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बदलते मौसम में एलर्जी और वायरल इंफेक्शन से करें अपना बचाव

सर्दी के बाद बदलते मौसम में तापमान करवटें बदलता है- कभी गर्मी हो जाती है, तो कभी सर्दी. तेज धूप की तपिश की वजह से लोग गर्म कपड़े उतार देते हैं. हल्की स्पीड पर पंखे, यहां तक कि बाहर गाड़ियों में एसी तक चलाने लगते हैं, लेकिन शाम होते-होते तापमान कम होने की स्थिति में एहतियात न बरतने पर ठंड लग जाती है.

Allergy Prevention: सर्दी के बाद बदलते मौसम में तापमान करवटें बदलता है- कभी गर्मी हो जाती है, तो कभी सर्दी. तेज धूप की तपिश की वजह से लोग गर्म कपड़े उतार देते हैं. हल्की स्पीड पर पंखे, यहां तक कि बाहर गाड़ियों में एसी तक चलाने लगते हैं, लेकिन शाम होते-होते तापमान कम होने की स्थिति में एहतियात न बरतने पर ठंड लग जाती है.

बदलते मौसम के चलते छोटे हों या बड़े ठंड लगने से वायरल इंफेक्शन या रेस्पिरेटरी समस्याओं की गिरफ्त में आ जाते हैं. उन्हें सर्दी-जुकाम, खांसी, नाक बहना, सिर में दर्द, बदन में दर्द, बुखार आना जैसी समस्याएं होती है. वायरल इंफेक्शन मूलतः इन्फ्लुएंजा वायरस एच-3 एन-3 से होता है, जो साल-दर-साल म्युटेशन के बाद अपना रूप बदलता रहता है.

इन दिनों बुखार व खांसी के मामले बढ़े

वर्तमान में रेस्पिरेटरी सिंक्राइटियल वायरस (आरएसवी) से लोग संक्रमित हो रहे हैं, जो इन्फ्लुएंजा वायरस का एक रूप है. आमतौर पर इन्फ्लुएंजा वायरस का संक्रमण 3-5 दिन में खत्म हो जाता है, लेकिन वर्तमान में संक्रमित व्यक्ति को ठीक होने में 8-10 दिन लग रहे हैं. पहले बुखार, फिर गले में खराश और सूखी खांसी का शिकार हो रहे हैं. पोस्ट वायरल ब्रोन्काइटिस या माइल्ड निमोनिया की वजह से खांसी लंबे समय तक देखने को मिल रही है.

वायरल इंफेक्शन से कैसे करें बचाव

इस समय की गुलाबी ठंड में लापरवाही न करें और फुल लैंथ के गर्म कपड़े पहनते रहें. बाहर जाते समय भी गर्म कपड़े पहनें. दोपहर में गर्मी लगने या पसीना आने पर कोशिश करें कि कपड़े न उतारें. इससे भी ठंड लगने की संभावना रहती है. घर का बना ताजा, गर्म, पौष्टिक और संतुलित खाना खाएं. फ्रिज में रखा ठंडा जूस, कोल्ड ड्रिंक्स से परहेज करें. रोजाना हल्के व्यायाम जरूर करें, जिससे शरीर चुस्त रहे. बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबॉयोटिक दवाइयां न लें. वायरल इंफेक्शन से बचने के लिए वयस्क लोग सालाना इन्फ्लुएंजा वैक्सीन लगवाएं.

एलर्जी से कैसे बचें

सबसे जरूरी है कि एलर्जी के ट्रिगरिंग फैक्टर यानी नुकसान पहुंचाने वाली चीजों को पहचानें. अभी ठंडी चीजों, खटाई, दही जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन कम-से-कम करें. डिहाइड्रेशन से बचने के लिए दिन में 6-8 गिलास पानी पीएं. सांस लेने में या अन्य किसी भी तरह की समस्या हो, तो डॉक्टर खासकर पल्मोनोलॉजिस्ट से संपर्क करें. एलर्जिक दवाइयां, नेजल स्प्रे, इन्हेलर नियमित रूप से लेने से न हिचकिचाएं.

इनसे ट्रिगर होती है रेस्पिरेटरी एलर्जी

वातावरण व हमारे आसपास में कुछ आयंस और एलर्जन तत्व, जैसे- परागकण, धूल-मिट्टी में पाये जाने वाले कीटाणु, फंगस, घर में पालतू जानवरों की लार मौजूद रहते हैं. मौसम में बदलाव होने पर इनमें बदलाव आते रहते हैं. ये तत्व कुछ लोगों में राइनाइटिस, साइनोसाइटिस जैसी रेस्पिरेटरी एलर्जी को ट्रिगर कर देते हैं. व्यक्ति को बुखार, गले में खराश, नाक में खुजली होना, नाक बंद होना, लगातार छींकें आना, नाक बहना, बलगम बनना, सांस लेने में कठिनाई होना, सीने में भारीपन या जकड़न होना, सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन, सिर दर्द, बदन दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

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