Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट सोमवार 24 जुलाई को उस याचिका पर सुनवाई करेगा. जिसमें क्लास 6 से 12वीं तक की बच्चियों को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने की मांग की गई है. इस याचिका में सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों की छठी से 12वीं कक्षा तक की छात्राओं को मुफ्त सैनिटरी पैड मुहैया कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की अपील की गई है. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करेगी.
दरअसल शीर्ष अदालत ने इससे पहले केंद्र सरकार से स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों की मासिक धर्म स्वच्छता के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाई जाने वाली एक मानक संचालन प्रक्रिया और एक राष्ट्रीय मॉडल तैयार करने को कहा था.
दस अप्रैल को शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह मुद्दा ‘अत्यंत महत्वपूर्ण’ है और केंद्र को सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों समेत स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता के प्रबंधन पर एक समान राष्ट्रीय नीति के कार्यान्वयन के लिए सभी हितधारकों से बात करनी चाहिए. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ समन्वय करके राष्ट्रीय नीति तैयार करने के संबंध में प्रासंगिक डेटा एकत्र करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) के सचिव को नोडल अधिकारी नियुक्त किया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय मासिक धर्म स्वच्छता से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए पहले से ही योजनाएं चला रहे हैं.
याचिका कर्ता जया ठाकुर ने अपनी याचिका में गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली किशोरियों को शिक्षा प्राप्त करने में गंभीर कठिनाइयों का जिक्र किया है.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं. चिंता की बात यह है कि पीरियड्स एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अब भी लोग खुलकर बात करने से संकोच करते हैं. क्लास 6 से 12वीं की छात्राओं को सैनिटरी पैड निःशुल्क मिलने से उनके स्वास्थ्य की रक्षा के साथ उनकी शिक्षा में आने वाली रूकावटें भी दूर होंगी . क्यूंकि ग्यारह से 12 साल की उम्र में बच्चियों को पीरियड्स आने शुरू हो जाते हैं. कई संपन्न घरों की बच्चियों को इस दौरान परेशानियां नहीं उठानी पड़ती लेकिन कई ऐसी भी बच्चियां होती हैं जो पारंपरिक उपायों को ही अपनाती हैं .आज भी कई ग्रामीण इलाकों में जागरूकता के अभाव में पुराने कपड़ों में घास, राख, बालू डालकर बनाए पैड का उपयोग करती हैं जिनसे उन्हें संक्रमण होने का खतरा बना रहता हैं कई बच्चियां तो इस दौरान स्कूल जाना बंद कर देती हैं क्यूंकि स्कूल आने के बाद भी उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति सैनिटरी पैड खरीदने की नहीं होती. इन समस्याओं से बचने के लिए वे स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं. जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होती है. कई तो स्कूल से नाम ही कटवा लेती हैं .
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पारंपरिक उपायों से बेहतर है सैनिटरी पैड
सैनिटरी पैड के उपयोग से हर महीने पीरियड के दिनों में छात्राओं के लिए वे दिन मुश्किल भरे नहीं होते हैं. बाजार में कई प्रकार के कॉटन सैनिटरी पैड उपलब्ध हैं. छात्राओं को पीरियड के दिनों में परेशानी ना हो इसके लिए कई शिक्षण संस्थानों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन भी लगाई है. छात्राओं को इंफेक्शन से बचाने के लिए यह प्रयास किए जा रहे हैं. अधिकतर लड़कियों में नैपकिन खरीदने को लेकर संकोच रहता है. वे मेडिकल स्टोर में जाकर सैनेटरी नैपकिन लेने से बचती हैं ऐसे में यह मशीनें उनकी मदद करती हैं . माहवारी कोई बीमारी नहीं है बल्कि एक जैविक प्रक्रिया (natural biological process) है. यह स्त्रियों को हर महीने में एक बार होता है और चक्र के रूप में चलता है. यह चक्र औसतन 28 दिनों का होता है. पीरियड्स के दौरान गर्भाशय के अंदर से रक्त बाहर आता है. किसी लड़की को पीरियड्स शुरू हो जाए तो इसका मतलब है कि उसका शरीर गर्भधारण के लिए तैयार होने की प्रक्रिया शुरू कर रहा है. यह उसके शरीर में हार्माेन से जुड़े बदलाव भी बताता है.
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