यह मानव स्वभाव है कि उसकी आशाएं और अकांक्षाएं हमेशा सामान्य और साधारण से नहीं बल्कि असाधारण और अद्भुत से संचालित होती हैं- चाहे विशेष खानपान हो, पहनावा या भाषा-बोली. घर का थाली या पत्तल चाहे कितना भी स्वादिष्ट या पौष्टिक हो, चमक-दमक और मायावी आकर्षण में सोने-चांदी के पात्रों में परोसे जाने वाले राजसी भोजों का मुकाबला नहीं कर सकता. आज हम एक जनतांत्रिक गणराज्य में रहते हैं, पर तब भी शाही मेहमाननवाजी से कतरा नहीं सकते. हाल ही में संपन्न हुआ जी-20 शिखर सम्मेलन इसका अच्छा उदाहरण है. जब भी कोई शिखर वार्ता होती है तो भोजन का आयोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह सच है कि अंत में राष्ट्रहित ही शिखर वार्ता को सफल या असफल बनाते हैं, पर इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि मेहमानों को जो खिलाया-पिलाया जाता है, उसके जायके माहौल तैयार करने में सहायक होते हैं और मेजबान देश को अपनी सांस्कृतिक विरासत और सौम्य शक्ति के प्रदर्शन का बेहतरीन मौका देते हैं.
कई बरस पहले जब जनरल मुशर्रफ भारत के दौरे पर आये थे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से एक ऐसा मेन्यू तैयार किया गया था जिसमें अविभाजित भारत के- खासकर पंजाब और मुशर्रफ के जन्म स्थान दिल्ली के- जायकों को अहम जगह दी गयी थी. अंतर्हित संदेश यह था कि चाहे सरहद हमें दो संप्रभु देशों में बांटती हो, पर खाने के मामले में बहुत सारी चीजों में हम एक हैं. जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, उनका निरंतर प्रयास यह रहा है कि मेहमान चाहे अमेरिकी राष्ट्रपति हों या चीनी, उन्हें गुजरात की खिचड़ी, ढोकले, खांडवी आदि ही खिलाते हैं. जब वह विदेश का दौरा कर रहे होते हैं, तो उनके मेजबान भी यह कोशिश करते हैं कि उनके पसंद के ही हिंदुस्तानी शाकाहारी व्यंजन विदेशी चोले में अपनी मौजूदगी दर्ज करायें.
इस बार जी-20 की शाही दावतों की चुनौती और जटिल थी. मेहमानों में अरब भी थे, इंडोनेशियाई भी, जापानी और कोरियाई तथा अमेरिकियों के अलावा बर्तानवी गोरे, फ्रांसीसी, जर्मन, इतालवी और तुर्क भी. बांग्लादेश को अलग से आमंत्रित किया गया था, यूएई जैसे मित्र देशों के साथ. सभी राष्ट्र अध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों की पसंद का भोजन शामिल करना, वह भी शुद्ध शाकाहारी कठिन था. मेहमान और भी थे. ब्राजील और अर्जेंटीना ने भी शिरकत की, जिनका आहार मुख्यतः मांसाहारी होता है. इस बार अफ्रीकी संगठन को जी-20 में शामिल किया गया, जो लगभग 50 देशों का प्रतिनिधित्व करता है.
भारतीय प्रधानमंत्री के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मिलेट्स वर्ष घोषित किया है जिसे भारत में श्री-अन्न का नया नाम दिया गया है. यह मोटे अनाज जल अभाव वाली बंजर धरती में उगाये जा सकते हैं, और इनमें असाधारण पोषण वाले तत्व भरपूर मात्रा में रहते हैं. इसलिए इस जलसे की शाही दावतों में मिलेट्स से बने व्यंजनों की ही नुमाइश की गयी. शिखर वार्ताओं में मौसम बदलाव और खाद्य सुरक्षा प्रमुख मुद्दे थे. इसीलिए कई समीक्षकों का मानना है कि मोटे अनाज का जायका भारतीय कूटनीति का तुरुप का पत्ता था. कुछ आलोचकों का मानना है कि यह तुरुप चाल चलने के चक्कर में भारत ने अपने खानपान की विविधता और समन्वयात्मक और समावेशी जीनियस के प्रदर्शन का मौका गंवा दिया. इस मेन्यू की तुलना उन पारंपरिक स्वदेशी व्यंजनों से की जा रही है जिनको पड़ोसी बांग्लादेश ने अपने एक शाही भोज में प्राथमिकता दी थी. मगर वह विषय राष्ट्रीय जायके या जायकों का है जो एक अलग मुद्दा है. इसके बारे में अगली बार.
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