डॉ. सुमित सिंघानिया,पल्मोनोलॉजिस्ट, कोकिलाबेन हॉस्पिटल, मुंबई
डॉ विशाल गुप्ता फिजिशियन, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर
ऐसा नहीं है कि दमा (अस्थमा), फ्लू और ब्रॉन्काइटिस सरीखी फेफड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव छोड़ने वाली स्वास्थ्य समस्याएं सिर्फ सर्दियों के ही मौसम में होती हैं, लेकिन जाड़े में इनके मामले बढ़ जाते हैं. अगर सर्दियों में एहतियात बरती जाएं तो इनसे बचा जा सकता है. साथ ही इनका नियंत्रण भी संभव है.
जाड़े में क्यों बढ़ते हैं मामले
जाड़े में तापमान में गिरावट के कारण सांस नलियां भी कुछ हद तक सिकुड़ती हैं. सांस नलिकाओं में सूजन और सिकुड़न को दमा कहते हैं. दमा के लगभग 80 प्रतिशत से अधिक मामले एलर्जी से संबंधित होते हैं. जो लोग पहले से ही दमा से ग्रस्त हैं, उनकी समस्या जाड़े में लापरवाही बरतने पर बद से बदतर हो सकती है. इसके अलावा जाड़े में तापमान में गिरावट के कारण प्रदूषक कण वायुमंडल में काफी नीचे आ जाते हैं, जिसके कारण सांस लेने पर दमा की समस्या के ट्रिगर करने का जोखिम बढ़ जाता है.
दमा का कारण हैं एलर्जन
आमतौर पर जिन कारणों से दमा की समस्या बढ़ती है, उन्हें एलर्जन्स कहा जाता है. धूल, धुआं, उमस, नमी, कारपेट में माइट्स, केमिकल युक्त पेंट, विभिन्न खाद्य पदार्थ और सर्वोपरि मौसम में बदलाव आदि एलर्जन्स के कारण बन सकते हैं. यह एलर्जन्स दमा की समस्या को बढ़ाते या ट्रिगर करते हैं.
सांस लेने में तकलीफ के कारण गहरी सांस न ले पाना. कुछ दूर चलने पर या थोड़ा-सा परिश्रम करने पर सांस फूलना.
सीने में जकड़न, खांसी (सूखी या बलगम वाली) आना.
सांस बाहर छोड़ते समय सीटी जैसी आवाज होने जैसे लक्षण सामने आते हैं.
दमा के रोगी करें अपना बचाव
इस समय दमा पीड़ितों को फ्लू से बचाव के लिए वैक्सीन लगवानी चाहिए, क्योंकि फ्लू की समस्या इनमें दमा से संबंधित जटिलताएं उत्पन्न करती है.
वाहनों से निकलने वाले धुएं व अन्य प्रकार के वायु प्रदूषक से बचाव के लिए घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनें.
स्वास्थ्यकर जीवनशैली पर अमल करें. नियमित रूप से व्यायाम करें. एक निश्चित समय पर नाश्ता, दोपहर व रात का भोजन करें. जंक फूड्स और अधिक चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करें.
अक्सर तनावग्रस्त रहने से दमा रोगियों की समस्या बढ़ सकती है, इसलिए तनावमुक्त रहने के लिए आशावादी सोच रखना और मेडिटेशन करना लाभप्रद है.
कुछ लोगों को व्यायाम करने से भी दमा की समस्या हो सकती है. ऐसे लोग समस्या होने पर डॉक्टर से परामर्श लें. बेहतर होगा व्यक्ति व्यायाम करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लें.
बच्चों में दमा का उपचार : नवजात शिशुओं में दमा होने पर नेबुलाइजेशन थेरेपी दी जाती है. इसके अलावा उन्हें सिरप के रूप में दवा दी जाती है. पांच से 12 वर्ष तक के बच्चों को मीटर डोज इनहेलर से दवा देते हैं. इसके अलावा उन्हें ओरल डोज भी दी जाती है. 13 से 17 वर्ष के किशोरों को इनहेलर के जरिये दवा देते हैं. इसके अलावा उन्हें एंटी एलर्जिक दवाई भी देते हैं.
वयस्कों में दमा का इलाज : दमा में इनहेलेशन थेरेपी के नतीजे कारगर साबित हो रहे हैं, क्योंकि इनहेलर के जरिये दवा सीधे फेफड़े में पहुंचकर अतिशीघ्र असर करती है. डॉक्टर से परामर्श लेकर इनहेलर से दवा लें और उनके परामर्श पर अमल करें. अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार, एलर्जी से होने वाले दमा में इम्युनोथेरेपी काफी हद तक कारगर है. वहीं, दमा के गंभीर रोगियों के इलाज में ब्रान्को थर्मोप्लास्टी काफी कारगर साबित हो रही है.
दमा में लाभप्रद हैं ये व्यायाम
10-10-20 का नियम : अपने फेफड़ों की क्षमता के अनुसार, जहां तक संभव हो गहरी सांस लें. मान लीजिए आप 10 सेकंड तक सांस अंदर ग्रहण करने में सक्षम हैं, तो इतने ही सेकंड्स या जितना संभव हो, इसे रोकने का प्रयास करें. फिर धीरे-धीरे 20 सेकंड्स तक सांस बाहर छोड़ें. प्रतिदिन 5 से 10 मिनट तक इस व्यायाम को करें.
प्राणायाम और योगासन : दमा रोगियों के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम लाभप्रद है. यह प्राणायाम ‘अल्टरनेट नॉस्ट्रिल ब्रीदिंग’ है यानी इसके अंतर्गत बायें और दाहिने नासिका छिद्र का प्रयोग सांस लेने और इसे बाहर निकालने के लिए बारी-बारी से किया जाता है. योगासनों में भुजंगासन और सूर्य नमस्कार आदि हितकर हैं. बेहतर होगा कि योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर ही प्राणायाम और योगासन करें.
हंसना और गाना : गाना गाने और खुलकर हंसने से भी फेफड़ों का व्यायाम होता है. इस लिहाज से हंसना एवं गायन भी फेफड़ों को स्वस्थ रखता है. गाते समय सांस को रोकना पड़ता है, जो एक तरह से फेफड़ों का व्यायाम है.
कंट्रोलर इनहेलर का इस्तेमाल : डॉक्टर के परामर्श से कंट्रोलर इनहेलर का नियमित रूप से इस्तेमाल करें. कंट्रोलर इनहेलर सांस नलिकाओं में सूजन और सिकुड़न को कम करते हैं. दमा के लक्षणों को नियंत्रित कर ये दौरे के खतरे को काफी हद तक खत्म कर देते हैं. अगर पीड़ित व्यक्ति दमा के दुष्प्रभावों को महसूस नहीं भी कर रहा है, तो भी उसे कंट्रोलर इनहेलर का इस्तेमाल करते रहना चाहिए. ठीक उसी तरह जैसे कि मधुमेह के मरीज प्रतिदिन अपनी दवा लेते हैं, भले ही उनका ब्लड शुगर नियंत्रित हो.
रिलीवर इनहेलर : ये फेफड़े की कार्यप्रणाली को व्यवस्थित कर मरीज को इमरजेंसी से बाहर निकाल देते हैं. इन दिनों रिलीवर और कंट्रोलर इनहेलर का कॉम्बिनेशन भी उपलब्ध है.
Also Read: घुंघराले हैं या सीधे हैं आपके बाल, हेयर टाइप बताते हैं आपकी पर्सनालिटीअपने देश में प्रतिवर्ष लगभग 40 हजार व्यक्तियों की मौत फ्लू या इन्फ्लूएंजा के कारण होती हैं. सर्दियों को फ्लू का मौसम कहा जाता है, जिसका कारण है कि ठंडे तापमान में फ्लू के वायरस अन्य ऋतुओं की तुलना में कहीं ज्यादा पनपते हैं और काफी देर तक सक्रिय रहते हैं.
फ्लू के लक्षणों को जानें
तेज बुखार के साथ गले में खराश, नाक बहना, कभी-कभी नाक बंद हो सकती है, सांस लेने में तकलीफ, ठंड लगना, सूखी खांसी आना, बदन दर्द और जोड़ों में दर्द, अनेक मरीजों में सिरदर्द की समस्या, वहीं बच्चों में फ्लू से पीड़ित होने पर उन्हें दस्त की समस्या ज्यादा होती है.
ऐसे करें अपना बचाव
संक्रमित व्यक्ति के खांसने व छींकने से हवा के जरिये फैलने वाले ड्रॉपलेट्स से यह बीमारी दूसरे व्यक्तियों में फैलती है. ऐसे में संक्रमित व्यक्ति खांसते-छींकते समय मुंह पर रूमाल लगाएं.
आमतौर पर बच्चे और वृद्ध कहीं ज्यादा फ्लू के शिकार होते हैं. क्योंकि इन दोनों का रोग प्रतिरोधक तंत्र आमतौर पर सशक्त नहीं होता. ऐसे में इनका सर्दियों से बचाव करना जरूरी है. डॉक्टर के परामर्श से बच्चों और वृद्धों को फ्लू वैक्सीन अवश्य लगवानी चाहिए.
बातचीत : विवेक शुक्ला
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