Thrombosis Covid Symptoms, Causes, Treatment, Coronavirus, Health News: कोरोना वायरस सिर्फ फेफड़ों को ही अपने चपेट में नहीं ले रहा, बल्कि मरीजों में खून के थक्के जमने व कार्डियक अरेस्ट जैसी समस्याएं भी सामने आ रही हैं. आमतौर पर कोविड मरीजों में या कोविड से रिकवरी के 6 से 8 सप्ताह बाद तक खून के गाढ़ा होने की समस्या देखी जा रही है.
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच पटना के चार मेडिकल कॉलेज अस्पतालों- पीएमसीएच, एम्स, आइजीआइएमएस और एनएमसीएच में हुए डेथ ऑडिट में पता चला कि 500 में से करीब 280 कोरोना मरीजों की मौत खून के थक्के जमने से हुई है. उन मरीजों के फेफड़ों के साथ ब्रेन और हार्ट में भी थक्के पाये गये. इसके साथ उन्हें निमोनिया, एआरडीएस व हाइपोथायराडिज्म जैसी बीमारियों से भी जूझना पड़ा.
कोविड मरीज में डीप वेन थ्रोम्बोसिस और आर्टेरियल थ्रोम्बोसिस दोनों तरह की समस्या देखने को मिली है. शरीर के वेन्स यानी नस में यदि खून गाढ़ा हुआ तो उसे डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डीवीटी) कहते हैं. डीवीटी सामान्यतया जानलेवा नहीं होता है. इस स्थिति में पैर के नसों में खून का थक्का जम जाता है, जो पैर में सूजन व अन्य समस्याओं की वजह बनते हैं.
वहीं शरीर के आर्टेरियल सिस्टम यानी धमनियों में खून गाढ़ा होकर चला गया तो उसे आर्टेरियल थ्रोम्बोसिस कहते हैं. इसमें हार्ट की कोरोनरी आर्टरिज में यदि खून के थक्के हुए, तो हार्ट अटैक की आशंका काफी बढ़ जाती है.
वहीं फेफड़ों में खून पल्मोनरी आर्टरिज ले जाती हैं, उसमें यदि खून के थक्के जम जाते हैं, तो पल्मोनरी एम्बोलिज्म यानी खून के थक्के से फेफड़ों के ब्लॉक हो जाने का रिस्क रहता है. वहीं, यदि ब्रेन में खून जम जाता है, तो मरीज को ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा रहता है.
दरअसल, कोई भी वायरस बॉडी में इन्फ्लेमेशन करवाता है, ऐसे में वायरस के अगेंस्ट एक्यूट इन्फ्लामेट्री रिस्पॉन्स होता है, जिससे खून के गाढ़ा होने की संभावना रहती है. वहीं रक्त वाहिकाओं के भीतरी हिस्से यानी एंडोथीलियम में जो रिसेप्टर्स होते हैं, उनके डी-अरेंजमेंट यानी बिखर जाने के कारण भी खून गाढ़ा हो जाता है. कोरोना वायरस की वजह से खून के गाढ़ा होने की स्थिति में शरीर में डी-डिमर प्रोटीन की मात्रा बढ़ने लगती है.
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थ्रोम्बोसिस का पता लगते ही हॉस्पिटल में तत्काल उपचार के जरिये मरीजों को गंभीर खतरे से बचाया जा सकता है. इसके उपचार के क्रम में दवा से खून के थक्कों को खत्म किया जाता है. साथ ही मरीज में पल्मोनरी एम्बोलिज्म की स्थिति होने से रोकना होता है. खून के बड़े थक्के बन जाने की स्थिति में थ्रोम्बेक्टोमी से थक्के (क्लॉट) को सर्जरी कर बाहर निकाला जाता है.
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ईसीजी, इको-कार्डियोग्राम
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सीटी पल्मोनरी एंजियोग्राफी
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सीटी स्कैन (ब्रेन)
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अल्ट्रासाउंड
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वेनोग्राम एक्स-रे
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डी-डिमर टेस्ट
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थ्रोम्बोसिस के रिस्क फैक्टर वाले लोग यदि कोविड के शिकार होते हैं, तो बीपी और शूगर लेवल को मॉनिटर करते रहें और उन्हें कंट्रोल में रखें.
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रिस्क फैक्टर वाले मरीज प्रेसक्राइब्ड ब्लड थिनर का डोज डॉक्टर की सलाह से ले सकते हैं. डॉक्टर जिस ड्यूरेशन के लिए ब्लड थिनर रिकमेंड करें, उतने दिन तक उसे कंटीन्यू करें.
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देखने में आता है कि कोविड से रिकवर होने के 10 से 15 दिन बाद ही कई लोग साइकिल चलाने लगते हैं या कठिन व्यायाम करने लगते हैं. इससे भी ज्यादा रिस्क बढ़ जाता है. क्योंकि उस समय बॉडी उस लोड को लेने को तैयार नहीं होता.
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ऐसे में कोविड के कितने दिन बाद एक्सरसाइज शुरू करना है और कितना एक्सरसाइज करना है, ये सब किसी चिकित्सक की परामर्श से ही करें.
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कोविड संक्रमित मरीज क्षमतानुसार एक्टिव रहें. हमेशा एकदम बैठे या सोये न रहें. घर में थोड़ी देर तक पैदल चलें.
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यदि हार्ट की आर्टरीज में खून के थक्के बने हों, तो सांस फूलने लगेगी, छाती में जोर से दर्द हो सकता है.
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फेफड़ों के आसपास थक्के बनने की स्थिति यानी पल्मोनरी एम्बोलिज्म होने की स्थिति में अचानक से सांस फूलना, छाती में दर्द होना, थूक में खून आना, दिल के धड़कन का बहुत तेज हो जाना आदि लक्षण हो सकते हैं.
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ब्रेन में यदि खून जमा हो, तो पैरालिसिस के लक्षण जैसे- आवाज बंद होना, हाथ-पैर कमजोर हो जाना, सिर चकराना आदि हो सकता है.
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इसके अलावा डीवीटी की स्थिति में टखना और पैर में सूजन, उसी पैर में ऐंठन के साथ तेज दर्द हो. त्वचा पर चकत्ता पड़ना तथा प्रभावित क्षेत्र के त्वचा का पीला, लाल या नीला पड़ना आदि खून का थक्का जमने के संकेत हो सकते हैं.
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ऐसी किसी भी स्थिति में बिना कोई देर किये मरीज को डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
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आहार में वेजिटेरियन डायट सबसे अच्छा है. फल और साग-सब्जियां अत्यधिक मात्रा में लें.
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रेड मीट कम-से-कम खाएं या न ही खाएं.
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अधिक-से-अधिक लिक्विड डायट लें और हाइड्रेशन को मेंटेन रखें.
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यदि धूम्रपान की आदत है, तो उसे एकदम छोड़ दें.
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कोविड संक्रमित वैसे मरीज, जिनको हार्ट की बीमारी हो.
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जिनको डायबिटीज हो और ब्लड शूगर लेवल बढ़ा हुआ हो.
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जिनके शरीर का वजन बीएमआइ के अनुपात में ज्यादा हो.
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जिन्हें बहुत सीवियर यानी गंभीर कोविड संक्रमण हुआ है.
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ऐसे मरीज जिनके थोड़ा भी चलने पर सांस फूलने लगता हो.
डॉ प्रशांत कुमार
कार्डियोलॉजी विभाग, रिम्स, रांची
बातचीत व आलेख : विवेकानंद सिंह
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.