गीता दुबे
बुढ़ापा एक अवस्था है, जिस पड़ाव पर इंसान शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर व लाचार हो जाता है. दूसरों का सहारा लेना या दूसरों पर निर्भर रहना उसकी मजबूरी बन जाती है. ऐसी अवस्था में उसे अपनों के सहारे की बेहद जरूरत होती है, लेकिन आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में घर-परिवार में बुजुर्गों के लिए किसी के पास स्पेस नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि बुजुर्गों ने बदलते हालात से समझौता कर लिया है. अपनी जिंदगी की जंग को लड़ने के लिए कमर कस ली है. अब वे लाचारी, बेबसी, अकेलेपन का रोना नहीं रोते. उन्होंने मान लिया है कि सारी जिंदगी की जंग जब अकेले ही लड़ी है, तो अब अकेले क्यों नहीं? मौजूदा हालात में ही कुछ मंत्र अपनाकर उन्होंने सुकून ढूंढ़ लिया है, खुद की अलग दुनिया बना ली है.
रिटायरमेंट यानी जिंदगी को नये सिरे से जीना,
68 वर्षीय चंद्रदेव जी पत्नी संग दो कमरों के फ्लैट में रहते हैं. दो बेटे दूसरे शहरों में अच्छी नौकरी के साथ सेटल हैं. 36 वर्षों तक एक बड़ी कंपनी में हेड एकाउंटेंट रहे चंद्रदेव जी रिटायरमेंट के बाद भी एक छोटे दफ्तर में पार्ट टाइम अकाउंटेंट का काम संभालते हैं. कहते हैं, अब भी मैं पहले की ही तरह व्यस्त रहता हूं और पहले से ज्यादा खुश रहता हूं, क्योंकि यहां काम का दबाव नहीं है और न ही अपने को साबित करने का तनाव. मैं पहले से ज्यादा अपने आप को खुश पाता हूं.
70 वर्षीया गृहिणी सुशीला देवी पुश्तैनी मकान में पुराने नौकरों के साथ अकेली रहती हैं. दो बेटियां हैं, दोनों विवाहित हैं, दोनों अलग-अलग शहरों में रहती हैं. दो वर्ष हुए उन्होने पति को खो दिया. टीचर बनने की ख्वाइश थी, लेकिन सारी उम्र घर-परिवार की जिम्मेदारी निभाने में ही निकल गयी. अब अपने घर के बरामदे में गरीब बच्चों को खुद व एक और टीचर की मदद से पढ़ाती हैं. वह कहती हैं, ये बच्चे मुझे इतना प्यार देते हैं कि मैं अपने सारे दुख-दर्द भूल जाती हूं. अब समय के साथ-साथ सोच भी बदली है. रिटायरमेंट का मतलब ‘राम नाम’ का माला फेरना और मौत का इंतजार करना नहीं, बल्कि नये सिरे से जिंदगी जीने का समय है.
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बुजुर्ग अक्सर कहते हैं कि हमारे जमाने में गैजेट्स नहीं होते थे. सगे-संबंधियों, मित्रों से मिलने-जुलने का अपना तरीका होता था. मनोरंजन के साधन और तरीके भी बिल्कुल अलग होते थे, लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है. अब हम 21वीं शताब्दी में रह रहे हैं. समय के साथ गैजेट्स हमारी जिंदगी को कितना सरल और आसान बनाते जा रहे हैं, यह अनुभव तब होता है, जब हम इसका उपयोग करने लगते हैं. सोशल मीडिया के जरिये मीलों दूर बैठे अपने मित्रों से, रिश्तेदारों का हालचाल जान सकते हैं, घर बैठे मनपसंद खाना ऑर्डर कर सकते हैं, या किसी भी जरूरत की चीज के लिए दूसरे पर आश्रित न होकर खुद ऑनलाइन मंगा सकते हैं. गैजेट्स का उपयोग करने से झिझकिए मत, उनका उपयोग करना बेहद आसान है. अपने नाती-पोते से, बेटे-बहू, किसी से भी इनका उपयोग करना सीख सकते हैं. आज के नाती-पोते कहानियां नहीं सुनते. इसी बहाने वे आपके साथ जुड़ेंगे और मनोरंजन-मस्ती करेंगे. इस तरह ये आपका अकेलापन दूर करने में मजेदार साथी बन सकते हैं.
67 वर्षीय सुनील सिन्हा के कमर व घुटने में दर्द रहता है. चलना- फिरना भी तकलीफदेह है. पढ़ने-लिखने में रुचि रखने वाले सिन्हा जी अब अपना सारा वक्त कंप्यूटर पर पढ़ने-लिखने में बिताते हैं. अपने अनुभवों को लिखते हैं, लोगों की प्रतिक्रियाएं पढ़ कर खुश होते हैं. सोशल साइट्स और व्हाट्सएप के जरिये अपने डॉक्टर, सगे-संबंधियों, मित्रों और नाती-पोतों के संपर्क में रहते हैं. कहते हैं कि आज कंप्यूटर, स्मार्टफोन ही मेरे मित्र हैं. इन्हीं गैजेट्स के सहारे मेरी जिंदगी मजे से कट रही है.
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एक-एक दिन, एक-एक माह कर यह साल बीतने को है. समय का पहिया घूमते-घूमते अपने बुजुर्गावस्था में आ पहुंचा है, ठीक वैसे ही, जैसे कोई व्यक्ति बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था से होता हुआ बुजुर्गावस्था तक आ पहुंचता है. उम्र की इस अवस्था को लोग अलग-अलग चश्मे से देखते हैं. कई इसे तमाम जिम्मेदारियों से छुट्टी पाकर आराम की घड़ी समझते हैं और निराशा का शिकार होते जाते हैं, तो कई इसे दिल खोलकर जीना चाहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि ‘जीवन अनमोल है’. आप किससे प्रेरित होते हैं, ये आपका नजरिया है…
सद्गुरु
बुढ़ापा कोई दुर्भाग्य या विपदा नहीं है. यह अवस्था कई रूपों में एक बहुत बड़ा वरदान हो सकती है, क्योंकि आपके पास पूरे जीवन का अनुभव होता है. जब आप बच्चे थे, तो सब कुछ बहुत खूबसूरत था, लेकिन आप बड़े होने के लिए बेचैन थे, क्योंकि आप जीवन को अनुभव करना चाहते थे. अगर आप खुद को अपने अनुभव के दूसरे आयाम में ले जाएं, तो शरीर को संभालना एक आसान काम हो जाता है. तब बुढ़ापा और भी आनंदमय अनुभव हो सकता है.
भारत में प्राचीनकाल में वृद्धा-अवस्था का मतलब वानप्रस्थ आश्रम होता था, जब वृद्ध वन में चले जाते थे और वहां आनंदपूर्वक रहते थे. लेकिन आजकल वृद्धावस्था का मतलब ‘अस्पताल-आश्रम’ हो गया है. अगर आप अपनी तंदुरुस्ती की प्रक्रिया का अच्छी तरह ध्यान रखें, तो बुढ़ापा आपकी जिंदगी का एक अद्भुत हिस्सा हो सकता है. यह बेहद अनमोल है कि एक तरफ तो जीवन का पूर्ण अनुभव साथ है और आप एक बार फिर से बच्चा बन गये हैं.
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जिंदगी के इस पड़ाव पर पूजा-पाठ, धर्म-अध्यात्म, इबादत करना सुकून देता है. उसी तरह बुढ़ापे में ‘दान’ करना भी सुकून देता है, जिससे खुद को संतुष्टि मिलती है. हां, यहां दान का अर्थ सिर्फ ये नहीं कि आपके पास खूब सारा रुपया-पैसा हो और आप उसे दान दें! दान कई रूप में हो सकते हैं. विद्या दान सर्वोत्तम माना गया है. यदि आप आस-पास के छोटे बच्चों, युवाओं को पढ़ाते हैं, अपने अनुभवों के आधार पर उन्हें सिलाई-कढ़ाई, अकाउंट आदि विषयों की जानकारी देते हैं, तो इससे आपका समय भी कटेगा और बच्चों का भविष्य संवारने में भागीदार भी बनेंगे. आज भी गांवों में वृद्ध महिलाएं अचार बनाना, पापड़ बनाना, सिलाई- कढ़ाई-बुनाई दूसरों को सिखा कर अपना समय खुशी-खुशी व्यतीत कर रही हैं. जरूरत है सिर्फ आगे कदम बढ़ाने की.
66 वर्षीय हरीश भाई पटेल हर शनिवार को पास वाले मंदिर में कुछ पैसे दान में देते हैं, जिससे हरेक महीने मंदिर परिसर में गरीबों को खाना खिलाया जाता है. गरीबों को भोजन करते देख संतुष्टि मिलती है कि कुछ नेक कार्य किया. वे खुश होकर कहते हैं कि इन्हें खाता देख ऐसा लगता है कि इन्हें मेरी जरूरत है.
65 वर्षीया उषा देवी घर और आस-पास की महिलाओं को मुफ्त सिलाई सिखाती हैं, कहती हैं कि मेरे पास दान करने के लिए तो मेरी यही विद्या है. मेरी सिखाई कई लड़कियों ने अपनी दुकानें खोल रखी हैं. उन्हें आत्मनिर्भर देख मुझे बहुत खुशी मिलती है.
वृद्धावस्था में जिंदगी कठिन भले हो जाती है, लेकिन ऐसे कुछ अच्छे कार्य कर इसे बहुत आसान व मजेदार बनाया जा सकता है. इस तरह खुद के लिए सुकून के पल ढूंढ़े जा सकते हैं.
Also Read: जिलोमोल थॉमस : बिना हाथों के ड्राइविंग लाइसेंस लेने वालीं एशिया की पहली महिला, जिद और हौसला है इनकी पहचानDisclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.