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बच्चों में तीन दिनों तक दिखें न्यूमोनिया जैसे ये लक्षण,डॉक्टर से करें संपर्क,जानें क्या है व्हाइट लंग सिंड्रोम

White Lung Syndrome : आजकल एक नाम बहुत चर्चा में है,व्हाइट लंग सिंड्रोम. श्वसन तंत्र से संबंधित एक बीमारी जिसने चीन, अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. लोगों में डर है कि कहीं यह कोरोना की तरह नया रोगाणु तो नहीं है.

डॉ दीपक प्रजापत, सीनियर कंसल्टेंट, पल्मनरी एंड क्रिटिकल केयर, मेट्रो हॉस्पिटल

नोएडा और डॉ विद्या नायर, सीनियर कंसल्टेंट, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद

White lung syndrome : कई वैज्ञानिक दिसंबर और जनवरी में इस संक्रमण के तेजी से फैलने का दावा कर रहे हैं. यह बीमारी एक नयी स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरी है. ऐसे में जानिए व्हाइट लंग सिंड्रोम और इसकी गंभीरता के बारे में. 3-8 साल के बच्चों में अधिक सामने आ रहे हैं व्हाइट लंग सिंड्रोम के मामले, जो बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है. जिस बैक्टीरिया मायकोप्लाज्मा न्यूमोनी को इस सिंड्रोम का कारण माना जा रहा है, वह वातावरण में पहले से मौजूद है.

जब आप स्वस्थ फेफड़ों का एक्स-रे या सीटी स्कैन देखेंगे, तो ये काले दिखायी देते हैं. यह इस बात का संकेत होता है कि इनमें हवा भरी हुई है. जब इनमें सूजन होती है या फ्ल्यूड भरा होता है, तो फेफड़े सफेद दिखायी देते हैं. ये सफेद चकत्ते बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण के कारण हो सकते हैं. यह कोई नयी बात नहीं है, लेकिन चूंकि चीन में माइकोप्लाज्मा न्यूमोनी संक्रमण के कई मामले सामने आये हैं. इसमें फेफड़ों के स्कैन में सफेद चकत्ते दिखाई देते हैं. जब अमेरिका में भी इसी तरह के मामले सामने आये तो वहां के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसके लिए ‘व्हाइट लंग सिंड्रोम’ नाम का इस्तेमाल किया. वैसे यह कोई वैज्ञानिक शब्दावली नहीं है. फेफड़ों के एक्स-रे में सफेद चकते तब भी दिखायी दे सकते हैं, जब आप किसी तरह के फ्लू से ग्रस्त हों.

यह है एक बैक्टीरियल संक्रमण

दरअसल, व्हाइट लंग सिंड्रोम, मायकोप्लाज्मा न्यूमोनी नामक बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है. यह एक प्रकार का न्यूमोनिया है, जिसके कारण फेफड़ों में सूजन हो जाती है और प्रभावित लोगों में छाती के एक्स-रे में सफेद चकते या धब्बे नजर आते हैं. वर्तमान में 3 से 8 वर्ष बच्चों में इसके काफी मामले सामने आ रहे हैं. डेनमार्क के स्टेटन्स सीरम इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं/अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि इसके मामले असामान्य नहीं हैं. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, यह नया रोगाणु नहीं है, जिसे हम पहले से नहीं जानते हों. हालांकि, विशेषज्ञों को संदेह है कि नया स्ट्रेन होने और एंटी बायोटिक्स के प्रति रेजिस्टेंस विकसित कर लिया हो तो मुश्किल हो जायेगी.

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बचाव के लिए करें ये उपाय

मुंबई स्थित सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन बेसिक साइंसेज के वैज्ञानिकों का कहना है कि कोई भी संक्रमण का फैलना तीन प्रमुख कारणों पर निर्भर करता है- वातावरण में होने वाले मौसमी परिवर्तन, मानव का व्यवहार और रोगाणु की संक्रमण फैलाने की क्षमता. व्हाइट लंग सिंड्रोम के लगातार फैलते दायरे को देखकर कुछ सुरक्षात्मक कदम उठाना जरूरी है, ताकि इसकी चपेट में आने से बचा जा सके.

  • संतुलित, पोषक और सुपाच्य भोजन का सेवन करें. विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ लें. यह खट्टे फलों में ही नहीं पालक, लैट्यूस और पत्तागोभी में भी काफी मात्रा में होता है.

  • प्रोटीन के अच्छे स्रोतों को भोजन में शामिल करें, क्योंकि इनमें जो अमीनो एसिड होता है. वह डब्ल्यूबीसी के निर्माण के लिए जरूरी है.

  • 6 से 8 घंटे की नींद जरूर लें, अगर आप पर्याप्त नींद नहीं लेंगे तो इम्यून तंत्र को पुन:निर्माण का समय नहीं मिलेगा. ज्यादा आराम करने से भी रोग प्रतिरोधक तंत्र कमजोर हो जाता है, इसलिए जरूरी है कि शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.

  • जब भी जरूरी हो अपने हाथों को साबुन-पानी से धोएं या सेनेटाइजर से साफ करें. बच्चे को लेकर यदि बाहर निकलें तो शारीरिक दूरी मेंटेन करें और ज्यादा भीड़भाड़ में जाने से बचें.

  • अगर आपको सर्दी-खांसी है, तो छींकते और खांसते समय टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें. बच्चों से मिलते समय मास्क पहन सकते हैं.

  • बच्चों को इस संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें फ्लू, कोविड और आरएसवी जैसे वायरस के लिए वैक्सीन लगवाना चाहिए.

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कितनी गंभीर है स्थिति

व्हाइट लंग सिंड्रोम का दायरा बढ़ता जा रहा है, चीन और अमेरिका के बाद यूरोप में भी इसके कुछ मामले सामने आये हैं. डेनमार्क में तो इस सिंड्रोम के इतने मामले सामने आ रहे हैं कि इसके महामारी का रूप लेने की आशंका बढ़ती जा रही है. खासकर बच्चों में इसके मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के इंफेक्शन कंट्रोल एंड हॉस्पिटल एपिडेमियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यह कोई नया संक्रमण नहीं है. यह वायरस या बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमणों की तरह ही है. ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है.

क्या हैं इसके कारण

व्हाइट लंग सिंड्रोम के वास्तविक कारणों का पता नहीं है कि क्यों इसका आउटब्रेक/प्रकोप हुआ. विश्वभर में इसको लेकर रिसर्च हो रही है. सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, माइकोप्लाज्मा न्यूमोनी नामक बैक्टीरिया के संक्रमित होने पर यह सिंड्रोम होता है. यह संक्रमण मिनसक्यूल रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स (अत्यंत छोटी बूंदों) के द्वारा खांसने, छींकने, बात करने, गाना गाने और सांस लेने से फैल सकता है. कोविड माहामारी के कारण लंबे लॉकडाउन और दूसरे प्रतिबंधों के कारण लोग सामान्य रोगाणुओं के संपर्क में कम आये, इससे उनकी इम्युनिटी का स्तर कम हो गया है. इससे भी उनके संक्रमित होने की आशंका बढ़ी है.

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क्या हैं इसके लक्षण

व्हाइट लंग सिंड्रोम में न्यूमोनिया के समान ही लक्षण दिखायी देते हैं. इन लक्षणों में शामिल हैं-

  • पांच साल से छोटे बच्चों में छींक आना, नाक बंद होना या बहना, आंखों से पानी आना, सांस लेने में घरघर की आवाज आना, उल्टी होना या डायरिया होना जैसे लक्षण भी दिखायी दे सकते हैं.

  • वहीं पांच साल से बड़े बच्चों व बड़ों में कफ होना, बुखार आना, नाक बहना, साइनस में कफ जमा होना और सांस लेने में परेशानी होना व थकान जैसे लक्षण सामने आ सकते हैं.

  • बच्चों में लक्षणों को मॉनिटर करें, यदि लक्षण गंभीर लगें, तो डॉक्टर से संपर्क करें.

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क्या हैं उपचार के विकल्प

व्हाइट लंग सिंड्रोम एक प्रकार का न्यूमोनिया ही है. उपचार में मुख्यतया इसके लक्षणों को ठीक करने और मरीज के श्वसन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाता है. इसके उपचार के लिए नेबुलाइजेशन और दवाइयों का इस्तेमाल होता है. अगर जरूरी हो तो ऑक्सीजन थेरेपी भी दी जाती है. सबसे अच्छी बात यह है कि माइकोप्लाज्मा न्यूमोनी बैक्टीरिया कोरोना वायरस की तरह नया रोगाणु नहीं है. एंटीबायोटिक्स से इसे ठीक किया जा सकता है. हालांकि, सबसे जरूरी है कि यदि बच्चे को आप इस समय बाहर ले जाते हैं, तो सिर में टोपी, पैरों में मोजे और हाथों में दास्ताने पहनाएं. घर में बच्चे को ज्यादा समय गीला न रहने दें. बच्चों की स्किन को सॉफ्ट रखने के लिए मॉस्चराइजर लगाएं.

स्रोत : WHO बातचीत और आलेख : शमीम खान

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Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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