Prabhat Khabar Special: सावन के शाकाहारी खाने में स्वाद का इंतजाम

समुद्र से प्राप्त होने वाले नमक को निषिद्ध माना जाता है. पर, हिमालय की चट्टानों से मिलने वाले काले या गुलाबी नमक को इस्तेमाल किया जा सकता है. सेंधा नमक भी इसी कोटि में रखा जाता है.

By पुष्पेश पंत | July 23, 2023 2:37 PM
an image

सावन का महीना शिव भक्तों के लिये विशेष महत्व का है. इसी माह कांवड़िये कष्ट साध्य यात्रा कर हरिद्वार तक पहुंच गंगाजल उठाते हैं और लौटकर अपने गांव के शिवालय पर उसे अर्पित करते हैं. जो लोग अपने घरों में ही रहते हैं वह भी इस दौरान शुद्ध शाकाहारी बन जाते हैं और सामिष व्यंजनों को वर्जित समझते हैं. सोमवार और एकादशी के दिन कई लोग उपवास रखते हैं और सिर्फ फलाहार करते हैं. सावन के शाकाहारी और फलाहारी भोजन के बारे में हमें एक बहुत दिलचस्प बात यह लगती है कि शाकाहारी थाली में सब्जियां लगभग अदृश्य रहती हैं और फलाहार में सिर्फ केला ही कभी-कभार प्रकट होता है. इसलिये सावन के शाकाहार और फलाहार में अनेक ऐसे पदार्थ अपने स्वाद से हमें ललचाते और तृप्त करते हैं, जिनका उपयोग हम में से अधिकांश बहुत कम करते हैं.

शाकाहारी थाली में या फलाहारी थाली में भी जो चीजें आमतौर पर देखने को मिलती हैं, वह कोटू और सिंघाड़े के आटे से बने होते हैं. इन दोनों का ही शुमार सब्जियों में नहीं किया जा सकता. यही बात साबूदाने और दाल मखाने पर भी लागू होती है. इन्हें अनाज नहीं माना जाता और व्रत उपवास के दिन बे-खटके खाया-खिलाया जा सकता है. इनसे पूड़ियां भी बनती हैं, बड़े भी और खिचड़ी भी. सिर्फ साबूदाने का बड़ा और खिचड़ी ऐसे व्यंजन हैं, जिनको सावन के महीने में ही नहीं, सालभर महाराष्ट्र में और उसके पड़ोस वाले प्रदेशों में खाया जाता है. खानपान के इतिहासकारों का मानना है कि साबूदाना एक जिमीकंद से तराश कर बनाया जाता है जिसे अंग्रेजी में टेरोरूट कहते हैं. हालांकि, कुछ लोग जिमीकंद का प्रयोग मसालेदार तरकारी के रूप में भी करते हैं. इसे खींच-तान कर भी साग की बिरादरी में नहीं पहुंचाया जा सकता.

चाहे दाल मखाना हो, साबूदाना या कोटू अथवा सिंघाड़े का आटा, इनका अपना स्वाद कुछ खास नहीं होता. इसे मनमोहक बनाने के लिये इसमें नमकीन या मीठा अथवा खट्टा कुछ मिलाना जरूरी होता है. दिक्कत यह है कि अधिकांश व्रत-उपवास के दिन नमक वर्जित होता है या उसका प्रयोग एक ही वक्त कर सकते हैं. जायकों पर जान छिड़कने वाले व्रत-उपवास करने वाले मित्रों ने इसकी भी काट ढूंढ निकाली है. समुद्र से प्राप्त होने वाले नमक को निषिद्ध माना जाता है. पर, हिमालय की चट्टानों से मिलने वाले काले या गुलाबी नमक को इस्तेमाल किया जा सकता है. सेंधा नमक भी इसी कोटि में रखा जाता है.

कट्टर कर्मकांडी किसी भी प्रकार का नमक नहीं छूते और अपने शाकाहारी-फलाहारी भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिये खट्टे-मीठे पदार्थों का पुट देते हैं. अमचूर, इमली, अनारदाने को इस्तेमाल कर गुड़वाली सौंठ बनायी जाती है, जिसमें सौंफ, छुहारा और लाल मिर्च पड़ते हैं. कुछ शौकीन लोग मुनक्के और किशमिश भी डालते हैं. दही में बड़े या छौंके आलू डालकर इसका बड़ा आनंद लेते है. 
इस तरह के शाकाहार में हींग का भी महत्वपूर्ण स्थान रहता है.

अब तक यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि सावन के शाकाहारी जायकों में चाट के जायकों का प्रभाव साफ दिखलाई देता है. यह बात याद रखने लायक है कि आलू भले ही विदेशी पुर्तगालियों के साथ सिर्फ पांच सौ साल पहले भारत पहुंचा, मगर आज शाकाहारियों के लिए यह एक तरह से अनिवार्य बन चुका है. दक्षिण भारतीय ब्राह्मण डोसे और रसम में अभी हाल तक प्याज से परहेज करते थे, पर आलू से उन्हें कोई शिकायत नहीं थी. इस ऋतु में सिर्फ तले पदार्थ ही नहीं खट्टे-मीठे और तीखे व्यंजन भी हमें ललचाते हैं. यही सब सावन के शाकाहारी जायकों में शामिल है.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

Exit mobile version