया, डेंगू वायरस के खिलाफ काम करता है. वैज्ञानिकों ने इसके लिए मच्छरों की एक खास प्रजाति को चुना है, जिस प्रजाति में वोलबाचिया नाम का बैक्टीरिया पाया जाता है.
लैब में करायी गयी ब्रीडिंग: वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिन मच्छरों में वोलबाचिया नाम का बैक्टीरिया होता है, उनमें डेंगू का वायरस नहीं पहुंच पाता. ऐसे में लैब में वोलबाचिया बैक्टीरिया वाले मच्छरों के साथ डेंगू फैलाने वाले एडीज एजिप्टी मच्छरों की ब्रीडिंग करायी गयी. इस तरह पैदा होने वाले नये मच्छरों के जरिये डेंगू को रोका जा सकेगा. इसके लिए शोधकर्ताओं ने पहले मच्छरों के अंडों को वोलबाचिया से लैब में संक्रमित किया.
इसके बाद संक्रमित मादा मच्छर इन बैक्टीरिया को अपने अंडों के सहारे दूसरे मच्छरों तक पहुंचाती हैं. बाद में ये मच्छर ब्रीडिंग के जरिये धीरे-धीरे अपनी संख्या को बढ़ायेंगे और डेंगू बीमारी फैलाने वाले मच्छरों की संख्या घटती जायेगी. इन मच्छरों को ऐसे क्षेत्रों में छोड़ा जायेगा, जहां डेंगू के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. इस तरह मामलों को कंट्रोल किया जा सकेगा और इन मच्छरों के जरिये डेंगू के चक्र को तोड़ा जा सकेगा.
सफल रहा है इसका ट्रायल: गुड मॉस्क्विटो को लेकर वर्ष 2017 से ही ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के वैज्ञानिकों द्वारा एक संयुक्त अध्ययन किया जा रहा है. ट्रायल के तौर पर डेंगू से प्रभावित कुछ इलाकों में प्रयोगशालाओं में पाले गये ‘वोलबाचिया’ मच्छरों को छोड़ा गया. इस परीक्षण के नतीजे जून में न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे थे.
नतीजों में देखा गया कि वोलबाचिया वाले मच्छरों को छोड़ने से डेंगू के मामलों में 77 प्रतिशत तक गिरावट और अस्पताल में भर्ती होने के मामलों में 86 प्रतिशत तक की गिरावट आयी. यही वजह है कि आज इंडोनेशिया, वियतनाम, ब्राजील आदि के कई समुदाओं में डेंगू का संक्रमण कम हो रहा है.
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इंडोनेशिया व ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं द्वारा डेंगू के मच्छरों से लड़ने के लिए मच्छरों की ही एक दूसरी प्रजाति को लैब में तैयार किया गया है.
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इन मच्छरों को ऐसे क्षेत्रों में छोड़ा जायेगा, जहां डेंगू के सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं. इस तरह डेंगू के मामलों को कंट्रोल किया जा सकेगा.
तेजी से बढ़ रही डेंगू की समस्या: डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों में दुनियाभर में डेंगू के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं. हर वर्ष दुनियाभर में करीब 40 करोड़ तक लोग डेंगू से संक्रमित होते हैं. पिछले दो दशकों में डेंगू के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है. इसके सिर्फ 70 प्रतिशत मामले तो एशिया में ही देखे जाते हैं. अपने देश की बात करें तो पिछले कुछ समय से डेंगू के मामले राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में बढ़े हैं. ऐसा माना जाता है कि दूसरे मच्छरों से अलग एडीज एजिप्टी मच्छर दिन में काटते हैं और इनके हमले का समय सुबह और शाम का होता है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.